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आखिर क्यों हिन्दू धर्म के वेदों को रचा गया था दो बार? जानें इसके पीछे की पूरी कहानी!

Prachi Jain • LAST UPDATED : July 7, 2024, 5:06 pm IST
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आखिर क्यों हिन्दू धर्म के वेदों को रचा गया था दो बार? जानें इसके पीछे की पूरी कहानी!

India News (इंडिया न्यूज), Vedas Of Hindu Religion: हिन्दू धर्म में वेदों को सनातन धर्म का मौलिक आधार माना जाता है। इन्हें “अपौरुषेय” यानी मानव से प्राप्त नहीं माना जाता, बल्कि दिव्य ऋषियों द्वारा आध्यात्मिक अनुभव के आधार पर प्राप्त अद्भुत ज्ञान का संग्रह माना जाता है। यह ज्ञान समस्त जीवन के प्रत्येक पहलू, चाहे धार्मिक हो या व्यावसायिक, को प्रभावित करता है।

वेदों में विभिन्न विषयों पर व्यापक ज्ञान है, जैसे कि धर्म, दान, यज्ञ, विज्ञान, राजनीति, समाज, जीवन-शैली आदि। इनका अध्ययन और अनुसरण हिन्दू समाज में सदैव महत्त्वपूर्ण रहा है। वेदों के अलावा, पुराण, उपनिषद, धर्मग्रंथ और आयुर्वेद जैसे ग्रंथ भी वेदों से उत्पन्न हुए हैं और इन्हें भी हिन्दू धर्म का महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इन सभी ग्रंथों ने भारतीय सभ्यता, धर्म, और समाज के विकास में अपना योगदान दिया है और आज भी उनका महत्त्व अद्वितीय है।

यह कथा हिन्दू पुराणों में व्याप्त है। भगवान विष्णु की इस सृष्टि कथा के अनुसार, जब सृष्टि के कार्य का आरम्भ हुआ तो भगवान विष्णु ने अपनी नाभि से ब्रह्मा देव को प्रकट किया। ब्रह्मा देव को इस रूप में ब्रह्मांड की उत्पति और सृजन का कार्य सौंपा गया। इस प्रक्रिया में ब्रह्मा देव को ब्रह्मांड की सृष्टि करने की शक्ति प्राप्त हुई, और उन्होंने अपने विशेष शक्तियों का उपयोग करके विश्व के विभिन्न अंगों को बनाया।

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यह पुराणिक कथा हिन्दू धर्म में सृष्टि के आरंभ के उस महत्वपूर्ण पल को दर्शाती है, जब भगवान विष्णु ने ब्रह्मा को ब्रह्मांड के संचालन का जिम्मा सौंपा।

जाने पूरी कहानी

 

1. भगवान विष्णु से की ज्ञान की प्राप्ति

ब्रह्मा देव की यह कथा हिन्दू पुराणों में मिलती है, जिसमें उन्होंने भगवान विष्णु से ज्ञान की प्राप्ति के लिए तपस्या की थी। ब्रह्मा देव को अपने अहंकार या अहम की वजह से ज्ञान की कमी महसूस हुई थी, जिसके कारण उन्होंने तपस्या करके भगवान विष्णु से ज्ञान प्राप्त किया।

इसके बाद, ब्रह्मा देव ने अपने पुत्र देवर्षि नारद को इस ज्ञान का सार सिखाया। नारद देव खुद भी एक प्रसिद्ध ऋषि हैं, जिन्होंने अनेक पुराणों और धार्मिक ग्रंथों को ऋषि वेद व्यास के साथ सम्बोधित किया है। नारद देव ने ब्रह्मा देव से ज्ञान प्राप्ति के सम्बंध में भी अध्ययन किया और उनसे गहरी विचारधारा और ज्ञान का सार सीखने का मौका प्राप्त किया था।

2. हिन्दू पुराणों में हैं प्रसिद्ध

ब्रह्मा देव के मुख से वेदों के शब्द स्वयं ही प्रकट होने और वायु में लिखे गए लेख की तरह अंकित होने की कथा हिन्दू पुराणों में प्रसिद्ध है। इस प्रकार, वेदों का निर्माण हुआ और उन्हें सबसे पहले ब्रह्मा देव ने रचा था।

वेदों के ज्ञान को प्राप्त करने वाले सप्त ऋषियों को “सप्तर्षि” भी कहा जाता है। इन सप्त ऋषियों के नाम हैं: अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप, गौतम, जमदग्नि, विश्वामित्र, और भरद्वाज। इनमें से प्रत्येक ऋषि ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर वेदों का ज्ञान प्राप्त किया और उसे अपने शिष्यों और आगामी पीढ़ियों को शिक्षा दी। इस प्रकार, वेदों का ज्ञान ऋषिगणों के माध्यम से समुदाय को प्राप्त हुआ।

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3. कई ऋषियों द्वारा लिखे जाने का किया जा रहा था प्रयास

वेदों का ज्ञान बहुत प्राचीन है और इसे संस्कृत में बहुत क्लिष्ट रूप में अंकित किया गया था। संस्कृत भाषा में वेदों के शब्द, मान्यता, और व्याकरण की विशेषता है, जो उसे अद्वितीय बनाती है। इसी कारण, वेदों को उनके मौलिक रूप में संरक्षित रखने का प्रयास किया गया और समय-समय पर उन्हें लिखने की प्रयत्न किए गए, लेकिन उनके अद्वितीयता और सांस्कृतिक महत्त्व के कारण इस कार्य में सफलता प्राप्त नहीं हुई।

4. द्वापर युग का अंत

वेदव्यास जी के कार्य का विवरण सही है। द्वापर युग के अंत के समय में, महर्षि वेदव्यास ने वेदों और पुराणों को संग्रहित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने वेदों के विस्तारित स्वरूप को संक्षिप्त रूप में बदला और उन्हें चार भागों में विभाजित किया: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद।

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इस प्रकार, वेदव्यास जी ने वेदों की भाषा को सामान्य लोगों तक पहुंचने वाली बनाया। उनके द्वारा किए गए इस कार्य के परिणामस्वरूप, वेदों की महत्ता और उनकी शिक्षाएं आज भी हमारे समाज में महत्वपूर्ण हैं और वेदों का अध्ययन धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।

5. 6000 B।C का लगा था समय

वेदों का निर्माण सृष्टि के बहुत पहले हुआ था, लेकिए वेदव्यास जी ने उन्हें संस्कृत भाषा में संक्षिप्त और सरल रूप में व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जबकि वेदों की समय-सीमा का निर्धारण शोध कर्ताओं के द्वारा विभिन्न आधारों पर किया जाता है, लेकिन इस बात को लेकर निश्चितता का समय-सीमा स्थापित करना बहुत कठिन है। वेदों के विचारशीलता और धार्मिक महत्व के कारण, इस पर विवाद व विचार हमेशा सम्प्रेषण होते रहते हैं।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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