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Poverty Problems
(अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस विशेष – 17 अक्टूबर 2021)
इस कोरोना महामारी ने गरीबी की भयावह स्थिति को दिखलाया, चंद पैसों की कमी से जिंदगियां छीन गई। एम्बुलेंस के लिए पैसे न होने के कारण आज भी लोग कंधे पर शव ढोते नजर आते हैं। गरीबी कही जानवर से बदतर जिंदगी दे रही है तो कही इंसानियत शर्मसार हो रही है और मासूम बचपन जिम्मेदारियों की भेट चढ़ रहा है। गरीबी वह अभिशाप है जो मानव जीवन को संघर्षपूर्ण बनाकर विकास में बाधक बनता है। गरीबी की समस्या अपने साथ सैकड़ों अन्य समस्याएं लेकर आती है, यह समस्या पूरी दुनिया में फैली है। आज देश में गरीबी, बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में गरीब लोग जूझ रहे हैं, अब निम्न-मध्यम वर्ग की स्थिति भी बिगड़कर गरीबी रेखा की ओर बढ़ रही है। हमारे देश में सबसे बड़ी आबादी निम्न-मध्यम वर्ग है जो हर महीने एक छोटी सी सीमित आय अर्जित करते हैं और अपने परिवार के साथ जीवन यापन करते हैं। घर का खर्च, किराया, किराने का सामान, अनाज, सब्जियां, बच्चों की शिक्षा, ईंधन, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों पर इतना खर्च आता है कि बचत करना तो दूर, महीने के अंत तक उधार लेना शुरू हो जाता है, हर वस्तु की कीमत बढ़ गई है।
2020-2021 में वैश्विक स्तर पर 15 करोड़ लोगों की गरीबी बढ़ी, 20 साल में पहली बार वैश्विक गरीबी दर इतनी बढ़ी। हर 27 में से एक बच्चा कुपोषण और अत्यधिक गरीबी के कारण 5 वर्ष की आयु तक पहुंचने से पहले ही जान गंवाता है। दुनिया में आज भी 77.3 करोड़ लोग हैं जो पढ़ नहीं सकते हैं, और उनमें से ज्यादातर महिलाएं हैं। गर्भावस्था और प्रसव से संबंधित योग्य स्वास्थ्य देखभाल की कमी, रोकथाम के अभाव में हर दिन लगभग 810 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। आधे से ज्यादा बच्चों की मौत सिर्फ इन पांच विकासशील देशों में होती है – नाइजीरिया, भारत, पाकिस्तान, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और इथियोपिया। आज 25.8 करोड़ बच्चे, यानी प्रत्येक 5 में से 1 बच्चा स्कूल जाने से वंचित है। प्राथमिक स्कूल की उम्र के प्रत्येक 100 लड़कों के मुकाबले, 121 लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित किया जाता है। हर दिन 10,000 लोग इसलिए जान गंवाते हैं क्योंकि उनके पास बेहतर स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच नहीं है। स्वास्थ्य देखभाल के खर्चे के कारण हर साल 10 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में जाने को मजबूर होते हैं।
वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2021, विकासशील क्षेत्रों में 109 देशों के लिए तीव्र बहुआयामी गरीबी की तुलना करता है। इन 109 देशों में 5.9 अरब लोगों में से 1.3 अरब लोग (21.75%) तीव्र बहुआयामी गरीबी में रहते हैं। करीब आधे (64.4 करोड़) 18 साल से कम उम्र के बच्चे हैं। लगभग 85 प्रतिशत उप-सहारा अफ्रीका (55.6 करोड़) या दक्षिण एशिया (53.2 करोड़) में रहते हैं। मोटे तौर पर, 84 प्रतिशत (1.1 अरब) ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, और 16 प्रतिशत (लगभग 20.9 करोड़) शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। 67 प्रतिशत से अधिक मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं। खाना पकाने के ईंधन सुविधाओं की कमी, अपर्याप्त स्वच्छता, प्रदूषित वातावरण, भूख, घटिया आवास, कुपोषित पारिवारिक सदस्य, बेहतर पेयजल की कमी, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, अशिक्षा, अपर्याप्त बाल देखभाल, खराब पड़ोस जैसे अनेक समस्याओं के बिच यह गरीब लोग संघर्षमय जीवनयापन कर रहे है।
एमपीआई, भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण का उपयोग करके डेटा एकत्र करता है। भारत ने एमपीआई 2020 में 62 रैंक के साथ 0.123 स्कोर किया था, इसमें भारत का हेडकाउंट अनुपात 27.91% था। 2020 में, भारत देश के पड़ोसियों का स्थान श्रीलंका 25, बांग्लादेश 58, नेपाल 65, चीन 30, म्यांमार 69, पाकिस्तान 73 रैंक पर था।
प्यू रिसर्च सेंटर के एक विश्लेषण में पाया गया कि कोविड-19 महामारी के कारण हुई आर्थिक मंदी ने पिछले साल भारत में 7.5 करोड़ अधिक लोगों को गरीबी में धकेल दिया। विश्लेषण से पता चलता है कि 2020 में भारत में गरीबी में वैश्विक वृद्धि का लगभग 60% भारत देश के हिस्से आया है। यहा गरीबों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जो प्रतिदिन $ 2 या उससे कम पर रहते थे। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा, ह्लस्टेट आॅफ वर्किंग इंडिया 2021- कोविड-19 का एक वर्ष, अध्ययन से पता चला है कि महामारी के कारण अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ, सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों को हुआ और 23 करोड़ भारतीय, महामारी के विनाशकारी आर्थिक प्रभाव के कारण राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी गरीबी रेखा से नीचे गिर गए। अनूप सत्पथी समिति की सिफारिश के अनुसार, ये सभी लोग अब राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन सीमा 375 रुपये प्रति दिन से कम कमा रहे हैं।
जीडीपी वृद्धि में पर्याप्त सुधार के बावजूद बढ़ती बेरोजगारी दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बनी हुई है। नौकरियों में गिरावट जुलाई में 399.38 मिलियन से गिरकर अगस्त में 397.78 मिलियन हो गई। यह ध्यान देने योग्य है कि 13 लाख नौकरियों का नुकसान अकेले ग्रामीण भारत से हुआ था। सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार, शहरी बेरोजगारी अगस्त में बढ़कर 9.78 प्रतिशत हो गई, जो जुलाई में 8.3 प्रतिशत थी। सीएमआईई ने यह भी नोट किया कि जुलाई में 6.95 प्रतिशत तक गिरने के बाद अगस्त में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर तेजी से बढ़कर 8.32 प्रतिशत हो गई।
थोक महंगाई दर एक बार फिर से बढ़ गई है। सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक अगस्त में थोक महंगाई दर 11.16 फीसदी से बढ़कर 11.39 फीसदी हो गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, ईंधन में वृद्धि, कच्चे माल की कीमतों और बिजली की बढ़ती कीमतों के कारण थोक महंगाई बढ़ी है। ईंधन और बिजली की महंगाई 26.02 प्रतिशत से बढ़कर 26.09 प्रतिशत और विनिर्माण उत्पादों में 11.20 प्रतिशत से बढ़कर 11.39 प्रतिशत हो गई। देश में खाद्य तेल की कीमतें 11 साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं, साल भर में 46.15 प्रतिशत की वृद्धि हुई और पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेंडर के दाम आसमान छू रहे है।
दुनिया के सबसे अमीर 1% लोगों के पास 6.9 बिलियन लोगों की तुलना में दोगुनी संपत्ति है। लगभग आधी आबादी प्रतिदिन 5.50 डॉलर से कम पर जीवन यापन करती है। 2017 में, उत्पन्न संपत्ति का 73 प्रतिशत सबसे अमीर 1% के पास गया, जबकि 67 मिलियन भारतीयों, जिनमें सबसे गरीब आधी आबादी शामिल है उन्होने अपनी संपत्ति में केवल 1% की वृद्धि देखी। भारतीय आबादी के शीर्ष 10% के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77% हिस्सा है। अरबपतियों की संपत्ति एक दशक में लगभग 10 गुना बढ़ गई है और उनकी कुल संपत्ति वित्त वर्ष 2018-19 के लिए भारत के पूरे केंद्रीय बजट से अधिक है। भारत में 119 अरबपति हैं, इनकी संख्या 2000 में केवल 9 से बढ़कर 2017 में 101 हो गई है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 में, भारत जीएचआई स्कोर की गणना के लिए पर्याप्त डेटा के साथ 107 देशों में से 94वें स्थान पर है। 27.2 के स्कोर के साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर दिखाया गया है। भारत, दुनिया की सबसे बड़ी कुपोषित आबादी का घर है, 189.2 मिलियन लोग यानी हमारी आबादी का 14% कुपोषित है। 5 साल से कम उम्र के 20% बच्चे कम वजन के हैं और 34.7% बच्चे अविकसित हैं। प्रजनन आयु की 51.4% महिलाएं एनीमिक (कमजोर) है। गरीबी विरोधी संगठन आॅक्सफैम का कहना है कि हर मिनट 11 लोग भूख से मरते हैं और दुनिया भर में अकाल जैसी परिस्थितियों का सामना करनेवाले लोगों की संख्या पिछले साल की तुलना में छह गुना बढ़ गई है।
आक्सफैम ने द हंगर वायरस मल्टीप्लाईज नामक एक रिपोर्ट में कहा है कि भुखमरी से मरने वालों की संख्या कोविड-19 से ज्यादा है, जिससे प्रति मिनट करीब सात लोगों की मौत हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि 15.5 करोड़ लोगों को भोजन की जरूरतों के “संकट,” का सामना करना पड़ा और 2019 से लगभग 2 करोड़ लोगों की वृद्धि हुई। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारतीय घरों में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 50 किलोग्राम भोजन फेंक दिया जाता है।
डा. प्रितम भि. गेडाम
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