India News (इंडिया न्यूज), Mahabharat Bheem: कथा के अनुसार, हनुमानजी ने भीम को संकट के समय सहारा देने के लिए तीन बाल दिए थे। यह कथा युद्ध के बाद की है, जब पांडवों ने कौरवों पर विजय प्राप्त की और हस्तिनापुर में सुखपूर्वक निवास कर रहे थे। युधिष्ठिर के राज में प्रजा खुशहाल थी, लेकिन देवऋषि नारद मुनि ने युधिष्ठिर से कहा कि उनके पिता पांडवों के राजा पाण्डु स्वर्गलोक में दुखी हैं, क्योंकि वे जीवित रहते हुए राजसूय यज्ञ नहीं कर पाए थे। नारदजी ने युधिष्ठिर से कहा कि उनके पिता की आत्मा की शांति के लिए उन्हें यह यज्ञ करना चाहिए।
इस निर्देश को मानते हुए युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ की योजना बनाई और नारदजी के परामर्श पर ऋषि पुरुष मृगा को आमंत्रित करने का निर्णय लिया। ऋषि पुरुष मृगा एक विशेष रूप के थे—आधे शरीर मानव का और नीचे से मृग का। उनका ठिकाना किसी को नहीं पता था। इसलिए युधिष्ठिर ने भीम को ऋषि मृगा को खोजने और उन्हें यज्ञ में आमंत्रित करने का कार्य सौंपा।
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भीम ने खोज करते हुए घने जंगलों की ओर बढ़े। वहां उन्हें हनुमानजी मिले, जो एक पेड़ के नीचे लेटे हुए थे। भीम ने सोचा कि यह साधारण बंदर है और उनकी पूंछ हटाने के लिए कहा। हनुमानजी ने चुनौती दी कि यदि वह उनकी पूंछ हटा सकते हैं, तो हटा दें। लेकिन भीम उनकी पूंछ को हिला भी नहीं पाए, जिससे उन्हें समझ में आया कि यह कोई साधारण बंदर नहीं, बल्कि पवनपुत्र हनुमानजी हैं। भीम ने तब हनुमानजी से क्षमा मांगी और उन्हें अपने उद्देश्यों के बारे में बताया।
हनुमानजी ने भीम को तीन बाल दिए और कहा कि इन्हें संकट के समय उपयोग में लाना। भीम ने इन बालों को सुरक्षित रखा और ऋषि पुरुष मृगा को खोजने चल पड़े। कुछ समय बाद उन्हें ऋषि पुरुष मृगा मिल गए, जो शिव की आराधना कर रहे थे। ऋषि ने भीम के साथ चलने को तो स्वीकार किया, लेकिन एक शर्त रखी—भीम को उन्हें पहले हस्तिनापुर पहुंचना होगा, नहीं तो वह उन्हें खा जाएंगे। भीम ने शर्त स्वीकार कर ली और तेजी से हस्तिनापुर की ओर दौड़ने लगे।
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भीम ने जब पीछे मुड़कर देखा, तो पाया कि ऋषि पुरुष मृगा तेजी से उनके करीब आ रहे हैं। इस स्थिति से बचने के लिए भीम ने हनुमानजी के दिए पहले बाल को जमीन पर गिरा दिया। वह बाल तुरंत लाखों शिवलिंगों में बदल गया। ऋषि पुरुष मृगा शिवलिंगों की पूजा करते हुए आगे बढ़े, जिससे भीम को भागने का समय मिला।
फिर भीम ने दूसरा बाल गिराया, जो भी बहुत से शिवलिंगों में बदल गया। इस तरह, भीम ने तीन बार ऐसा किया, जिससे वह हस्तिनापुर तक पहुंचने में सफल रहे। लेकिन जब भीम ने हस्तिनापुर के द्वार में कदम रखा, ऋषि पुरुष मृगा ने उन्हें पकड़ लिया और खाने के लिए तैयार हो गए।
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इस पर भगवान कृष्ण और युधिष्ठिर द्वार पर पहुंचे। युधिष्ठिर ने ऋषि पुरुष मृगा से कहा कि भीम का केवल पैर ही द्वार के बाहर था, बाकी शरीर अंदर था। इसलिए ऋषि पुरुष मृगा केवल भीम के पैर को खा सकते हैं। युधिष्ठिर के इस न्यायपूर्ण निर्णय से ऋषि पुरुष मृगा प्रसन्न हुए और भीम को जीवनदान दिया।
इस घटना के बाद, ऋषि पुरुष मृगा ने यज्ञ सम्पन्न करवाया और पांडवों को आशीर्वाद दिया। इस तरह, हनुमानजी के तीन बाल संकट के समय भीम के काम आए और राजसूय यज्ञ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
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