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Hardik and Natasha divorce : पति की प्रॉपर्टी पर पत्नी का होता है कितना हक, जानें क्या कहता है कानून

PUBLISHED BY: Ankita Pandey • LAST UPDATED : July 21, 2024, 1:50 am IST
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Hardik and Natasha divorce : पति की प्रॉपर्टी पर पत्नी का होता है कितना हक, जानें क्या कहता है कानून

India News (इंडिया न्यूज),Hardik Pandya-Natasha Stankovic divorce: भारतीय क्रिकेट टीम के ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या और उनकी पत्नी नताशा स्टेनकोविक एक दुसरे से अलग हो गए है। दोनों ने गुरुवार रात को अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए अलग होने की घोषणा किए है। दोनों के इस फैसले ने फिल्म बिरादरी, क्रिकेट जगत और प्रशंसकों सबको चौंका दिया। इस घोषणा के साथ ही उनके 4 साल रोमांटिक स्टेटस को लेकर महीनों से चल रही अटकलों का अंत हो गया है।

भारत में तलाक एक कठिन और भावनात्मक रूप से थका देने वाली प्रक्रिया हो सकती है। इसलिए हमें अपने कानूनी अधिकारों और लाभों को जानना बहुत महत्वपूर्ण है। इस कठिन दौर से गुजर रही महिलाओं को यह जानने की जरूरत है कि उनके पास क्या अधिकार हैं, खासकर जब संपत्ति के बंटवारे और गुजारा भत्ता जैसी चीजो की बात आती है। जानिए क्या है पति की संपत्ति और गुजारा भत्ते पर महिलाओं के कानूनी अधिकार के बारे में

तलाक में संपत्ति के अधिकार

यदि पति और पत्नी दोनों ने संयुक्त रूप से किसी संपत्ति का भुगतान किया है और उस पर मालिकाना हक रखते हैं, तो पत्नी अपने 50% हिस्से के अलावा पति के हिस्से से अपना हिस्सा भी मांग सकती है। तलाक के अंतिम रूप से तय होने तक पत्नी को संपत्ति में रहने का भी अधिकार है। यदि संपत्ति केवल पति द्वारा खरीदी गई है, तो पत्नी भरण-पोषण का दावा कर सकती है, क्योंकि उसे श्रेणी I की कानूनी उत्तराधिकारी माना जाता है।

अपने पति के नाम पर पंजीकृत संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा करने के लिए, महिला को अपने वित्तीय योगदान का दस्तावेज दिखाना होगा। महिला ने अपने पैसे से जो भी संपत्ति खरीदी है, वह उसकी है। वह इन संपत्तियों को देने, बेचने या रखने के लिए स्वतंत्र है।

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भरण-पोषण अधिकार

एक महिला भारतीय दंड संहिता की धारा 125 के तहत औपचारिक अलगाव के दौरान अपने और अपने बच्चों के लिए भरण-पोषण की मांग कर सकती है। इसमें शामिल हैं:

अंतरिम भरण-पोषण: भरण-पोषण के लिए अनुरोध किए जाने के समय से लेकर न्यायालय के निर्णय तक पति द्वारा भुगतान किया जाने वाला भरण-पोषण।

स्थायी भरण-पोषण: हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा 25 के अनुसार, न्यायालय एकमुश्त या मासिक भुगतान निर्धारित कर सकता है।

हिंदू विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम जैसे कई कानून भारत में गुजारा भत्ता को नियंत्रित करते हैं। गुजारा भत्ता निर्धारित करते समय, अदालतें कई चरों को ध्यान में रखती हैं, जिसमें जोड़े का जीवन स्तर, उनकी शादी की अवधि और किसी भी बच्चे की जरूरतें शामिल हैं। अगर पति-पत्नी के बीच वेतन में काफी अंतर है तो कामकाजी महिलाओं को भी गुजारा भत्ता दिया जा सकता है। तलाक के मामले में संपत्ति की सुरक्षा के लिए योजना बनाना जरूरी है। ट्रस्ट बनाकर, शादी से पहले की होल्डिंग का सावधानीपूर्वक रिकॉर्ड रखकर और अलग-अलग बैंक खाते रखकर व्यक्तिगत संपत्ति को वैवाहिक संपत्ति से अलग करना संभव है।

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