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जितेंद्र शर्मा की रिपोर्ट, India News (इंडिया न्यूज): राजनीति में जो कभी धुरंधर होते थे अब धोबीपछाड़ पटखनी खा के बैठे हैं और जिनके कभी दावेदारी तक नहीं थी वो पूरे दमखम के साथ पैर जमाए बैठे हैं. कहने को तो राजनीति कभी बड़ा बोरिंग टॉपिक हुआ करती थी लेकिन सोशल मीडिया, नरेटिव और अवेयरनेस ने इसे गज़ब का इंटरेस्टिंग और इंटरटेनिंग भी बना दिया है।
जिस कांग्रेस के खिलाफ़ कभी कोई बोलने की हिमाकत तक नहीं करता था अब मीम मैटिरियल के लिए भी बड़ा इनग्रीडिएंट बन गई हैं .. वो सुना ही होगा आपने “चार बच गए लेकिन पार्टी अभी बाकी है”. कांग्रेस की ये हालत हैं तो इसके पीछे के कारण भी हैं और विश्लेषण भी।
शुरू से शुरू करें तो कांग्रेस पार्टी का गठन 1885 में हुआ और साल 1947 में भारत की आजादी के बाद से ही लगातार लगभग कांग्रेस देश में सरकार चलाती रही है। कांग्रेस से टूट कर कई और पार्टियां भी बन गयी लेकिन सबके मूल में कांग्रेस जरूर रही। देश में किसी की सरकार बनी हो, उसमें कांग्रेस का हाथ, कांग्रेस की सहभागिता कैसे ना कैसे हमेशा रही है, केवल कुछ ही ऐसे मौके आये है जहां कांग्रेस समर्थित या कांग्रेस की सरकार नहीं रही हो।
लेकिन साल 2014 के बाद ऐसा पहली बार हुआ जब कांग्रेस लगातार 15 सालों से केंद्र में सत्ता से बाहर है। इतना ही नहीं, राज्यों में भी कांग्रेस लगातार सिकुड़ती जा रही है और दूसरे दल कांग्रेस पर हावी हो रहे है। जबकि एक समय ऐसा था कि केवल कुछ राज्यों को छोड़ कर लगभग हर राज्यों में कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकार ही रही है।
जिस कांग्रेस पार्टी का हर जगह बोलबाला रहा वो अब धीरे-धीरे राष्ट्रीय पार्टी से एक छोटी पार्टी की तरह सिकुड़ती जा रही है। आखिर इसका कारण क्या है
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चलिए थोड़ा टाइम ट्रेवल करते हैं याद करिए साल 2013 की जनवरी जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी उसी दौरान कांग्रेस ने राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष घोषित किया था। मां सोनिया गांधी उस दौरान पार्टी की अध्यक्ष थी जो साल 1996 से लगातार अध्यक्ष बनी हुयी थी। राहुल गांधी के पास इससे पहले हालांकि पार्टी में कोई पद नहीं था लेकिन पार्टी में वो बड़ी हैसियत रखते थे और उनकी बात टालने की पार्टी में किसी की हिम्मत नहीं थी यहां तक की उस वक्त के प्रधानमंत्री भी उनकी बात नहीं टालते थे।
उस वक्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अदालत से सजा पाये सांसदों की सदस्यता रद्द करने के मामले में एक अध्यादेश पारित किया ताकि वो चुनाव लड़ सके, लेकिन पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी 27 सितंबर 2023 की दोपहर अचानक प्रेस क्लब पहुंचते है और अपनी ही सरकार के अध्यादेश को फाड़ देते है। ये पहला मौका था जब राहुल गांधी ने पहली बार अपनी सरकार के खिलाफ पार्टी में उपाध्यक्ष के तौर पर अपनी ताकत दिखाई और अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया और यहीं से कांग्रेस की उल्टी गिनती शुरू हो गयी।
बीजेपी ने साल 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई । कांग्रेस और उसके सहयोगी दल सत्ता से बाहर हो गये। फिर कांग्रेस ने दिसंबर 2017 में गुजरात चुनावों के बीच राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया। कांग्रेस में उम्मीद जगी कि पार्टी सत्ता में आ जाएगी लेकिन हुआ ठीक उलट, पार्टी ना केवल गुजरात विधानसभा चुनाव हारी साल 2019 में लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी अपनी परंपरागत सीट अमेठी भी हार गये। बीजेपी 2014 के चुनावों से ज्यादा सीटें लेकर आयी
पार्टी की हार के एक साल बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष बनी, यानी एक गांधी से दूसरे गांधी को कुर्सी ट्रांसफर हो गई और कुर्सी परिवार के कब्जे में ही रही ।
अब बात साल 2024 की। लोकसभा चुनावों से पहले राहुल गांधी ने देश भर में पदयात्रा की, लोगों में अच्छा उत्साह भी दिखा लेकिन बावजूद इसके पार्टी महज 99 सीटें ही ला पायी हालाकिं 2019 के चुनावों में कांग्रेस को मात्र 52 सीटें ही मिली थी । 2024 में हरियाणा में हुए चुनावों में पार्टी ठीकठाक परफार्म कर रही थी लेकिन आपसी मनमुटाव के चलते जीत फिर से छिटक कर बीजेपी के पास चली गयी और कांग्रेस हाथ मलती रह गयी। महाराष्ट्र के चुनावों में तो और भी बुरा हाल हुआ और पार्टी केवल 16 सीटें ही जीत पायी।
लेकिन इतनी दुर्गति के बाद भी पार्टी की कमान राहुल गांधी और परिवार के पास ही बनी रही जबकि पार्टी के सीनियर लीडर पार्टी की कार्यशैली पर लगातार सवाल उठाते हुए एक के बाद एक अलग होते चले गये। गुलाम नबी आजाद ने अलग पार्टी बना ली, कपिल सिब्बल पार्टी छोड़ समाजवादी पार्टी से राज्यसभा चले गये और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, सुनील जाखड़ बीजेपी चले गये और इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया, जयवीर शेरगिल, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, मिलिंद देवड़ा तमाम ऐसे बड़े नाम है जिन्होंने पार्टी को अलविदा कह दिया। हार्दिक पटेल को गुजरात में पार्टी अध्यक्ष बनाया गया था लेकिन उन्होंने भी पार्टी छोड़ दी।
हालत ये है कि जिन राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार चल रही थी वहां के नेता राहुल गांधी या पार्टी की बात मानने को तैयार नहीं थे, चाहे बात छत्तीसगढ़ की हो या राजस्थान की पार्टी की बात सुनने को कोई तैयार नहीं ।
यही हालात आज भी बनी हुई है। पार्टी से भले ही गांधी परिवार के तीन सदस्य संसद में हो लेकिन हालत लगातार कमजोर होती जा रही है। हरियाणा में पार्टी अभी तक अपना नेता विपक्ष नहीं चुन पाई है और सरकार ने चंडीगढ़ में घर खाली करने का आदेश दे दिया है। झारखंड में हेमंत सोरेन की पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा, गठबंधन की जीत हुयी लेकिन शपथ अकेले हेमंत सोरेन ने ली क्योंकि पार्टी तय नहीं कर पाई की किसे मंत्रिमंडल में शामिल किया जाये, ठीक ऐसे ही हालात जम्मू कश्मीर में है जहां गठबंधन की सरकार है और नेशनल कांफ्रेंस का मुख्यमंत्री है लेकिन कांग्रेस बाहर से ही सरकार में शामिल है क्योंकि पार्टी ने कांग्रेस को सिर्फ एक ही मंत्री पद देने की बात कही।
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INDI गठबंधन बना जरूर लेकिन इसमें अभी तक एकजुटता नहीं है । ममता बनर्जी की पार्टी ने काग्रेंस पार्टी के नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन के खिलाफ ना सिर्फ अपना उम्मीदवार खड़ा किया बल्कि उन्हें हरा भी दिया, आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में लोकसभा के लिए गठबंधन किया लेकिन पंजाब में अलग चुनाव लड़ी और अब दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी गठबंधन नहीं करने का फैसला किया है।
इससे जाहिर है कि जिस कांग्रेस पार्टी के साथ मिल कर दूसरी पार्टियां चला करती थी और प्रधानमंत्री कांग्रेस का होता था आज वहीं छोटी पार्टियां कांग्रेस को आंख दिखाने से भी गुरेज नहीं कर रही…ऐसा लगता है कि जो कांग्रेस हमेशा सरकार में रहती थी, यही हालात रहे तो पार्टी विपक्ष में बैठने लायक भी नहीं रहेगी।
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