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One Nation One Election: एक राष्ट्र, एक चुनाव पर चर्चाएं हुईं तेज, क्या पड़ेगा प्रभाव?

Itvnetwork Team • LAST UPDATED : September 2, 2023, 2:18 pm IST
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One Nation One Election: एक राष्ट्र, एक चुनाव पर चर्चाएं हुईं तेज, क्या पड़ेगा प्रभाव?

One Nation One Election: एक राष्ट्र, एक चुनाव पर चर्चाएं हुईं तेज, क्या पड़ेगा प्रभाव?

India News (इंडिया न्यूज़), One Nation One Election, Chandramani Shukla: एक राष्ट्र, एक चुनाव पर चर्चाएं हुईं तेज, क्या पड़ेगा प्रभाव?: एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर एक बार फिर से चर्चा जोरों पर है। इसके पीछे की वजह यह है कि केंद्र सरकार ने इस संबंध में समिति का गठन किया है। इस समिति का अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया गया है। ऐसे में सवाल यह उठता है की आखिर एक राष्ट्र, एक चुनाव क्या है? साथ ही इसका देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

जानिए क्या है एक देश, एक चुनाव

एक देश, एक चुनाव को अगर सीधे तौर पर समझे तो इसके अनुसार लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने पर विचार किया जा रहा है। इसका मतलब यह है कि पूरे देश में एक ही साथ चुनाव हो जाएंगे। इसके पहले देश में ऐसी व्यवस्था है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव 5 साल बाद होते हैं लेकिन राज्यों के चुनाव अपने हिसाब से कार्यकाल पूर्ण होने पर कराए जाते हैं।

देश के अलग-अलग राज्यों में विधानसभा के कार्यकाल अलग-अलग क्रम में है। इस वजह से चुनाव के समय भी अलग-अलग रहते हैं। सरकार की ओर से इसी क्रम में बदलाव करके सभी चुनाव एक साथ कराने की ओर विचार किया जा रहा है। देश में आजादी के बाद हुए पहले चुनाव से लेकर 1967 तक लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ ही हुए लेकिन उसके बाद राज्यों की विधानसभा भंग होने के कारण इसमें बदलाव आया और अब इस तरह की स्थिति देखी जाती है कि पांचो साल देश के किसी न किसी राज्य में चुनाव की तैयारी चल रही होती हैं।

2019 के लोकसभा चुनाव में खर्च हुए 60,000 करोड़ रुपये

एक राष्ट्र, एक चुनाव समर्थन में ऐसा कहा जा रहा है की इससे चुनाव पर होने वाले खर्च में भारी कमी आएगी। इसके पीछे एक रिपोर्ट को भी आधार बनाया जा रहा है। जिसमें 2019 के लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड़ रुपये खर्च होने की बात कही गई है हालांकि इस खर्च में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दालों की तरफ से खर्च की गई राशि और चुनाव आयोग द्वारा खर्च की गई राशि दोनों को जोड़ा गया है। इसके अलावा एक राष्ट्र एक चुनाव के समर्थकों की तरफ से यह भी तर्क दिया जाता है कि इससे पूरे देश में प्रशासनिक व्यवस्था की दक्षता बढ़ेगी। अलग-अलग मतदान होने से प्रशासनिक गतिविधियों की गति में भी कमी आती है।

जब केंद्र और राज्य सरकार के चुनाव एक साथ होंगे तो सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता बनी रहने की संभावना अधिक होगी। अमूमन ऐसा देखा जाता है कि चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता लागू कर दी जाती है। जिस वजह से कई परियोजनाओं पर प्रतिबंध लग जाता है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे को लेकर पहले ही कह चुके हैं कि एक देश एक चुनाव से देश के संसाधनों की बचत होगी इसके साथ ही विकास की गति भी धीमी नहीं पड़ेगी।

कई संवैधानिक चीज़ो को रखना पड़ेगा ध्यान में

एक राष्ट्र, एक चुनाव के कराने में कई चुनौतियां भी सामने देखी जा सकती हैं। इसके लिए राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के साथ जोड़ने के लिए संवैधानिक संशोधन करना पड़ेगा। इसके अलावा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के साथ-साथ अन्य संसदीय प्रक्रिया में भी संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी। इस मामले में सेवानिवृत न्यायाधीश राकेश शर्मा का कहना है एक देश, एक चुनाव कराने में सरकार को कई संवैधानिक चीज़ो को ध्यान में रखना पड़ेगा। यह एकदम से नहीं किया जा सकता इसके लिए समय लगेगा। वहीं सरकार किसी भी चीज को अगर लागू करती है तो उसे लागू करने के पीछे उसकी मंशा क्या है यह देखना जरूरी होता है। अगर मंशा सही होती है तो न्यायालय भी उसे उचित मानता है।

व्यापार पर भी पड़ेगा असर

देश में अगर एक साथ चुनाव होते है तो उसका प्रभाव हर वर्ग पर पड़ेगा। जिसमें इसका असर व्यापार पर भी पड़ेगा। वहीं इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश आदर्श व्यापार मण्डल के अध्यक्ष संजय गुप्ता का कहना है कि देश में या प्रदेश में चुनाव होते है तो व्यापारियों का किसी न किसी रूप में फायदा होता है चाहें वह बैनर पोस्टर की प्रिंटिंग के रूप में भले ही हो लेकिन राष्ट्र सर्वोपरि है। संजय गुप्ता का कहना है कि यह सच है कि एक राष्ट्र, एक चुनाव होने से देश का आर्थिक पहलू पर फायदा होगा लेकिन इसके कई और भी पक्ष हैं जिनपर भी चर्चा होनी चाहिए।

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