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Jallikattu: जल्लीकट्टू, कंबाला और बैलगाड़ी दौड़ जारी रहेगा, सुप्रीम कोर्ट का रोक से इनकार

Roshan Kumar • LAST UPDATED : May 18, 2023, 12:27 pm IST
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Jallikattu: जल्लीकट्टू, कंबाला और बैलगाड़ी दौड़ जारी रहेगा, सुप्रीम कोर्ट का रोक से इनकार

Jallikattu

India News (इंडिया न्यूज़), Jallikattu, दिल्ली: तमिलनाडु मे जल्लीकट्टू (सांडों को काबू में करना), कर्नाटक में कंबाला (भैंसे की दौड़) और महाराष्ट्र के बैलगाड़ी दौड़ जैसे पारंपरिक खेलों को अनुमति दिए जाने के मामले मे सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने माना जलीकट्टू तमिलनाडु का कल्चरल एक्टिविटी है इसलिए इसमे हस्तक्षेप नहीं करेगा। जल्लीकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक से इनकार कर दिया।

  • 2014 में लगा था बैन 
  • सरकारों ने लाया था कानून
  • कानूनों का चुनौती दी गई थी

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु मे जल्लीकट्टू (सांडों को काबू में करना), कर्नाटक में कंबाला (भैंसे की दौड़) और महाराष्ट्र के बैलगाड़ी दौड़ जैसे पारंपरिक खेलों को सांस्कृतिक विरासत माना। कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु द्वारा किया गया संशोधन अनुच्छेद 15 A का उल्लंघन नहीं करता।

पांच जचों की पीठ ने दिया फैसला

कोर्ट ने यह भी कहा की इस खेल को लेकर जो नियम बनाए गए हैं उसे प्रशासन सख्ती से लागू करे। जल्लीकट्टू के बैन के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को इसके साथ ही खारिज कर दिया गया। पिछले साल दिसंबर में जस्टिस केएम जोसेफ, अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रवि कुमार की पांच जजों की बेंच ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसला अनिरुद्ध बोस ने पढ़ा।

2014 में लगा था बैन

जल्लीकट्टू को 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंधित कर दिया था। लेकिन तमिलनाडु सरकार ने 2017 में और फिर 2019 में जल्लीकट्टू को अनुमति देने के लिए कानून लेकर आई थी। कोर्ट में सुनवाई के दौरान तमिलनाडु ने खेल का बचाव किया था। याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा था कि जल्लीकट्टू खून का खेल है। हालांकि, पीठ ने सवाल किया कि यह खून का खेल कैसे हो सकता है क्योंकि लोग नंगे हाथों से भाग ले रहे थे।

कई देशों में होते ऐसे खेल

“सिर्फ इसलिए कि मौत होती है, इसका मतलब यह नहीं है कि यह एक खून का खेल है। हमें नहीं लगता कि कोई भी बैल को गले लगाने के लिए वहां जा रहा है जो खून देखना चाहता है। वे किसी हथियार का इस्तेमाल नहीं करते। लोग नंगे हाथों से बैल को चढ़ा रहे हैं।” बेंच ने कहा था। तमिलनाडु सरकार ने जोर देकर कहा कि ‘जल्लीकट्टू’ में शामिल सांडों को साल भर किसानों द्वारा रखा जाता था और उन्होंने पेरू, कोलंबिया और स्पेन जैसे देशों का उदाहरण दिया जहां सांडों की लड़ाई को उनकी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा माना जाता है।

 रहा है विवादों में

पीठ ने कहा, “पर्वतारोहण भी खतरनाक है। पहाड़ पर चढ़ते समय लोग मर जाते हैं, तो क्या हम लोगों को पहाड़ पर चढ़ने से रोकते हैं? आप मनुष्य में साहसिक भावना को नहीं रोक सकते।” जल्लीकट्टू सांडों को काबू में करने का एक पारंपरिक खेल है जो पोंगल उत्सव के दौरान होता है। कुछ वर्गों द्वारा इसे एक खेल और एक सांस्कृतिक प्रतीक माना जाता है, यह सांडों और प्रतिभागियों दोनों को चोट लगने के जोखिम के कारण विवाद का विषय भी रहा है।

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