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India News (इंडिया न्यूज), Drought In 25 Years: दुनिया पानी की कमी और सूखे के गंभीर संकट से जूझ रही है। यहां तक कि वे इलाके भी इसकी चपेट में हैं जहां कभी खूब बारिश होती थी। धरती के तापमान में वृद्धि के साथ यह संकट और गहराता जाएगा। आने वाले समय में हमें पानी की कमी के साथ जीने की आदत डालनी पड़ सकती है। अब एक नई और डरावनी रिपोर्ट ने भविष्य की इस तस्वीर को और साफ कर दिया है। साल 2050 तक यानी महज 25 साल में दुनिया की 75 फीसदी आबादी सूखे का सामना कर रही होगी। संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय आयोग द्वारा जारी वर्ल्ड डेजर्ट एटलस में यह खुलासा हुआ है।
यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब दुनिया भर के नेता बढ़ते सूखे और जमीन की बिगड़ती हालत पर चर्चा करने के लिए सऊदी अरब के रेगिस्तानी शहर रियाद में जुटने वाले हैं। यह सम्मेलन UNNCCD COP16 के तहत आयोजित किया जा रहा है। इस एटलस में बताया गया है कि सूखे के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को हर साल 307 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है। यह अनुमान पहले की तुलना में बहुत अधिक है, क्योंकि पिछली गणनाओं में केवल कृषि पर ध्यान केंद्रित किया गया था। नई रिपोर्ट में स्वास्थ्य और ऊर्जा क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभाव को भी शामिल किया गया है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक भूमि का 40 प्रतिशत हिस्सा क्षरित हो चुका है। वर्ष 2000 से अब तक सूखे की घटनाओं में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन और अस्थिर भूमि प्रबंधन है। इससे कृषि, जल सुरक्षा और लाखों लोगों की आजीविका खतरे में पड़ गई है।
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सूखा हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सूखा न केवल पानी और हवा की गुणवत्ता को खराब करता है, बल्कि धूल के तूफान और सांस संबंधी बीमारियों को भी बढ़ाता है। इतना ही नहीं, बढ़ते सूखे के कारण बिजली ग्रिड भी बाधित होता है और नदियों के सूखने से खाद्य आपूर्ति भी प्रभावित होती है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रकृति आधारित उपाय जैसे पेड़ लगाना, पशुओं के चरने का प्रबंधन करना और शहरी क्षेत्रों में हरित स्थान बनाना सूखे से लड़ने के लिए लागत प्रभावी तरीके हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राकृतिक संसाधनों में निवेश करने से हर डॉलर पर 1.40 से 27 डॉलर का लाभ मिलता है। इसमें मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और जल धारण क्षमता बढ़ाने जैसे उपाय शामिल हैं। वैज्ञानिकों ने लगातार बढ़ते सूखे के लिए ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न में बदलाव को जिम्मेदार ठहराया है।
यूएनसीसीडी ने भारत में सूखे के कारण खराब हो रही फसलों को बेहतर ढंग से समझने की आवश्यकता की वकालत की। क्योंकि भारत में कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की सबसे बड़ी संख्या (25 करोड़ से अधिक) है। इस एटलस में भारत में सूखे के कारण सोयाबीन उत्पादन में भारी नुकसान का अनुमान लगाया गया है। एटलस 2019 में चेन्नई में ‘डे जीरो’ को याद करते हुए कहता है कि जल संसाधनों के कुप्रबंधन और शहरीकरण के कारण शहर में जल संकट पैदा हो गया, जहां हर साल औसतन 1400 मिमी से अधिक बारिश होती थी।
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