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India News(इंडिया न्युज),Maharashtra: महाराष्ट्र(Maharashtra) की राजनीति में रविवार को एक भूचाल आ गया है। जिसके बाद से महाराष्ट्र के सभी राजनीतिक समिकरण बिगड़ते हुए नजर आने लगे है। ज्ञात हो कि, एनसीपी के वरिष्ठ नेता अजित पवार ने आज नेता प्रतिपक्ष से राज्य के नए उपमुख्यमंत्री पद के लिए शपथ लिया और साथ हीं एनसीपी पर अपना दावा ठोक दिया है। जिसके बाद से सभी की नजर एनसीपी प्रमुख शरद पवार पर है कि, अब उनका अगला कदम क्या होगा।
चलिए अब आपको बतातें है कि, आखिर एनसीपी में पड़े इस फूट का क्या कारण है। आपको बता दें कि, कुछ दिनों पहले शरद पवार के पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद शरद पवार ने 10 जून यानी पार्टी के 25 वें स्थापना दिवस पर बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष समेत विभिन्न राज्यों का प्रभार दे दिया। इन सब में पार्टी के वरिष्ट नेता अजित पवार को नजर अंदाज किया गया। जिसके बाद बाद अजित पवार की नाराजगी की खबरें सामने आईं। हालांकि, उन्होंने इससे इंकार किया था। जहां शरद पवार ने यह भी कहा था कि, अजित पवार पहले से ही विपक्ष के नेता के तौर पर बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। वे महाराष्ट्र(Maharashtra) राज्य देखेंगे। लेकिन फिर भी पार्टी का एक धड़ा पवार के इस फैसले से नाराज चल रहा था। बता दें कि, पहली बार जब 2 मई को शरद पवार ने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ा था तो इस बात की संभावना थी कि अजित पवार को पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है। जब पार्टी नेताओं और समर्थकों ने पवार के फैसले का विरोध किया तो अजित ने खुलेआम कहा था कि इस विरोध से कुछ नहीं होगा। पवार साहब अपना फैसला नहीं बदलेंगे। हालांकि 4 दिन में ही पवार ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया।
बता दें कि महाराष्ट्र(Maharashtra) के राजनीतिक के जानकार प्रो. एमआर शिंदे का कहना है कि अजीत पवार का पुराना सपना था कि वह भाजपा के साथ सरकार में शामिल हो। आखिरकार उनका ये सपना रविवार को पूरा हो गया हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में अब यह खेल बहुत लंबा चलेगा, क्योंकि शरद पवार इस घटना को लेकर बोल चुके हैं कि विधायक कहीं भी जा सकते हैं। लेकिन पार्टी कहीं नहीं जाएगी। अजीत पवार ने विधायकों की बैठक की है। यह बैठक पार्टी की आधिकारिक बैठक नहीं थी। अब एनसीपी किसकी होगी यह लड़ाई देखने लायक होगी। शिंदे कहते हैं कि एनसीपी के पास अब राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा नहीं हैं। अब वह केवल एक क्षेत्रीय पार्टी बनकर रह गई है। सवाल उठने लगे हैं कि अजीत पवार भी क्या एकनाथ शिंदे की तरह पार्टी के चुनाव चिन्ह और पार्टी के हक की लड़ाई लडेंगे। क्योंकि वह प्रेस कांफ्रेस में साफ कर चुके हैं कि हम लोग एनसीपी के चुनाव चिन्ह के लिए लड़ेंगे। पार्टी के सभी नेता हमारे पास हैं। एक फार्मूला यह भी हो सकता है कि शरद पवार चुपचाप अजित पवार के इस फैसले को स्वीकार कर लें। हालांकि, इसकी संभावना बहुत कम नजर आ रही है। शरद पवार इस स्थिति से निपटने के लिए नागालैंड के फार्मूले को भी अपना सकते हैं। नागालैंड में भाजपा स्थानीय दलों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार चला रही है। बावजूद इसके एनसीपी के चार विधायक भाजपा समर्थित सरकार को समर्थन दे रहे हैं।
महाराष्ट्र की राजनीति हुए फेर बदल के बाद एक बात है जो कि अकसर सुनने में आई है। वो है ‘नागालैंड मॉडल” जिसके बारे में जिक्र करते हुए अजित पवार ने कहा कि, हम बीजेपी गठबंधन वाली सरकार का नागालैंड में समर्थन कर सकते हैं तो फिर महाराष्ट्र में क्यों नहीं कर सकते हैं। जिस तरह नागालैंड में एनडीपीपी नेता नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली सरकार में बीजेपी शामिल है। ठीक उसी तरह के हालात महाराष्ट्र(Maharashtra) में भी हैं। महाराष्ट्र(Maharashtra) में भले ही बीजेपी बड़ी पार्टी हैं लेकिन सरकार का नेतृत्व शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे कर रहे हैं और बीजेपी इस सरकार में शामिल हैं। तो यहां भी समर्थन देने में क्या हर्ज है।
बता दें कि, नागालैंड में इसी साल विधानसभा चुनाव हुए थे। 60 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत ( 37 सीटें ) मिला और नेफ्यू रियो के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ। बाद में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने नागालैंड में एनडीपीपी-भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन देने की घोषणा की जिसके सात विधायक चुनकर आए थे। तब पार्टी प्रमुख शरद पवार ने नागालैंड के व्यापक हित में मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के नेतृत्व को स्वीकार करने का फैसला किया था। शरद पवार ने कहा था कि उनकी पार्टी ने बीजेपी को नहीं बल्कि नागालैंड के मुख्यमंत्री का समर्थन किया है जो एनडीपीपी से हैं।
भतीजे अजित पवार के बगावत के बाद शरद पवार ने पुणे में प्रेस कांफ्रेंस किया। जिसमें उन्होने कहा कि, पहले भी ऐसी बगावत हो चुकी है। लेकिन मैं फिर से पार्टी खड़ी करके दिखाऊंगा। इसके बाद शरद पवार ने 1980 के दशक को याद करते हुए कहा कि, तब भी वह निराश नहीं हुए जब उनके पास 58 विधायक थे जिसमें 52 विधायकों ने साथ छोड़ दिया था। पवार ने कहा कि, मैने संख्या बल को मजबूत किया। इसलिए उनके लिए यह कोई नई बात नहीं है। इसके बाद पवार ने कहा कि, एनसीपी किसकी होगी, इसे जनता तय करेगी। इसके बाद एक वेदना बताई कि 6 जुलाई को उन्होंने पार्टी की बैठक बुलाई थी। पार्टी में संगठन से जुड़ा कुछ निर्णय लेने वाले थे, लेकिन इससे पहले पार्टी के कुछ नेताओं ने ऐसा निर्णय ले लिया है। अपनी योजना के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि वह जनता के बीच जाएंगे। इसके अलावा वह कांग्रेस और उद्धव ठाकरे के साथ भी आगे की रणनीति पर चर्चा करेंगे।
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