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इंडिया न्यूज, यमुनानगर
Kapalmochan Fair is a Symbol of Faith ट्विनसिटी यमुनानगर-जगाधरी में कई वर्षों से कपालमोचन मेले का आयोजन चल रहा है। कोरोना महामारी के कारण इसमें व्यवधान भी पड़ा। इस बार प्रशासन ने 15 नवंबर से इसके आयोजन का मन बना लिया है। यहां गुरु गोबिंद सिंह ने केसरी रंग का सिरोपा भेंटकर करने के बाद ये परंपरा शुरू की थी। यहां लाखों श्रद्धालु कपाल मोचन मेले में शामिल होने के लिए दूर-दूर से आते हैं। अधिकतर संगत पंजाब से जुड़ी होती है। जिले से 26 किमी दूर कपालमोचन तीर्थ ऋषि-मुनियों की तपो स्थली रही है।
तीर्थ स्थल को सभी धर्म के लोगों की आस्था का संगम कहा जाता है। मेले के आयोजन समय में श्रद्धालु पवित्र सरोवरों में मोक्ष की डुबकी लगाएंगे। कार्तिक पूर्णिमा स्नान के बाद मेला शुरू होगा। इस बार कोरोना को देखते हुए गाइडलाइन की पालना करनी होगी। कपालमोचन के साथ आदिबद्री धार्मिक स्थल पर भी पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालु जाते हैं। श्रद्धालु जगाधरी से बर्तन खरीदकर ही यात्रा पूरी समझते हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यहां 250 बसों को चलाया जाएगा।
श्रद्धालु सबसे पहले कपालमोचन सरोवर में स्नान करते हैं। पुराणों में इसका सोमसर के नाम से जिक्र है। यहां पर भगवान श्री रामचंद्र, भगवान कृष्ण, गुरु नानक देव, गुरु गोबिंद सिंह आए थे।
सरोवर के निकट गुरु गोबिंद सिंह ने माता चंडी की मूर्ति की स्थापना की थी। गुरु गोबिंद सिंह ने कपालमोचन के महंत को हस्त लिखित पट्टी और ताम्र पत्र दिया।
यहां श्रद्धालु ऋणमोचन सरोवर में स्नान करते हैं। पुराणों के अनुसार स्नान से ऋणों से मुक्ति मिलती है। श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ यहां यज्ञ किया था। पांडव भी यहां पितृ ऋण से मुक्त हुए थे। गुरु गोबिंद सिंह भी यहां दो बार आए। वर्ष 1746 में गुरु गोबिंद सिंह भांगानी की लड़ाई जीतने के बाद 52 दिनों तक यहां रुके थे।
यहां अस्त्र-शस्त्र धोए थे। केसरी रंग का सिरोपा भेंट करने की परंपरा शुरू हुई। गुरु गोबिंद सिंह ने युद्ध के शिरोपा देकर सैनिकों का मनोबल बढ़ाया था।
भगवान श्रीरामचंद्र रावण का वध करने के बाद माता सीता और लक्ष्मण, हनुमान सहित पुष्पक विमान से यहां स्नान करके ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हुए। कुंड का निर्माण किया। जिसे सूरजकुंड के नाम से जाना जाने लगा। इस स्थान पर सिद्ध पुरुष दूधाधारी बाबा रहते थे।
दूधाधारी समाज की मान्यता मुस्लिम धर्म से भी जुड़ी है। मुगल सम्राट अकबर भी यहां आए थे। विभिन्न राज्यों से साधु आकर सूरजकुंड सरोवर के तट पर धूना रमाते हैं। यहां पर कदंब का पेड़ है।
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