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India News (इंडिया न्यूज), ISKCON in Bangladesh: बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और नफरत भरे भाषणों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस्कॉन (इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस) को निशाना बनाने वाले एक कट्टरपंथी व्यक्ति का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। वीडियो में व्यक्ति खुलेआम इस्कॉन पर प्रतिबंध लगाने की मांग करता है और धमकी देता है कि, अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो वे खुद हिंसक कदम उठाएंगे। इस्कॉन के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने इस वीडियो को शेयर किया है और कहा है कि यह भाषण किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि बांग्लादेश के हर कोने में इस तरह के बयान दिए जा रहे हैं।
इस्कॉन के उपाध्यक्ष राधारमण दास ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए इस घटना को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सवाल किया कि ऐसे कट्टरपंथियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है। वायरल हो रहे इस वीडियो में दिख रहा व्यक्ति कहता है, “यह धार्मिक रीति-रिवाजों का समय नहीं है, बल्कि इस्कॉन से लड़ने का समय है। हम उन्हें तलवार से काट देंगे और एक-एक करके मार देंगे।” इस तरह के बयान न केवल धार्मिक सद्भाव को ठेस पहुंचाते हैं, बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए भय और असुरक्षा का माहौल भी पैदा करते हैं। इस भाषण के कुछ हिस्सों को शेयर करते हुए राधारमण दास ने लिखा कि यह बेहद आश्चर्यजनक है कि ऐसे लोगों को अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया।
Just listen to this kind of speech being openly delivered in every neighbourhood of #Bangladesh: “ISKCON has to be banned, otherwise we will cut them by our swords, this is not the time for the religious practice. the time is for fighting with ISKCON. Kill them one by one. if… pic.twitter.com/b6IWLG1hik
— Radharamn Das राधारमण दास (@RadharamnDas) December 7, 2024
बांग्लादेश में हिंदुओं और इस्कॉन जैसे अल्पसंख्यक समुदायों पर हमले पहले भी होते रहे हैं। पिछले कुछ सालों में कई मंदिरों में तोड़फोड़ की गई, मूर्तियों को तोड़ा गया और लोगों को हिंसा का शिकार बनाया गया। धार्मिक असहिष्णुता के ये मामले न केवल स्थानीय मुद्दे हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बांग्लादेश की छवि को प्रभावित कर रहे हैं। अल्पसंख्यक समुदाय के लोग कई बार सरकार से सुरक्षा की मांग कर चुके हैं, लेकिन स्थिति में सुधार के कोई ठोस संकेत नहीं दिख रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और भारत समेत दूसरे देशों ने भी बांग्लादेश सरकार से इस पर कार्रवाई करने की अपील की है।
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