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हरीश गुप्ता
वरिष्ठ संपादक
पूर्व में, पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्नी और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी कांग्रेस को झटका लगने का इंतजार कर रही हैं। वे जानती हैं कि उत्तर भारत की राजनीति में उनकी कोई भूमिका नहीं हैं और कांग्रेस के साथ उनका हनीमून खत्म हो चुका है। अब वे अपने तरीके से ही काम कर रही हैं और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर सक्रि य रूप से उन्हें सलाह दे रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के लिए गेम-2024 शुरू हो चुका है। जहां कांग्रेस पार्टी अगले साल की शुरूआत में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौर में खुद को पुनर्जीवित करने और कुछ राज्यों को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रही है, वहीं भाजपा चार राज्यों यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में अपने गढ़ की रक्षा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।
पंजाब को एक खुले खेल के रूप में बहुत करीब से देखा जा रहा है, जहां चुनाव विश्लेषकों ने डार्क हॉर्स की जीत की भविष्यवाणी की है, हालांकि अभी यह शुरू आती दौर है। ये चुनाव सपा और बसपा जैसे कुछ क्षेत्नीय खिलाड़ियों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं, जो पिछले सात वर्षो से यूपी में भाजपा के हमले का सामना कर रहे हैं। लेकिन पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्नों के अधिकांश क्षेत्नीय क्षत्नपों के लिए इन विधानसभा चुनावों का कोई खास महत्व नहीं है।
पूर्व में, पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्नी और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी कांग्रेस को झटका लगने का इंतजार कर रही हैं। वे जानती हैं कि उत्तर भारत की राजनीति में उनकी कोई भूमिका नहीं हैं और कांग्रेस के साथ उनका हनीमून खत्म हो चुका है। अब वे अपने तरीके से ही काम कर रही हैं और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर सक्रि य रूप से उन्हें सलाह दे रहे हैं।
कहा जाता है कि वे अब 2024 के संसदीय चुनावों के दौरान 50 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य बना रही हैं क्योंकि किसी भी गैर-भाजपा सरकार के निर्माण में उनकी भूमिका हो सकती है। हालांकि पं। बंगाल की 42 लोकसभा सीटों तक ही उनकी अपील को सीमित देखते हुए यह एक बड़ा लक्ष्य है। वे उसी तरह राज्य में वोटों का ध्रुवीकरण होने की उम्मीद करती हैं जिस तरह से मोदी ने 2014 और 2019 में किया था। वे मतदाताओं से यह कहते हुए एक अतिरिक्त अपील जोड़ेंगी; मुङो वोट दें क्योंकि मैं पीएम बन सकती हूं, पहली बंगाली। वे 2024 में 34-37 लोकसभा सीटों के बीच कहीं हो सकती हैं। लेकिन अतिरिक्त 13-15 सीटें जीतना एक कठिन कार्य है। वे 22 लोकसभा सीटों वाले उत्तर पूर्व में कांग्रेस का स्थान लेने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं। वे पहले ही वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुष्मिता देव को पार्टी में ला चुकी हैं और उन्हें असम और त्रिपुरा में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए राज्यसभा सीट से पुरस्कृत कर चुकी हैं।
वे ओडिशा, झारखंड और यहां तक कि बिहार में भी कुछ सीटें हासिल करने की रणनीति बना रही हैं और उन राज्यों में पार्टियों के साथ रणनीतिक तालमेल बिठाने की कोशिश कर रही हैं जहां बंगाली मतदाता बड़ी संख्या में हैं।
अभी तक, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ही एकमात्न ऐसे थे जिनका नाम संभावित पीएम की सूची में हमेशा होता था। लेकिन जानकार सूत्नों का कहना है कि महाराष्ट्र के सीधे-सादे मुख्यमंत्नी उद्धव ठाकरे गेम-2024 में नए खिलाड़ी हो सकते हैं। उन्होंने सत्ता में रहते हुए पिछले दो वर्षो के दौरान शिवसेना की पूरी संस्कृति और लोकाचार को बदल दिया है। उद्धव ड्राइविंग सीट पर हैं और लोगों को दिखा दिया है कि गठबंधन सरकार कैसे चलती है।
उद्धव की कार्यशैली ने भी कुछ उम्मीद जगाई है। वे एक सफल प्रबंधक हैं, नपीतुली प्रतिक्रि या देते हैं, शब्दों में नाटकीयता नहीं लाते हैं और जानते हैं कि कब चुप रहना है। वे दो अति महत्वाकांक्षी नेताओं, शरद पवार और नाना पटोले को जबरदस्त कौशल के साथ प्रबंधित कर रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगर भारत को त्रिशंकु संसद मिलती है, तो उद्धव सामने आ सकते हैं। उद्धव ने अपनी कट्टर हिंदुत्व साख को बनाए रखने के साथ ही बिना किसी बड़े झटके के एक धर्मनिरपेक्ष सरकार चलाने की कला में महारत हासिल की है। वे लगातार आरएसएस के करीब हैं, अयोध्या जाते हैं, मोदी से मिलते हैं और फिर भी अपने धर्मनिरपेक्ष सहयोगियों को खुश रखते हैं। इसके अलावा, उन्हें अपनी मराठा पहचान पर भी गर्व है। शिवसेना ने अपनी अल्पसंख्यक विरोधी हिंसक छवि को भी मिटा दिया है। एक तरह से उद्धव ठाकरे भारत के पहले धर्मनिरपेक्ष हिंदू राष्ट्रवादी हो सकते हैं। भाजपा के लिए अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के हथकंडे का इस्तेमाल उस पार्टी के खिलाफ करना मुश्किल होगा जिसका नाम हिंदू देवता के नाम पर रखा गया है। इसके अलावा मुंबई के बड़े कॉरपोरेट घराने भी उन्हें पसंद करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये वही घराने हैं जो दिल्ली में मोदी के सामने झुकते हैं, लेकिन मुंबई में ठाकरे को खुश रखते हैं।
दो शक्तिशाली दक्षिणी नेताओं के। कामराज और जे। जयललिता के दिल्ली में सत्ता हथियाने में नाकाम रहने के बाद द्रमुक के एम।के। स्टालिन अपनी किस्मत आजमाने पर विचार कर रहे हैं। लेकिन वे जल्दी में नहीं हैं और धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं। वे 2024 से आगे देख रहे हैं, जब तीन साल बाद हो सकता है त्रिशंकु लोकसभा बने। स्टालिन और ममता बनर्जी के बीच चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर एक कॉमन फैक्टर हैं। अगर ममता 50 सीटों के खेल का लक्ष्य बना रही हैं तो वह भी पीछे नहीं हैं। वर्तमान में, वे सीधे राजनीति की बात किए बिना ह्यसंघीय संरचनाह्ण जैसे मुद्दों को उठाते हुए एक पहचान बना रहे हैं। वे गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों को अहम मुद्दों पर लामबंद करने में लगे हैं।
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