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India News (इंडिया न्यूज़), Value Of Semen: वीर्य, जो पुरुषों में प्रजनन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसके बिना संतान की उत्पत्ति संभव नहीं हो सकती। वीर्य में मुख्य रूप से शुक्राणु होते हैं, जो अंडाणु के साथ मिलकर गर्भाधान का कारण बनते हैं। लेकिन वीर्य बनता कैसे है? इसके निर्माण की प्रक्रिया क्या है? इस लेख में हम इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
वीर्य का निर्माण पुरुषों के शरीर में विभिन्न ग्रंथियों और अंगों के सहयोग से होता है। वीर्य में केवल 10 प्रतिशत हिस्सा शुक्राणुओं का होता है, जो अंडकोष में बनते हैं, जबकि शेष 90 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न ग्रंथियों से निकलने वाले तरल से बना होता है। इसमें प्रमुख ग्रंथियां हैं:
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इन ग्रंथियों द्वारा उत्पादित तरल पदार्थ शुक्राणुओं को संजीवनी प्रदान करते हैं, जिससे वे अपनी यात्रा में सक्षम रहते हैं।
वीर्य में जो शुक्राणु होते हैं, उनका निर्माण अंडकोष (Testicles) में होता है। अंडकोष शरीर के बाहर लटके होते हैं, क्योंकि शुक्राणु के निर्माण के लिए शरीर के सामान्य तापमान से कुछ कम तापमान की आवश्यकता होती है। अंडकोष का तापमान लगभग 34 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए, जो शरीर के सामान्य तापमान से 4 डिग्री कम होता है।
अंडकोष में स्थित सेमिनिफेरस ट्यूब्यूल्स नामक संरचनाओं में शुक्राणु कोशिकाएं बनती हैं। इन कोशिकाओं का विकास कुछ विशेष हार्मोन्स की मदद से होता है। इसमें प्रमुख हार्मोन हैं:
शुक्राणुओं का निर्माण एक लंबी प्रक्रिया है। एक नई शुक्राणु कोशिका के बनने में लगभग 2-3 महीने का समय लगता है। पूरे शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया में 72 दिन तक का समय लग सकता है। इसके बाद ये शुक्राणु एपिडिडाइमिस में इकट्ठा होते हैं, जो अंडकोष के ऊपर स्थित एक लच्छेदार नलिका है।
इस प्रक्रिया के दौरान, शुक्राणु धीरे-धीरे परिपक्व होते हैं और एक महीने तक सक्रिय रह सकते हैं। जब वीर्यपात (ejaculation) होता है, तो ये शुक्राणु, जो अब परिपक्व हो चुके होते हैं, प्रजनन मार्ग में प्रवेश करते हैं और अंडाणु तक पहुंचने का प्रयास करते हैं।
वीर्यपात के समय, एपिडिडाइमिस से शुक्राणु निकलकर वृषण नलिका (Vas deferens) और फिर यूरिथ्रा (urethra) में आते हैं। वीर्य में 4-5 करोड़ तक शुक्राणु हो सकते हैं, लेकिन इनमें से केवल एक शुक्राणु ही अंडाणु तक पहुंचकर उसे निषेचित कर सकता है।
वीर्य का निर्माण किशोरावस्था के दौरान शुरू होता है, जब लड़के का शरीर हार्मोनल परिवर्तन से गुजरता है। आमतौर पर, यह प्रक्रिया 11 से 13 साल के बीच शुरू होती है और 17-18 साल तक इसके उत्पादन में तेजी आती है। जीवनभर में शुक्राणु का उत्पादन निरंतर चलता रहता है, लेकिन 40-45 साल के बाद शुक्राणुओं की गुणवत्ता में कमी आ सकती है।
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शुक्राणु, वीर्य में तैरते हुए अंडाणु तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। इनकी भूमिका केवल प्रजनन में नहीं, बल्कि शिशु के लिंग निर्धारण में भी अहम होती है। यदि वाई गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडाणु से पहले मिलता है, तो लड़का पैदा होगा। अगर एक्स गुणसूत्र वाला शुक्राणु अंडाणु को निषेचित करता है, तो लड़की पैदा होगी।
वीर्य का निर्माण एक जटिल और बारीकी से नियंत्रित प्रक्रिया है, जिसमें हार्मोन्स, ग्रंथियां और अंडकोष के विशेष योगदान से शुक्राणु का निर्माण और परिपक्वता होती है। यह प्रक्रिया किशोरावस्था से लेकर जीवनभर जारी रहती है। वीर्य में शुक्राणु की भूमिका प्रजनन के लिए तो महत्वपूर्ण होती ही है, साथ ही यह जीवन के लिंग निर्धारण में भी अहम भूमिका निभाता है।
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