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India News (इंडिया न्यूज), Mahabharat Karn Vivah: महाभारत में कर्ण एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली पात्र हैं, जिनके बिना कथा अधूरी सी लगती है। कर्ण में एक आदर्श व्यक्ति के सभी गुण थे—वह एक समर्पित पुत्र, कुशल योद्धा, सच्चा मित्र, और दानवीर थे। इसके बावजूद, कर्ण को जीवन भर अपने परिवार से दूर रहना पड़ा और अपमान सहना पड़ा। फिर भी, उन्होंने धैर्य और संयम का त्याग नहीं किया। जब स्वयं इंद्र उनके कुंडल और कवच लेने स्वर्ग से धरती पर आए, तब भी कर्ण हंसते हुए उन्हें दे दिए।
कर्ण द्रौपदी से विवाह करने के इच्छुक थे लेकिन नियति ने कुछ और ही तय किया। सूतपुत्र होने के कारण वे द्रौपदी से विवाह नहीं कर सके, और इस असफलता का दुःख उन्हें बहुत भारी पड़ा। इस दुःख को उनके पिता आधीरथ ने देखा, जिन्होंने कर्ण का विवाह कराने का निर्णय लिया। कर्ण जन्म के समय कुंती ने लोकलाज के डर से उन्हें जल में प्रवाहित कर दिया था, और एक सूत परिवार ने उनका पालन-पोषण किया। इसलिए कर्ण सूतपुत्र कहलाए। आधीरथ, जो रथ निर्माण में कुशल थे, कर्ण के दत्तक पिता थे।
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कर्ण के पिता ने एक योग्य कन्या की तलाश शुरू की, और उनकी खोज दुर्योधन के विश्वासपात्र सारथी सत्यसेन की बहन रुषाली पर समाप्त हुई। रुषाली एक चरित्रवान कन्या थीं, और उनके साथ कर्ण का विवाह तय कर दिया गया। कर्ण ने अपने पिता की बात मानते हुए तुरंत विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, क्योंकि वह एक आदर्श पुत्र थे। इस प्रकार, रुषाली और कर्ण का विवाह धूमधाम से सम्पन्न हुआ।
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कर्ण ने दो विवाह किए थे। उनके दूसरे विवाह में, उन्होंने राजा चित्रवत की बेटी असांवरी और उसकी दासी ध्यूमतसेन की सूत कन्या पद्मावती (सुप्रिया) से विवाह किया। इन दोनों विवाहों के माध्यम से कर्ण ने न केवल अपने परिवार को सम्मानित किया, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को भी मजबूत किया।
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