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India News (इंडिया न्यूज), Death of S.A. Basha: तमिलनाडु के आतंकी संगठन अल-उम्मा के मुखिया एस ए बाशा की मृत्यु के बाद हुई उनकी अंतिम विदाई ने राज्य और देशभर में विवादों का जन्म लिया है। 16 दिसंबर, 2024 को अस्पताल में उनकी मौत के बाद 17 दिसंबर को उनका जनाजा दफनाया गया। इस घटना ने सोशल मीडिया और राजनीतिक मंचों पर तीव्र चर्चा और आलोचना को जन्म दिया। सवाल यह उठ रहा है कि एक ऐसे व्यक्ति को जो आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहा हो, उसे हीरो के रूप में कैसे सम्मानित किया जा सकता है? इसके परिणामस्वरूप, यह घटना न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित कर रही है।
एस ए बाशा का नाम 1998 में कोयंबटूर में हुए सीरियल धमाकों से जुड़ा है, जिनमें 58 लोग मारे गए थे और 200 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह धमाके भारतीय जनता और सुरक्षा बलों के लिए एक बड़े झटके के रूप में थे। इन हमलों को आतंकी संगठन अल-उम्मा ने अंजाम दिया था, और एस ए बाशा संगठन का प्रमुख था। इस हमले के बाद बाशा को पकड़ा गया और उन्हें उम्रभर की सजा मिली थी। उसकी आतंकवादी गतिविधियों और हिंसा की वजह से वह एक बेहद विवादास्पद शख्सियत के रूप में पहचाने गए थे।
एस ए बाशा की मौत के बाद, उनके अंतिम संस्कार में तमिलनाडु के कई प्रमुख नेता और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। इनमें तमिल फिल्म इंडस्ट्री के अभिनेता सीमान, कोंगु इलैगनार पेरावई पार्टी के अध्यक्ष यू थानियारसु, और वीसीके के उप महासचिव वन्नी अरासु जैसे लोग शामिल थे। इनके अलावा, कट्टरपंथी विचारधारा से जुड़े समूहों के लोग भी बाशा की अंतिम यात्रा में शरीक हुए।
यह दृश्य सोशल मीडिया और विभिन्न मंचों पर तीव्र बहस का कारण बना है। कई लोगों ने इसकी कड़ी आलोचना की है, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार में भाग लेना या उसे सम्मान देना, व्यक्तिगत अधिकारों का हिस्सा है। हालांकि, आलोचक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि बाशा जैसे व्यक्ति की सार्वजनिक विदाई से आतंकवाद और कट्टरपंथ को बढ़ावा मिलेगा। उनका मानना है कि यह एक नकारात्मक संदेश भेजता है और भविष्य में आतंकवाद के समर्थकों को प्रोत्साहन मिल सकता है।
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एस ए बाशा की अंतिम यात्रा के दौरान, सार्वजनिक सुरक्षा के लिए व्यापक इंतजाम किए गए थे। 2000 से अधिक पुलिसकर्मियों और 200 आरएएफ (रैपिड एक्शन फोर्स) जवानों को तैनात किया गया था। इस सुरक्षा व्यवस्था से यह स्पष्ट था कि अधिकारियों को बाशा के समर्थकों के विरोध और कानून-व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाने थे।
हालांकि, ऐसे सुरक्षा इंतजामों का उद्देश्य शांति बनाए रखना था, लेकिन जनाजा में शामिल लोगों की संख्या और उनके द्वारा बाशा के प्रति सम्मान दिखाना, यह सवाल खड़ा करता है कि क्या ऐसी घटनाएँ समाज में आतंकवाद को उचित ठहराने का संकेत देती हैं? क्या ये घटनाएँ भविष्य में और भी अधिक कट्टरपंथी विचारों को फैलाने का कारण बन सकती हैं?
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इस पूरे घटनाक्रम के बीच, यह समझना जरूरी है कि बाशा की विरासत को किस दृष्टिकोण से देखा जा रहा है। कुछ लोग इसे एक राजनीतिक और धार्मिक प्रतीक के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने वाली एक खतरनाक घटना मानते हैं। बाशा की मृत्यु के बाद उसे मिली सम्मानजनक विदाई ने इस विचारधारा को और प्रकट किया है कि कुछ वर्ग आतंकवाद और हिंसा को अपने विश्वासों के विरोधी न मानते हुए उसे अपना आदर्श मान सकते हैं।
हालांकि, इस प्रकार की घटनाएँ समाज में विभाजन और असहमति को बढ़ावा देती हैं, यह भी जरूरी है कि हम इसे केवल एक घटना के रूप में न देखें। यह समाज के विभिन्न हिस्सों के बीच के गहरे मतभेदों को उजागर करता है। जहां एक ओर इस घटना ने बाशा के समर्थकों को उत्साहित किया, वहीं दूसरी ओर यह एक चेतावनी भी है कि किसी व्यक्ति की आतंकवादी गतिविधियों को हीरो की तरह पेश करना, एक खतरनाक संदेश हो सकता है।
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इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि आतंकवाद और कट्टरपंथ के खिलाफ एक स्पष्ट और मजबूत संदेश भेजने की आवश्यकता है। जब किसी आतंकवादी का सम्मान किया जाता है, तो यह अन्य लोगों को गलत रास्ते पर जाने के लिए प्रेरित कर सकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि समाज में शांति, सद्भावना और समानता बनाए रखने के लिए ऐसी घटनाओं का विरोध किया जाए और कानून की नज़रों में अपराधियों को हीरो नहीं बनाया जाए।
साथ ही, हमें यह भी याद रखना चाहिए कि एक व्यक्ति के अंतिम संस्कार में शिरकत करने से कोई व्यक्ति दोषी नहीं हो जाता, लेकिन यदि किसी का जीवन आतंकवाद से जुड़ा हुआ हो, तो उस व्यक्ति को सम्मान देने का तरीका और उसके प्रभाव को समझना जरूरी है। यह एक बड़ा सवाल है कि कैसे हम ऐसे मुद्दों पर समाज में सही विचारधारा को प्रोत्साहित कर सकते हैं और आतंकवाद से निपटने के लिए ठोस कदम उठा सकते हैं।
एस ए बाशा की अंतिम विदाई ने एक गंभीर मुद्दा उठाया है—आतंकवाद, कट्टरपंथ और समाज में उनके प्रभाव को लेकर चिंताएँ। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमें किस प्रकार के उदाहरणों और विचारों को समाज में बढ़ावा देना चाहिए। क्या हम आतंकवादियों को सम्मानित करके उनके विचारों को प्रोत्साहित कर रहे हैं, या हमें अपनी नीति और दृष्टिकोण में बदलाव लाकर एक सशक्त और शांतिपूर्ण समाज की ओर बढ़ना चाहिए? यह सवाल समाज, राजनीति और कानून व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
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