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मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद् :
Bhai Dooj 2021 Shubh Muhurat : दिवाली के पंचपर्व का पांचवां दिन ,यम द्वितीयाऔर भाई दूज कहलाता है। यह पर्व भाई बहन के पवित्र रिश्ते और स्नेह का प्रतीक है। रक्षा बंधन पर बहनें भ्राताश्री के यहां राखी बांधने जाती हैं और भाई दूज परभ्राता जी , बहना के घर तिलक करवाने जाते हैं।
भारतीय परंपरा के इन पर्वो पर ,एकदूसरे का कुशल क्षेम पूछने , दुख सुख बांटने का यह सुअवसर है जिसे आज की दौड़भाग की जिंदगी में और मोबाइल कल्चर में , समय निकाल कर अवश्य मनाना और निभानाचाहिए। इससे आपसी प्रेम बढ़ता है, गिले शिकवे दूर होते है। बहन के ससुराल में यदि कोई समस्या चल रही है तो भाई के उसके घर जाने से, एक दबाव और प्रभाव भी बना रहता है। यदि सगा भाई नहो तो कजन- रिश्तें का कोई भी भई इस जिम्मेवारी को निभा सकता है।
भ्राता श्री को पूर्व की ओरमुख कर के बैठाएं । तिलक के लिए, थाल में कुमकुम, रौली, अक्षत -साबुत चावल,घी का दीपक, फल या मिठाई रखें। भाई की आरती उतारें ,तिलक करें । दीर्घायु के लिए पूजा अर्चना प्रार्थना करें। भाई ,बहन के यहां जाएऔर तिलक कराए। भ्राता श्री ,बहना के यहांही भोजन करे। इस परंपरा से आपसी सौहार्द्र बढ़ता हैै। आपसी विवादों तथावैमनस्य में कमी आती है। भाई कोई शगुन,आभूषण या गीफट बदले में दे। बहनभी भाई को मिठाई और एक खोपा देकर विदा करे।
भाई दूज पर्व, भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और स्नेह का प्रतीक है। भाई दूज या भैया दूज पर्व को भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया आदि नामों से मनाया जाता है। भाई दूज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाने वाला पर्व है। इस मौके पर बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु और सुख समृद्धि की कामना करती है।
वहीं भाई शगुन के रूप में बहन को उपहार भेंट करता है। भाई दूज के दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन भी होता है। मान्यता है कि इसी दिन यम देव अपनी बहन यमुना के बुलावे पर उनके घर भोजन करने आये थे।. भाई दूज के दिन दोपहर के बाद ही भाई को तिलक व भोजन कराना चाहिए। इसके अलावा यम पूजन भी दोपहर के बाद किया जाना चाहिए।
हिंदू धर्म में जितने भी पर्व और त्यौहार होते हैं उनसे कहीं ना कहीं पौराणिक मान्यता और कथाएं जुड़ी होती हैं। ठीक इसी तरह भाई दूज से भी कुछ पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। ये प्राचीन कथाएं इस पर्व के महत्व को और बढ़ाती है।
पुरातन मान्यताओं के अनुसार भाई दूज के दिन ही यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए थे, इसके बाद से ही भाई दूज या यम द्वितीया की परंपरा की शुरुआत हुई। सूर्य पुत्र यम और यमी भाई-बहन थे। यमुना के अनेकों बार बुलाने पर एक दिन यमराज यमुना के घर पहुंचे। इस मौके पर यमुना ने यमराज को भोजन कराया और तिलक कर उनके खुशहाल जीवन की कामना की।
इसके बाद जब यमराज ने बहन यमुना से वरदान मांगने को कहा, तो यमुना ने कहा कि, आप हर वर्ष इस दिन में मेरे घर आया करो और इस दिन जो भी बहन अपने भाई का तिलक करेगी उसे तुम्हारा भय नहीं होगा। बहन यमुना के वचन सुनकर यमराज अति प्रसन्न हुए और उन्हें आशीष प्रदान किया। इसी दिन से भाई दूज पर्व की शुरुआत हुई। इस दिन यमुना नदी में स्नान का बड़ा महत्व है क्योंकि कहा जाता है कि भाई दूज के मौके पर जो भाई-बहन यमुना नदी में स्नान करते हैं उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भाई दूज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर द्वारिका लौटे थे इस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फल,फूल, मिठाई और अनेकों दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। सुभद्रा ने भगवान श्री कृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना की थी। इस दिन से ही भाई दूज के मौके पर बहनें भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं और बदले में भाई उन्हें उपहार देते हैं।
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