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India News (इंडिया न्यूज), Sanjay Leela Bhansali: अक्सर संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों में तवायफों,सेक्स वर्करों के किरदार को लेकर बार-बार सामने आते हैं। सांवरिया में रानी मुखर्जी से लेकर देवदास में माधुरी दीक्षित, गंगूबाई काठियावाड़ी में आलिया भट्ट और अब हीरामंडी इस सभी फिल्मों में भंसाली ने तवायफों और सेक्स वर्करों के अलग-अलग पहलू को दिखाया है। गैलाटा प्लस के साथ एक नए इंटरव्यू मे निर्देशक ने अपने अब तक के कार्यों में तवायफों और सेक्स वर्करों के प्रति अपने आकर्षण के बारे में खुलकर बात की।
बातचीत के दौरान संजय ने कहा कि “मुझे लगता है कि ये वो औरतें हैं जिन्होंने अपने भीतर बहुत से रहस्यों को छिपा रखा है और उनके किरदार में कई परतें हैं। तवायफें या फिर वैश्याएं ये सब अलग-अलग हैं। लेकिन इन सभी के भीतर एक अलग तरह की ताकत है जिसमें मेरी बहुत दिलचस्पी है। मुझे वह पावर बहुत आकर्षित करती है, कि ये महिलाएं कितनी दिलचस्प हैं। वो कहां गाती हैं, कहां नाचती हैं। वो कहां खुद को बयां करती हैं, उनके नृत्य और गाने में उनका दर्द झलकता है।”
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उन्होंने आगे कहा, “उन्हें जीने की कला आती है, शिल्प कला आती है, कढ़ाई-बुनाई आती है, और जिस तरह की जूलरी वो पहनती हैं। वो कला की तवायफें हैं। हम लोग क्या हैं? हम लोग आर्टिस्ट लोग हैं। उसको आप उसको आप समझगीर बोलो, भांड बोलो, चाहे जो बोलो। मेरे को तो वो चाहिए। मैंने उस चीज की रचना की है जो अपने आप में रहस्यों से भरी है। मुझे ये चेहरे (वैश्याएं) बहुत आकर्षित करते हैं। वहां पर जो राशन की लाइन में जो चार मिडिल क्लास हाउसवाइफ खड़ी हैं वो मुझे आकर्षित नहीं करतीं हैं।”
भंसाली ने मुगल-ए-आजम में मधुबाला और अदालत में नरगिस दत्त से अपने प्रभाव के बारे में भी बताया। उन्होंने यह भी कहा कि वह वी शांताराम और खासकर ऋत्विक घटक की मेघे ढाका तारा की फिल्मों से प्रभावित थे।
हीरामंडी द डायमंड बाज़ार 1 मई को नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई थी। सीरीज़ में मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, अदिति राव हैदरी, ऋचा चड्ढा और अन्य प्रमुख भूमिकाएँ हैं। यह श्रृंखला 1940 के दशक के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उथल-पुथल भरी पृष्ठभूमि पर आधारित वेश्याओं और उनके संरक्षकों की कहानियों के माध्यम से एक चमकदार जिले हीरामंडी की सांस्कृतिक वास्तविकता की पड़ताल करती है।
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