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Ashok Gehlot: बदले-बदले नजर आ रहे हालात, अब गहलोत की दिल्ली में एंट्री जरूरी

Sailesh Chandra • LAST UPDATED : June 13, 2024, 1:11 pm IST
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Ashok Gehlot: बदले-बदले नजर आ रहे हालात, अब गहलोत की दिल्ली में एंट्री जरूरी

Ashok Gehlot

India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, जयपुर: लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद बदले हालात में राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की केंद्रीय संगठन में वापसी को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। गहलोत के लिए राजनीतिक रूप से अब केंद्र में वापसी बहुत जरूरी हो गई है। यह वापसी भी जितनी जल्दी हो जाए, उतना उनके हित में है। यदि किसी कारण से वापसी नहीं हुई तो विरोधी ताकतवर हो जाएंगे। हालांकि राजस्थान कांग्रेस में फिलहाल वे ही सबसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं, लेकिन जिस तरह के हालात राजस्थान कांग्रेस और दिल्ली आलाकमान के इर्द—गिर्द बने हुए है, वह उनके लिए चिंता बढ़ाने वाले हैं। बीते तीन—चार साल में राजस्थान कांग्रेस में जो कुछ घटनाक्रम घटा, उससे दिल्ली में स्थिति बदली हैं। हालांकि गांधी परिवार का उन पर भरोसा अभी भी बना हुआ दिखाता है। सोनिया गांधी का राज्यसभा के लिए राजस्थान का चयन और फिर अमेठी की जिम्मेदारी दर्शाता है कि गांधी परिवार 25 सितंबर, 2022 की घटना को भूल गया है। हालांकि इसके बाद भी दिल्ली के केंद्रीय नेतृत्व में उनके पक्षधरों की संख्या कम हुई है।

प्रदेश में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के समय दिल्ली में उनके पक्ष में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ही दिखाई दिए थे। अन्य नेताओं ने उनका विशेष साथ नहीं दिया। गहलोत ने तीसरे कार्यकाल में अपने दिल्ली के प्रबंधन पर शायद इसलिए ज्यादा ध्यान नहीं दिया कि उन्हें अपने काम से सत्ता में वापसी की पूरी उम्मीद थी। गहलोत के लिए विधानसभा का चुनाव जीतना राजनीतिक रूप से ताकतवर होने के लिए जरूरी था, लेकिन चुनाव के अंतिम दौर में वह कुछ ऐसे लोगों से घिर गए जिन्होंने उन तक सही स्थिति को नहीं पहुंचने दिया। दिल्ली के कई नेताओं की नाराजगी तो इसी बात को लेकर थी कि उनसे वह बात ही नहीं कर पाते थे।

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दिल्ली के नेताओं की उम्मीदें राजस्थान पर नहीं थी

जो दिल्ली कांग्रेस के ताकतवर नेता थे, वह मानने को तैयार ही नहीं थे कि राजस्थान वापसी करेगा। उनकी सभी उम्मीदें मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ पर लगी थी, लेकिन राजस्थान के परिणामों ने उन्हें हैरान किया। यह नेता प्रदेश में सीटों की संख्या 50 से नीचे मान रहे थे, लेकिन सीट 70 आई। इसमें एक बात यह सच साबित हुई कि गहलोत सरकार रिपीट नहीं हुई। राजनीतिक रूप से गहलोत के लिए तो बड़ा झटका था, लेकिन कांग्रेस को भी बड़ा नुकसान हुआ। सरकार रिपीट होती तो कांग्रेस को लोकसभा के लिए आॅक्सीजन मिलती, जिससे हो सकता था कि परिणाम कुछ और ही होते। फिलहाल कांग्रेस के लिए लोकसभा के परिणाम बहुत खराब भी नहीं आए। उम्मीद से ज्यादा सीट कांग्रेस ने जीती है। जो भी सीट आई, उनकी जीत का श्रेय राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के हिस्से में जाता है। रायबरेली और अमेठी ने छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल और राजस्थान के पूर्व सीएम गहलोत ने भले ही जिम्मेदारी संभाली हो, लेकिन श्रेय प्रियंका के हिस्से में ही गया। इन्हीं के साथ राजस्थान के परिणामों की भी चर्चा हो रही है। कई तरह की चर्चाएं भी चल रही है।

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राजस्थान कांग्रेस में बने कई गुट, सभी के तार जुड़े दिल्ली से

प्रदेश में कांग्रेस में कई गुट बन गए है। बड़ी बात यह है कि सभी के तार दिल्ली से जुड़े हुए हैं। गहलोत के घोर विरोधी माने जाने वाले सचिन पायलट दिल्ली में एंट्री पा चुके हैं। वे महासचिव पद पर कार्यरत हैं। उनके समर्थक दावा करते हैं कि राजस्थान में जीतने वाले आधे सांसद विधायक उनके समर्थक हैं। एक दिन पहले सचिन के पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय राजेश पायलट की पुण्यतिथि में अधिकांश सांसद, पूर्व और मौजूदा विधायकों के साथ ही बड़ी संख्या में पदाधिकारी पहुंचें थे। इस संख्या बल ने अपने आप में बड़ा संदेश दे दिया है। इसका मतलब यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत को अब अपनी राजनीति बदलनी होगी। अभी तक तो सचिन ही गुट था, लेकिन अब हरीश चौधरी भी दिल्ली का स्वाद चख चुके हैं। वह भी अब सचिन के साथ हैं। हरीश चौधरी की भी अपनी एक महत्वाकांक्षा है। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी मजबूत हुए हैं। उनकी अध्यक्षता में पार्टी ने गठबंधन कर 11 सीट जीती है। जाट नेता के रूप में उभरे हैं। कह सकते गुट कई बन गए हैं। दिल्ली में भी पांच पावर सेंटर हैं। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, के सी वेणुगोपाल और आखिर में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे। मतलब पांच में से कम से कम चार को तो राजी करना ही होगा, तभी दिल्ली में एंट्री संभव है।

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