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जितेंद्र शर्मा की रिपोर्ट, India News (इंडिया न्यूज), सम्भल में शाही जामा मस्जिद है या श्री हरीहर मंदिर, इस पर विवाद जारी है लेकिन इस मुद्दे को लेकर राजनीति लगातार जारी है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दिल्ली से सम्भल में जामा मस्जिद जाना चाहते थे और वहां लोगों से मिलना चाहते थे लेकिन प्रशासन ने दिल्ली से निकलते ही यूपी बॉर्डर पर गाजियाबाद में ही रोक दिया और वहां जाने नहीं दिया।
प्रशासन ने ये फैसला सम्भल सर्वे के दौरान वहां हुयी हिंसा और फैले तनाव की वजह से लिया। सर्वे के दौरान वहां पर हिंसा हुई थी जिसमें 20 पुलिसकर्मी घायल हुए थे। इस सर्वे के दौरान मुस्लिम पक्ष के लोगों ने पुलिस पर पथराव किया, गोलियां चलायी और आगजनी भी की। इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुये 3 हजार से ज्यादा लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया और 25 आरोपियों को गिरफ्तार किया है जबकि 200 से ज्यादा आरोपियों को हिरासत में भी लिया।
हालात को देखते हुए प्रशासन ने 10 दिसंबर तक किसी भी बाहरी व्यक्ति के सम्भल में आने पर रोक लगा रखी है। लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात सम्भल हिंसा में पाकिस्तानी कारतूसों का मिलना है और प्रशासन के मुताबिक ये एक गंभीर बात है। ये शायद पहली बार है कि हिंसा के दौरान पाकिस्तानी कारतूसों का इस्तेमाल हुआ क्योंकि इससे पहले इस तरह की घटना जम्मू कश्मीर में ही देखने को मिलती थी जहां आतंकी पाकिस्तान से हथियार लेकर दाखिल होते थे,लेकिन सम्भल में पाकिस्तानी कारतूस ने सभी एजेंसियों को सतर्क कर दिया है और इसमें बॉर्डर पार से साजिश के भी एंगल से जांच की जा रही है।
लेकिन आखिर ऐसा क्या है जिसकी वजह से सम्भल में बार-बार हिंसा होती है...
सम्भल को लेकर जब इतिहास खंगाला गया तो पता चला कि यहां पर हिंसा का दौर 1936 से जारी है…इसके बाद 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान भी सम्भल में सांप्रदायिक हिंसा देखने को मिली थी, इसमें एक हिंदू जगदीश शरण की हत्या कर दी गयी थी। इसके बाद 1948 में हुई हिंसा के दौरान 6 लोग मारे गये थे जो हिंदू धर्म के थे। इस हिंसा के बाद 20 दिनों तक वहां पर कर्फ्यू लगाया गया था।
इसके बाद साल 1953, 56,और 1959 में दंगे हुए जो मुस्लिमों में ही शिया-सुन्नी के बीच थे और 1958, 62 और 1966 में सांप्रदायिक दंगे हुये थे जिसमें जनसंघ के पूर्व विधायक महेश गुप्ता घायल हुए थे। आरोपियों ने चाकुओं से हमला किया था।साल 1976 में फरवरी, अप्रैल में भी सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। फरवरी में एक मुस्लिम युवक ने ही मौलवी को आपसी झगड़े में मार दिया था लेकिन अफवाह उड़ायी गयी कि हिंदू ने मौलवी की हत्या की, जिसके बाद वहां तनाव फैल गया और मंदिरों को भी नुकसान पहुंचाया गया।
इसके बाद अप्रैल में कल्लू के यहां एक विस्फोट हुआ था जिसमें बेटे सलाम की मौत हो गयी और इसके बाद बदला लेने के लिये बुजुर्ग कामता प्रसाद की हत्या की गयी। हालात खराब होने से पहले पुलिस ने दोनों घटनाओं को सुलझा लिया। लेकिन इसके बाद जयचंद की गोली मारकर हत्या की गयी और तनाव को देखते हुये पुलिस ने दोनों धर्मों से 20-22 युवकों को हिरासत में ले लिया।
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इसके बाद भी सम्भल में हालात काबू में नहीं आये बल्कि दंगा फसाद जारी रहा. हिंदुओं की दुकानों को जला दिया गया और आरोप ये भी लगा कि मुस्लिम धर्म के लोगों को शफी उर रहमान के दबाव में बिना नुकसान के मुआवजा दिया गया। इस दंगे के दौरान 24 हिंदुओं को काट कर जला दिया गया था। आरोप है कि उस दौरान जिलाधिकारी रहे फरहत अली ने भी कोई कारवाई नहीं की थी। हिंदुओं ने नाना देशमुख को जानकारी दी जिसके बाद पुलिस आयी लेकिन तब तक 184 से ज्यादा लोग मारे जा चुके थे।
खून खराबे से भरा रहा 90 का दशक
नवंबर 1990 में सम्भल में दंगा हुआ जिसमें पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे, इसके बाद 1992 में बाबरी मस्जिद विवाद के दौरान भी यहां हालात खराब हुए जिसमें पुलिसकर्मियों को चोटे आयी थी। पुलिस को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी थी जिसमें दो मुस्लिम युवकों की मौत हुयी थी। लेकिन इसके बाद दिसंबर 92 में ही पांच हिंदुओं की हत्या की गयी, बताया जाता है कि ये हत्या दंगों के बाद बदला लेने के लिये की गयी थी। 1992 के बाद 95 में भी यहां हालात बिगड़े जिसमें दो हिंदुओं की मौत हुयी थी…
इतिहास को देखते हुए प्रशासन ने इस बार यहां काफी सख्ती बरती हुई है और यहां पर फिलहाल किसी को भी आने नहीं दिया जा रहा है, इसके अलावा पाकिस्तानी कारतूस मिलने के बाद प्रशासन और भी ज्यादा चौकस हो गया है और इस इलाके से पहले पकड़े गये हथियार तस्करी के आरोपियों की भी जांच की जा रही ताकी पता लगाया जा सके कि सम्भल में पाकिस्तानी कारतूस कैसे पहुंचे।
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