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सांसद कार्तिकेय शर्मा ने पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं को कम करने के लिए उठाए सवाल, मंत्री ने दिए 5 बड़े सवालों के जवाब

BY: Raunak Pandey • LAST UPDATED : December 7, 2024, 8:21 am IST
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सांसद कार्तिकेय शर्मा ने पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं को कम करने के लिए उठाए सवाल, मंत्री ने दिए 5 बड़े सवालों के जवाब

MP Kartikeya Sharma: सांसद कार्तिकेय शर्मा ने पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं को कम करने के लिए उठाए सवाल

India News (इंडिया न्यूज), MP Kartikeya Sharma: राज्य सभा सांसद कार्तिकेय शर्मा ने कृषि और किसान कल्याण मंत्री से पराली जलाने की घटनाओं में कमी लाने के लिए उच्च मूल्य वाली फसलों को बढ़ावा देने के विषय पर 5 सवाल पूछे हैं। सांसद कार्तिकेय शर्मा ने अपने पहले सवाल में पूछा कि क्या पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं में कमी लाने के लिए धान के स्थान पर उच्च मूल्य वाली फसलों को बढावा देने के लिए कदम उठाए गए हैं?

इसके जवाब में कृषि और किसान कल्याण मंत्री रामनाथ ठाकुर ने उत्तर देते हुए कहा कि धान के सबसे लाभकारी विकल्पों में से एक मक्का की खेती है, जिसमें विशेष रूप से बायोएथेनॉल उत्पादन की अपार क्षमता है। फल तथा सब्जियों जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों का अनाज की फसलों का स्थान लेने की क्षमता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने विभिन्न आउटरीच कार्यकर्मों के माध्यम से पंजाब और हरियाणा में मक्का की खेती को बढावा दिया है।

धान के वैकल्पिक फसलें उगाने को लेकर प्रयास जारी

कृषि और किसान कल्याण मंत्री ने आगे कहा कि पंजाब और हरियाणा में मक्का आधारित फसल प्रणालियों की संभावित उपज प्राप्ति पर सहभागी नवाचार मंच (2021-23) के तहत, पंजाब में मक्का की पैदावार 57.33 क्विंटल/हेक्टेयर से 76.00 क्विंटल/हेक्टेयर और हरियाणा में 61.33 क्विंटल/हेक्टेयर से 77.00 क्विंटल/हेक्टेयर तक थी। ये परिणाम दोनों राज्यों में सवोत्तम कृषि पद्धतियों का उपयोग कर मक्का आधारित प्रणालियों में अधिकतम उपज क्षमता को उजागर करते हैं। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) वर्ष 2013-14 से मूल हरित क्रांति राज्यों पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फसल विविधीकरण कार्यक्रम (सीडीपी) को क्रियान्वित कर रहा है, ताकि अधिक पानी की खपत वाली धान की फसल के स्थान पर तिलहन, दलहन, मोटे अनाज, न्यूट्री-सीरियल, कपास और कृषि वानिकी जैसी वैकल्पिक फसलें उगाई जा सकें।

भू-जल संरक्षण और पराली जलाने की घटनाओं में कमी को लेकर सरकार के तैयारियों पर पूछे सवाल

बता दें कि, राज्य सभा सांसद कार्तिकेय शर्मा ने कई सवाल और पूछे, जिसमें क्या पंजाब को भू-जल संरक्षण के लिए पंजाब अधोभूमि जल संरक्षण अधिनियम, 2009 में मानसून के अनुरूप धान बुआई में विलंब के लिए अधिदेशित किया गया है? क्या इस प्रकार बुवाई में विलंब के कारण पराली जलाने की घटनाएं अत्यधिक बढ रही हैं, और यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है? क्या धान की बुवाई एक महीने पहले करने से पराली जलाने की घटनाओं में कमी आ सकती है? क्या सरकार समय पर कटाई की सुविधा के लिए कम जल में तैयार होने वाली और तेजी से पकने वाली धान की किस्में विकसित कर रही है?इन सभी प्रश्नों के जवाब में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने कहा कि राज्य में घटते जल स्तर की समस्या को कम करने के लिए, पंजाब सरकार ने ‘पंजाब भूमिगत जल संरक्षण अधिनियम, 2009’ को अधिसूचित किया है। इस अधिनियम के तहत, राज्य ने बहुमूल्य भू-जल को सरंक्षित करने के लिए मानसून के सीजन के आगमन के अनुरूप वर्ष 2024 के लिए सीधे बीज वालेचावल की बुवाई और धान की रोपाई की तिथि अधिसूचित की है।

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इसके कारण धान की कटाई के बाद गेहूं की फसल की बुवाई के लिए समय अवधि कम हो जाती है। जिसे समय पर कटाई की सुविधा के लिए पानी के कुशल उपयोग कर शीघ्र फसल देने वाली (जल्दी पकने वाली) धान की किस्मों को बढावादेकर दूर किया जा रहा है तथा मशीनीकृत उपकरणो जैसे हैप्पी सीडर, सुपर सीडर और स्मार्ट सीडर का उपयोग किया जा रहा है, जिससे खेतों से पराली को हटाए बिना या जलाए बिना सीधे ही काटे गए धान के खेतों में गेहूं की बुवाई की जा सकती है। जिससे पराली जलाने को रोकने में मदद मिलती है।

एरोबिक चावल की किस्में विकसित की जा रही- कृषि और किसान कल्याण मंत्री

राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने आगे कहा कि परिवर्तनशील जलवायु परिवर्तन और संसाधन संरक्षण, विशेष रूप से भू-जल सहित जल संसाधनों के वर्तमान परिदृश्य में, आईसीएआर ऐसी किस्में विकसित कर रहा है। जो एरोबिक अनुकूलन के लिए उपयुक्त हैं, जहां बीज सीधे खेत में बोए जाते हैं और रोपाई की आवश्यकता नहीं होती है। जिससे पंडलिंग के लिए बहुत सारा पानी बचता है। राष्ट्रीय चावला अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) ने सीआर धान 200 (प्यारी), सीआर धान (201, 202, 203, 204, 205, 206, 207, 209, 210, 211, 212 और 214) जैसी कई एरोबिक चावल की किस्में विकसित की हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना ने भी पीआर-121 और पीआर-126 जैसी कम अवधि वाली धान की किस्में विकसित की हैं।

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