Who is Sage Pulastya: कौन थें ऋषि पुलत्स्य? जिन्होने रावण की दुष्टता के बाद भी कैद से कराया था मुक्त, कहानी जान रह जाएंगे हैरान!
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कौन थें ऋषि पुलत्स्य? जिन्होने रावण की दुष्टता के बाद भी कैद से कराया था मुक्त, कहानी जान रह जाएंगे हैरान!

Preeti Pandey • LAST UPDATED : November 2, 2024, 8:20 am IST
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कौन थें ऋषि पुलत्स्य?  जिन्होने रावण की दुष्टता के बाद भी कैद से कराया था मुक्त, कहानी जान रह जाएंगे हैरान!

Who is Sage Pulastya: कौन थें ऋषि पुलत्स्य? जिन्होने रावण की दुष्टता के बाद भी कैद

India News (इंडिया न्यूज), Who is Sage Pulastya: पुराणों में ऋषि पुलस्त्य को भगवान ब्रह्मा का पुत्र बताया गया है। वे विद्वान, तपस्वी और दैवी संपदा के स्वामी थे। उनका एकमात्र उद्देश्य विश्व कल्याण था। लेकिन उनके कुल में रावण जैसा राक्षस भी पैदा हुआ था। सहस्त्रार्जुन द्वारा बंदी बनाए जाने पर भी उन्होंने उसे मुक्त कराया था। आइए आज हम आपको उन्हीं पुलस्त्य ऋषि के बारे में बताते हैं।

कौन थे ऋषि पुलत्स्य

पुलस्त्य ऋषि ब्रह्मा के पुत्र थे। जब मेरु पर्वत पर अप्सराओं ने उनकी तपस्या भंग की तो उन्होंने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया कि स्त्रियाँ उन्हें देखकर गर्भवती हो जाएँगी। इसी श्राप के कारण वैशाली के राजा की पुत्री इडविला उन्हें देखकर गर्भवती हो गई। जिसके बाद उसने पुलस्त्य ऋषि से विवाह किया। उनकी पत्नियों में संध्या, प्रतीची, प्रीति और प्रजापति की पुत्री हविर्भू भी शामिल थीं। कुबेर और दशानन रावण के पिता ऋषि विश्रवा इन्हीं पुलस्त्य ऋषि के पुत्र थे।

रावण को कराया मुक्त, नारद को सुनाई कथा

एक बार रावण को उसकी दुष्टता के कारण कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन ने कैद कर लिया था। तब वह अपने पौत्र को बचाने गया था। उसकी अनुमति से ही सहस्त्रार्जुन ने रावण को कैद से मुक्त कराया था। ऋषि पुलस्त्य भी योग विद्या के ज्ञाता थे। उन्होंने देवर्षि नारद को वामन पुराण की कथा भी सुनाई थी। महाभारत काल में दुर्योधन के 100 भाई भी उन्हीं के वंश के बताए जाते हैं। उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर लंका को तपस्या स्थल बनाया था। पौराणिक कथाओं में उनके द्वारा भीष्म को ज्ञान देने का भी उल्लेख मिलता है।

ऋषि के इस श्राप के कारण तिल-तिल कर छोटा हो रहा है गोवर्धन पर्वत, क्या है इसके लगातार घटने के पिछे की पौराणिक कथा?

गोवर्धन को श्राप दिया

पुराणों के अनुसार ऋषि पुलस्त्य ने गोवर्धन पर्वत को भी श्राप दिया था। गोवर्धन पर्वत से मोहित होकर वे उसे काशी ले जाना चाहते थे। इससे दुखी होकर गोवर्धन ब्रज के रास्ते में भारी हो गया और वहीं स्थापित हो गया। इसके बाद जब उसने उनके साथ जाने से मना कर दिया तो ऋषि पुलस्त्य ने उसे श्राप दे दिया कि वह प्रतिदिन एक मुट्ठी छोटा होता जाएगा। कहा जाता है कि उस श्राप के कारण आज भी गोवर्धन का आकार लगातार घटता जा रहा है।

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