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India News (इंडिया न्यूज), Vastu Shastra: वास्तु शास्त्र में दिशाओं को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। वास्तु के अनुसार, वास्तु गणना 8 दिशाओं यानी 4 मुख्य दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण) के साथ-साथ चार कोणीय दिशाओं, उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम के आधार पर की जाती है। वास्तु में हर दिशा का विशेष महत्व होता है। अलग-अलग दिशाओं का संबंध अलग-अलग ग्रहों से होता है। मानव जीवन में सुख-शांति के लिए दिशाओं को सही रखना आवश्यक माना जाता है, आइए जानते हैं वास्तु में हर दिशा का क्या महत्व है?
भगवान सूर्य और देवराज इंद्र पूर्व दिशा के स्वामी ग्रह माने जाते हैं। यह दिशा अच्छे स्वास्थ्य, बुद्धि, धन, सुख और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि घर के निर्माण के दौरान घर की पूर्व दिशा में कुछ जगह खुली छोड़नी चाहिए। इस जगह को नीचा रखना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ऐसा न करने पर घर के मुख्य सदस्य के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
भगवान शनि और वरुण देव पश्चिम दिशा के स्वामी ग्रह हैं। इस दिशा को मान-सम्मान, सफलता, अच्छे भविष्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि इस दिशा में गड्ढा, दरार, नीचा या दोषपूर्ण हो तो मानसिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। कार्यों में बाधाएं आ सकती हैं।
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उत्तर दिशा के स्वामी ग्रह बुध और कुबेर हैं। यह दिशा जीवन में सभी प्रकार के सुख प्रदान करती है। यह दिशा बुद्धि, ज्ञान, चिंतन, मनन, शिक्षा और धन के लिए शुभ मानी जाती है। उत्तर दिशा में खाली स्थान छोड़कर घर बनवाने से सभी प्रकार के भौतिक सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
दक्षिण दिशा के स्वामी ग्रह मंगल और यम हैं। यह दिशा सफलता, प्रसिद्धि, पद और धैर्य का प्रतीक मानी जाती है। यह दिशा पिता के सुख का कारक भी मानी जाती है। दक्षिण दिशा को जितना भारी रखेंगे, यह उतनी ही लाभकारी साबित हो सकती है।
वास्तु में दक्षिण-पूर्व कोने के स्वामी ग्रह शुक्र और अग्नि देवता हैं। यह दिशा स्वास्थ्य से संबंधित है। यह दिशा नींद और उचित नींद के आराम को दर्शाती है। आग्नेय कोण में भूमिगत टैंक होना अच्छा नहीं माना जाता है। यह खराब स्वास्थ्य का कारण बनता है।
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इस दिशा के स्वामी राहु और नैऋति नामक राक्षस हैं। यह दिशा राक्षसों, बुरे कर्म करने वाले लोगों या भूत-प्रेतों की दिशा है। इसलिए वास्तु में इस दिशा को कभी भी खाली न रखने की सलाह दी जाती है।
इस दिशा को चंद्र देव और वायु देवता का निवास माना जाता है। यह मित्रता और शत्रुता का संकेत देता है। यह दिशा मानसिक विकास की दिशा मानी जाती है। इस दिशा में किसी भी प्रकार का दोष शत्रुओं की संख्या में वृद्धि का संकेत माना जाता है।
ईशान कोण का स्वामी ग्रह देवगुरु बृहस्पति माना जाता है। यह दिशा बुद्धि, ज्ञान, विवेक, धैर्य और साहस का प्रतीक मानी जाती है। वास्तु के अनुसार ईशान कोण की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस दिशा को खुला और नीचा रखना चाहिए और निर्माण कार्य यथासंभव कम करना चाहिए। यदि यह दिशा दोषरहित है तो यह आध्यात्मिक, मानसिक और आर्थिक समृद्धि लाती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा में शौचालय, सेप्टिक टैंक या कूड़ेदान बिल्कुल भी नहीं रखना चाहिए।
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