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India News (इंडिया न्यूज), Haryana Assembly Election: हरियाणा में इस बार के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत पार्टी का मजबूत दलित चेहरा मानी जाने वाली कुमारी शैलजा को राजनीतिक तौर पर साधने की कोशिश की है। कुमारी शैलजा को जमीनी नेता माना जाता है, लेकिन पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दबदबा कायम रखने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने शैलजा को दरकिनार कर अपनी दलित विरोधी मानसिकता को उजागर किया है।
शैलजा विधानसभा चुनाव से पहले ही सक्रिय हो रही थीं। लेकिन जिस तरह से उन्हें अचानक हाशिए पर धकेलने की कोशिशें की गई हैं। पार्टी इस पूरे घटनाक्रम को अंदरूनी मामला बताकर पल्ला नहीं झाड़ सकती। साफ दिख रहा है कि हरियाणा में हुड्डा खेमे के प्रभाव में आकर पार्टी ने रणनीति के तहत दलित और महिला नेता के योगदान को नजरअंदाज करने की कोशिश की है, ताकि पार्टी का पावर सेंटर कुछ पसंदीदा और ताकतवर नेताओं के हाथ में रहे।
यह किसी से छिपा नहीं है कि हरियाणा में कांग्रेस आज किस तरह भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जेब की संस्था बन गई है। उनका कॉग्रेस पर पूरा नियंत्रण है, इसलिए कुमारी शैलजा को राजनीतिक रूप से खत्म करने की बड़ी साजिश रची गई है। शैलजा ने अपना पूरा राजनीतिक जीवन पार्टी के प्रति निष्ठा के साथ समर्पित किया है, लेकिन हकीकत यह है कि आज हरियाणा कांग्रेस का मतलब है- ‘हुड्डा ही कांग्रेस है, कांग्रेस ही हुड्डा है’।
इसका सबूत यह है कि हरियाणा की 90 सीटों में से जिन 89 सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, उनमें से 72 उम्मीदवार भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी बताए जा रहे हैं। जबकि सिरसा से सांसद कुमारी शैलजा के सिर्फ 9 उम्मीदवार ही कांग्रेस की लिस्ट में जगह बना पाए हैं।
हुड्डा खेमे की वजह से आज हरियाणा कांग्रेस में कुमारी शैलजा की क्या हैसियत है, यह हाल की कुछ घटनाओं से पता चलता है। वह चाहती थीं कि पार्टी नरवाना से विद्या रानी दनौदा और अंबाला शहर से हिम्मत सिंह को टिकट दे। शैलजा ने सार्वजनिक तौर पर उनके प्रति अपना समर्थन जताया था। फिर भी जिस तरह से उनके टिकट काटे गए, उससे साफ है कि हुड्डा खेमे ने पार्टी पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया है, जहां कुमारी शैलजा जैसी दलित नेता को जानबूझकर अपमानित होने दिया गया हा।
आज कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद को शोषितों और वंचितों का मसीहा साबित करने में जुटे हैं। वे ‘मिस इंडिया’ और ‘न्यूज एंकर’ में दलितों की संख्या भी तलाश रहे हैं। उनका राजनीतिक जीवन जाति, जाति और जाति पर अटका हुआ है। लेकिन, उनकी अपनी पार्टी के भीतर एक मजबूत दलित नेता की आवाज दबा दी गई है, वह भी एक महिला नेता की, लेकिन हुड्डा के खिलाफ बोलने की हिम्मत कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में भी नहीं दिख रही है।
लोकसभा चुनाव के बाद से ही कुमारी शैलजा लगातार खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बता रही थीं। सांसद होने के बावजूद वह विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा भी जता रही थीं। लेकिन, कहा जाता है कि नेतृत्व की ओर से सांसदों को चुनाव न लड़ने का आदेश देने का मकसद दौड़ शुरू होने से पहले ही शैलजा को खत्म करना था।
आज हकीकत यह है कि हरियाणा कांग्रेस ने जिस तरह से कुमारी शैलजा की अनदेखी की है, वह उनका व्यक्तिगत अपमान नहीं है, बल्कि एक रणनीति के तहत दलित नेता को पार्टी की मुख्यधारा से दूर रखने की योजना है, जिसकी अभिव्यक्ति हुड्डा के जरिए हो रही है। हरियाणा में हुई घटना कांग्रेस के चाल, चेहरे और चरित्र को उजागर कर रही है।
लोकसभा चुनाव में भी उजागर हो चुका है। शैलजा खुद भी घूम-घूम कर कह चुकी हैं कि अगर टिकट सही तरीके से बंटते तो कांग्रेस का प्रदर्शन और बेहतर हो सकता था। तब भी टिकट बंटवारे में हुड्डा की मर्जी ही चलती थी। शैलजा ने बिना किसी का नाम लिए हुड्डा खेमे पर कम से कम दो बाहरी लोगों को टिकट देने का आरोप भी लगाया है।
कांग्रेस के नेता भले ही बड़ी-बड़ी बातें करें, लेकिन जब दलितों को उचित प्रतिनिधित्व देने की बात आती है तो उनके चेहरे पर से पाखंड का मुखौटा उतर जाता है। सच तो यह है कि हुड्डा के हित हरियाणा कांग्रेस द्वारा साधे जा रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस हाईकमान हुड्डा के माध्यम से अपने हित साधने की कोशिश कर रहा है।
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