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Why Maa Lakshmi and Lord Ganesha are Worshiped Together : दिवाली भगवान श्री राम के अयोध्या लौटने के शुभ अवसर के रुप में मनायी जाती है। हालाँकि इस शुभ दिन देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश का हर घर में स्वागत किया जाता है। देवी महालक्ष्मी के रूपों की पूजा करना दिवाली का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। कहा जाता है कि दिवाली की रात, देवी लक्ष्मी प्रत्येक घर में जाती हैं और सभी को महान धन के साथ आशीर्वाद देती हैं।
मुख्य रुप से दिवाली का पर्व धन की देवी लक्ष्मी और शुभता के प्रतीक गणेश जी के दर्शन पूजन का पर्व है। यह सर्वविदित है कि देवी लक्ष्मी धन, भाग्य, विलासिता और समृद्धि की देवी हैं। जबकि भगवान गणेश को बाधाओं के निवारण, बुद्धिमत्ता, कला और विज्ञान के संरक्षक और बुद्धि और देवह् के रूप में जाना जाता है। हम सभी ने देखा है कि सदैव लक्ष्मी जी के साथ श्रीगणेश का पूजन करने की परंपरा है। दोनों का सदैव साथ ही पूजन किया जाता है। ऐसे में कई लोग यह जानने के लिए आतुर रहते हैं कि ऐसा क्यों है।
इससे एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई हैं। लक्ष्मी माता धन वैभव की माता होती हैं इसलिये उनका मृत्यु लोक में विशेष स्थान था। सभी लोग अन्य देवी-देवता की महत्ता को भुलाकर माता लक्ष्मी को विशेष रूप से प्रसन्न करने में लगे रहते थे ताकि उनके घर में कभी भी धन की कमी ना हो। अपनी पूजा व महत्व को देखकर माता लक्ष्मी का अहंकार दिनोदिन बढ़ता जा रहा था जिसका आभास भगवान विष्णु को हो गया था।
एक दिन वैकुंठ धाम में दोनों बैठे बाते कर रहे थे कि तभी माता लक्ष्मी ने अपनी महत्ता के गुणों का बखान करना शुरू कर दिया। माता लक्ष्मी निरंतर अपने गुणों का बखान किये जा रही थी व भगवान विष्णु उन्हें ध्यानपूर्वक सुन भी रहे थे। उनके अहंकार का नाश करने के लिए भगवान विष्णु ने एक सुंदर योजना बनायी। चूँकि माता लक्ष्मी के कोई संतान नही थी इसलिये भगवान विष्णु ने उनसे कहा कि चूँकि तुम में सभी गुण विद्यमान हैं लेकिन एक चीज को छोड़कर।
एक नारी तभी पूर्ण मानी जाती हैं जब उसके कोई संतान हो। बिना संतान के हर नारी अधूरी ही रहती हैं। यह सुनकर लक्ष्मी माता विचलित हो उठी तथा संतान प्राप्ति की लालसा उनमे जाग उठी। अपनी इसी बैचैनी को लेकर वे माता पार्वती के पास गयी। चूँकि माता पार्वती की दो संतान थी एक भगवान कार्तिक व दूसरे भगवान गणेश।
माता पार्वती उन्हें अपने दूसरे पुत्र गणेश को गोद देने को तैयार थी लेकिन उनकी आशंका यह थी कि लक्ष्मी का निवास कभी एक स्थल पर नही होता फिर वह कैसे उनके पुत्र गणेश का ध्यान रख पाएंगी। माता लक्ष्मी हमेशा अपना स्थान बदलती हैं तथा यहाँ से वहां विचरण करती हैं। ऐसे में वे उनके पुत्र गणेश का ध्यान किस प्रकार रख पाएंगी।
तब माता लक्ष्मी ने माता पार्वती को वचन दिया कि चाहे इसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े लेकिन अपने पुत्र गणेश का ध्यान वे हमेशा रखेंगी। माता लक्ष्मी से यह आश्वासन पाकर माता पार्वती को संतोष पहुंचा व उन्होंने भगवान गणेश को लक्ष्मी माता को गोद दे दिया। भगवान गणेश को पुत्र रूप में पाकर माता लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हुई। तब से ही उन्होंने यह घोषणा कर दी कि अब से उनकी हरेक पूजा में भगवान गणेश का विशेष स्थान होगा तथा उनकी पूजा से पहले गणेश जी को पूजा अनिवार्य होगी।
यदि उनकी पूजा भगवान गणेश के बिना की गयी तो उस घर में लक्ष्मी का वास नही होगा तथा वह पूजा भी अधूरी मानी जाएगी। माता लक्ष्मी के इन कथनों के फलस्वरूप ही उनकी पूजा में हमेशा भगवान गणेश का स्थान अनिवार्य रूप से रहने लगा। जहाँ कही भी माता लक्ष्मी की आराधना की जाती हैं वहां पहले भगवान गणेश को पूजना अनिवार्य होता हैं।
जैसे माता लक्ष्मी को धन व वैभव की देवी मन जाता हैं उसी प्रकार भगवान गणेश को विद्या व बुद्धि का देवता। जिस व्यक्ति के पास धन हैं लेकिन विद्या व बुद्धि नही तो वह उस धन का कभी भी सदुपयोग नही कर पायेगा। इसके साथ ही वह अपनी मुर्खता से वह धन जल्द ही खो देगा।
ठीक उसी प्रकार जिस व्यक्ति के पास विद्या व बुद्धि हैं उसके पास धन ना होते हुए भी कभी धन की कमी नही होगी तथा वह जीवनभर अपनी बुद्धि के बल पर जीवनयापन कर पाएगा। इसलिये व्यक्ति को कभी भी बिना सोचे-समझे धन का दुरपयोग नही करना चाहिए। केवल धन का सदुपयोग करने के कारण ही वह धन उसके घर में टिकता हैं तथा बढ़ता ही जाता है।
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