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India News (इंडिया न्यूज़), Vedik Puran: वैदिक परंपरा में विवाह केवल सामाजिक और पारिवारिक संबंधों का आधार नहीं था, बल्कि इसे आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना गया था। विवाह के दौरान स्त्री का चार प्रतीकात्मक विवाह करने की परंपरा थी, जो स्त्री की मर्यादा और उसके अधिकारों को संरक्षित रखने के उद्देश्य से बनाई गई थी।
वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार, विवाह से पहले कन्या का अधिकार क्रमशः तीन देवताओं को सौंपा जाता था। यह परंपरा स्त्री की पवित्रता और पतिव्रता धर्म को सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी।
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इस परंपरा को ऋषि श्वेतकेतु ने संशोधित किया। कहा जाता है कि एक बार उन्होंने अपनी मां को किसी अन्य पुरुष के साथ आलिंगन करते देखा। इस घटना से उन्हें आघात पहुंचा और उन्होंने बहुपतित्व (एक स्त्री के कई पतियों) की प्रथा को समाप्त कर दिया। इसके स्थान पर उन्होंने एकल विवाह की परंपरा स्थापित की, जिसमें पुरुष और स्त्री जीवन भर के लिए एक-दूसरे के प्रति समर्पित रहते हैं।
वैदिक काल में यह प्रतीकात्मक विवाह स्त्री की गरिमा और समाज में उसके स्थान को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए थे। ऋषि श्वेतकेतु द्वारा स्थापित एकल विवाह प्रणाली आज भी हिंदू धर्म में विवाह की आधारशिला है।
यह परंपरा दर्शाती है कि वैदिक समाज में स्त्री को केवल एक सामाजिक इकाई नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से सशक्त और पवित्र माना गया था। वहीं, ऋषि श्वेतकेतु का योगदान इस बात का उदाहरण है कि सामाजिक रीति-रिवाज समय के साथ कैसे बदलते हैं।
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