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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Climate Change Alert जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए अगर जल्द कड़े फैसले नहीं लिए गए तो दुनिया की शक्तिशाली आर्थिक शक्तियां वर्ष 2050 पूरी तरह तबाह हो सकती हैं। ग्लासगो में कॉप-26 बैठक से ठीक पहले इटली के रिसर्च सेंटर यूरो मेडिटेरियन सेंटर आॅन क्लाइमेंट चेंज (सीएमसीसी) ने यह रिपोर्ट जारी कर चेतावनी दी है।
रिपोर्ट के अनुसार ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कोई फैसला नहीं लिया गया तो अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा, फ्रांस, ब्राजील, मेक्सिको, जापान, चीन और रूस जैसी शक्तिशाली आर्थिक शक्तियां पूरी तरह तबाह हो सकती हैं। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के फलस्वरूप सूखा, तेज गर्मी, समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी के साथ खाद्य पदार्थों का संकट गहराने से स्थिति बिगड़ सकती है। गर्मी और तपिश पर काबू नहीं पाया तो इससे सदी के अंत तक यूरोप में 90 हजार लोगों की मौत होगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 7.5 फीसदी की कमी लानी होगी तभी जीवन सुरक्षित होगा। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से फ्रांस और इंडोनेशिया को मछली बाजार में भारी नुकसान होगा। प्रमुख कारण समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी और महासागरों के तापमान में बढ़ोतरी होगी। तटीय क्षेत्रों पर किए गए निर्माण को भी नुकसान होगा। इससे 2050 तक जापान को 468 और दक्षिण अफ्रीका को 945 अरब डॉलर का नुकसान होगा।
वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि गर्मी और तपिश पर काबू नहीं किया गया तो इस सदी के अंत तक यूरोप में मानव जीवन की अपूरणीय क्षति होगी। उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन के साथ दुनिया कई तरह की घातक बीमारियों से भी जूझेगी। वर्ष 2050 तक अमेरिका की 83 फीसदी आबादी का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। डेंगू से भी 92 फीसदी आबादी को खतरा होगा।
देश में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना की शुरुआत वर्ष 2008 में किया गया था। इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है।
सीएमसीसी की वैज्ञानिक डोनाटेला स्पानो का कहना है कि हम अगर एक दूसरे के फैसले का इंतजार करते रहे तो आने वाले समय में ये तय है कि सब एक साथ बर्बाद हो जाएंगे।
रिपोर्ट के मुताबिक जी-20 देश वैश्विक स्तर पर 80 फीसदी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के जिम्मेदार हैं। इसमें यह भी अनुमान लगाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जी-20 देश 2050 तक अपनी अर्थव्यवस्था के कुल उत्पादन में चार फीसदी का नुकसान उठाएंगे। यही नहीं वर्ष 2100 तक ये नुकसान बढ़कर आठ फीसदी तक हो जाएगा।
जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। जलवायु परिवर्तन को किसी एक स्थान विशेष में भी महसूस किया जा सकता है एवं संपूर्ण विश्व में भी। यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो यह इसका प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है।
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