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India News (इंडिया न्यूज), Assembly Election 2023: 2024 से पहले सत्ता का असली सेमीफ़ाइनल अब शुरू होगा। 17 तारीख़ को मध्य प्रदेश तो 25 नवंबर को राजस्थान में वोट डाले जाएंगे। लोकतंत्र की प्रयोगशाला में महाआहुति है, आप बस इतना याद रखिए कि हर एक वोट ज़रूरी होता है। कांग्रेस के ‘कमल’ का मुक़ाबला बीजेपी के ‘शिव’ से है तो राजस्थान में गहलोत ‘सियासी जादू’ के साथ तैयार हैं। बीजेपी-कांग्रेस के बीच जंग है तो क्षेत्रीय पार्टियां ‘किंगमेकर’ बन सकती हैं।
चुनाव में ‘राम’ आए हैं, सियासी काम लाए हैं। आग में घी डालने का काम किया है कांग्रेस प्रवक्ता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने, जिन्होंने कह डाला कि कुछ कांग्रेस नेताओं को ‘राम’ और ‘हिंदू’ से नफ़रत है।
ये बयान कांग्रेस के गले की हड्डी बनेगा, ना उगल पाएंगे और ना ही निगल सकेंगे। दिग्विजय सिंह कहते फिर रहे हैं कि “पहले हिंदू और मुसलमान को बांटा जाता था, अब हिंदू-हिंदू को राम के नाम पर बांटा जा रहा है। 80 के दशक के अंत से लेकर साल 2023 तक हिंदी बेल्ट का चुनाव ‘राम’ नाम के बिना नहीं होता। हो भी कैसे- धर्म की प्रयोगशाला में सियासी कर्म आज़माया जाता है।
मध्य प्रदेश की लड़ाई का फ़ैसला मालवा-निमाड़, ग्वालियर-चंबल, मध्य भारत, महाकौशल, विंध्य और बुंदेलखंड अंचल की जनता को करना है। राजस्थान का चुनावी नक़्शा जोधपुर, बीकानेर, जयपुर, अजमेर, कोटा, भरतपुर, उदयपुर संभागों में बंटा हुआ है। सबसे पहले बात मध्य प्रदेश की- 6 अंचलों का क़िला जिसने भेदा, समझो वो ही सिकंदर।
मध्य प्रदेश के 6 अंचलों में 230 विधानसभा सीटें आती हैं। 2018 में मालवा-निमाड़ और ग्वालियर-चंबल ने कांग्रेस को सत्ता दिलाई थी। मध्य भारत ने पिछली बार कांग्रेस को झटका दिया था, यहां की 36 में से 24 सीटें बीजेपी की झोली में गिरी और कांग्रेस को महज़ 12 सीट से ही संतोष करना पड़ा। ग़ौरतलब है कि मध्य भारत में ही राजधानी भोपाल से लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बुधनी सीट भी आती है।
महाकौशल ने 2018 में भारतीय जनता पार्टी को निराश किया। महाकौशल की आदिवासी आबादी की नाराज़गी की वजह से महाकौशल की 38 में से 24 सीटें कांग्रेस के खाते में चली गई थीं। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के बड़े नेता कमलनाथ की छिंदवाड़ा सीट भी महाकौशल का हिस्सा है। मध्य प्रदेश का विंध्य क्षेत्र कमाल का है, उत्तर प्रदेश से सीमा लगती है।
अलग विंध्य प्रदेश की मांग आए दिन होती रहती है। विंध्य की ज़मीन बीजेपी के लिए उपजाऊ है- 2018 चुनाव में 30 में से 24 सीटें जीतकर बीजेपी ने विंध्य से कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ कर दिया था। मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड विकास के पैमाने पर पिछड़ा है। कांग्रेस पलायन, ग़रीबी, बेरोज़गारी का मुद्दा उठा रही है तो बीजेपी बुंदेलखंड पैकेज और बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे की दुहाई दे रही है। 2018 में बुंदेलखंड ने बीजेपी का साथ दिया था, यहां की 26 में से 17 सीटें भगवा खाते में गईं। यहां सपा और बसपा जैसी पार्टियां भी खेल बनाने या बिगाड़ने की हैसियत रखती हैं।
राजस्थान की 230 विधानसभा सीटों के लिए ‘मैन टू मैन मार्किंग’ हो रही है। राजस्थान के रण में सत्ता बनाए और बचाए रखने के लिए जयपुर संभाग की 50 सीटें बहुत मायने रखती हैं। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने इन 50 सीटों पर एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रखा है। जयपुर संभाग में प्रतिष्ठा की लड़ाई है। भारतीय जनता पार्टी के 4 सांसद इसी संभाग से मैदान में हैं। जोधपुर संभाग में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सीट भी आती है।
जोधपुर संभाग में कांग्रेस के लिए बीजेपी से कहीं ज़्यादा बड़ी चुनौती RLP-ASP का गठबंधन है। वैसे इस गठबंधन ने अजमेर संभाग में भी फच्चर फंसाने की तैयारी कर रखी है। नागौर में मिर्धाओं की जंग पर भी निगाहें टिकी हुई हैं। सचिन पायलट की वजह से टोंक भी हॉट सीट है। उदयपुर संभाग की 16 सीटों पर कांटे की टक्कर हैं तो बीकानेर, भरतपुर और कोटा संभाग के चक्रव्यूह में दोनो बड़ी पार्टियां फंसी हुई हैं।
ये तो हुई ‘माइक्रो लेवल’ राजनीति की बात, ‘मैक्रो लेवल’ पर देखेंगे तो राजस्थान और मध्यप्रदेश प्रतिष्ठा का प्रश्न है। कांग्रेस ने MP को पाकर गंवाया तो बीजेपी के लिए राजस्थान को वापस पाना इज़्ज़त का सवाल है। वसुंधरा कभी हां कभी ना में फंसी हैं तो शिवराज सिंह चौहान पर भी कंफ्यूजन है। बीजेपी ने दोनों राज्यों की लड़ाई में सांसदों की फ़ौज उतार दी है।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में प्रियंका गांधी मेहनत कर रही हैं। छत्तीसगढ़ से निकला ‘महादेव एप’ का जिन्न कांग्रेस को बाक़ी राज्यों में लपेट चुका है। 2024 से पहले सबसे बड़ा चुनाव है, सबसे बड़ा दांव है, मूंछों पर ताव है। 1975 में आई फ़िल्म ‘आंधी’ का वो गाना तो याद है ना।
सलाम कीजिए
आली जनाब आए हैं
ये पांच सालों का
देने हिसाब आए हैं
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