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India News (इंडिया न्यूज), Karna Dream in Mahabharata: महाभारत के पराक्रमी योद्धा कर्ण को अक्सर सपना आता था कि घूंघट ओढ़े एक राजसी स्त्री उसके पास आती है। उसकी आंखों से आंसू निकल आते हैं, और यह सपना उसे बेचैन कर देता था। महाभारत और दूसरे ग्रंथों के अनुसार, कर्ण ही नहीं बल्कि कुंती को भी एक ऐसा सपना आता था जो उन्हें बेचैन कर देता था। दोनों को यह सपना क्यों आया? इसका क्या मतलब था? जब सूर्य की पूजा करते हुए कुंती पहली बार कर्ण से मिलीं, तब पता चला कि यह सपना क्यों आता है।
महाभारत में जितने पात्र हैं, उतनी ही कहानियां भी हैं। कर्ण पांडवों की मां कुंती के पुत्र थे। कुंती ने अविवाहित रहते हुए सूर्य की मदद से कर्ण को जन्म दिया था, इसलिए लोक लाज के डर से उन्होंने जन्म देने के बाद नवजात कर्ण को टोकरी में रखकर नदी में प्रवाहित कर दिया।
कर्ण का पालन-पोषण सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी ने किया था। यह बात अक्सर कर्ण को परेशान करती थी कि वह किसका पुत्र था। हालांकि वह पराक्रमी था। परिस्थितियों ने उसे दुर्योधन का मित्र बना दिया। कर्ण ने अपना पूरा जीवन अपने असली माता-पिता की तलाश में बिताया। एक दिन जब उसे उनके बारे में पता चला तो वह चौंक गया। फिर उसे फिर से आश्चर्य हुआ जब एक दिन उसकी असली माँ कुंती अचानक उसके सामने आ गई। वह उसे पहचान नहीं पाया लेकिन वह वही महिला थी जो उसके सपनों में आती थी। इसी मुलाकात में कर्ण ने पहली बार अपने दिल की बात खोली।
दरअसल, जब पांडवों का वनवास खत्म हुआ तो कृष्ण महाराज धृतराष्ट्र से मिलने हस्तिनापुर गए थे। पांडवों को उनका हक दिलाने की कोशिश की गई थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राज दरबार में दुर्योधन के आग्रह के बाद यह तय हो गया था कि युद्ध जरूर होगा। फिर कृष्ण ने कर्ण से अकेले में मुलाकात की। इसके बाद कृष्ण दो लोगों से मिले। एक कुंती और दूसरे कर्ण। जब वे कर्ण से मिले तो पहली बार यह रहस्य खुला कि वह असल में कौन था और उसकी माँ कौन थी। तब उन्हें पता चला कि वह असल में पांडवों का भाई था।
ऐसा लगा जैसे कर्ण की साँसें रुक गई हों। उसकी आँखें आँसुओं से भर गई थीं। उसके चेहरे का रंग उड़ गया था। रुँधे हुए गले से उसने कृष्ण से कहा, ‘तो क्या आप कह रहे हैं कि पांडव मेरे भाई हैं और कुंती मेरी माँ है। कृष्ण ने हाँ में सिर हिलाया। कर्ण फूट-फूट कर रोने लगा। हालाँकि, यह जानने के बाद भी उसने कहा, मैं दुर्योधन से लड़ूँगा, चाहे मेरा नाश ही क्यों न हो जाए।’
जब महाभारत का युद्ध तय हो गया था। तब एक दिन चिंतित कुंती कर्ण से मिलने गई। जब वह गई, तो कर्ण दोपहर के समय गंगा के तट पर सूर्य की पूजा कर रहा था। इतने सालों में वह हस्तिनापुर में कुंती से कभी नहीं मिला था। तो वह उसे कैसे पहचान सकता था? हाँ, कुंती को देखकर उसे लगा कि यह महिला किसी राजघराने की होगी। लेकिन कुंती को देखकर उसे यह भी लगा कि शायद वह उससे पहले भी मिल चुका है।
तब कर्ण ने कहा, ‘मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं तुम्हें हमेशा से जानता हूँ। मैंने तुम्हारे उदास नेत्र, कोमल स्वर और चेहरे को लगातार अपने सपनों में देखा है। ये सपने मुझे हर बार बेचैन कर देते हैं।
कर्ण ने आगे कहा, ‘सालों से, मुझे हर रात एक ही सपना आता है। मैं एक महिला को देखता हूँ जो एक राजकुमारी की तरह है, उसका चेहरा हमेशा घूंघट से ढका रहता है। वह मेरे ऊपर झुकती है। उसकी आँखों से गर्म आँसू मेरे चेहरे पर गिरते हैं और मुझे जलाते हैं। वह कहती है, “मैं तुम्हारे साथ हुए अन्याय के लिए रो रही हूँ। मैं तुमसे केवल तुम्हारे सपनों में ही बात कर सकती हूँ। जब मैं पूछता हूँ “तुम कौन हो?” अगर मुझे जवाब नहीं मिलता, तो वह मेरे सपनों से गायब हो जाती है।’
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तब, शर्मिंदा कुंती ने कहा, ‘मैं तुम्हारी माँ हूँ, तुम मेरे सबसे बड़े बेटे हो। पांडव तुम्हारे भाई हैं।’ यह सुनकर कर्ण चौंक गया। किस्मत के खेल ने उसे भावुक कर दिया, यही वो पल था जिसका उसे पूरी जिंदगी इंतजार था। अब वो पल उसके सामने था लेकिन अजीब तरह से चौंकाने वाला था। उसने रोते हुए अपनी मां को गले लगा लिया। हालांकि, कर्ण ने कुंती को साफ कर दिया कि वो युद्ध में दुर्योधन का साथ देगा। उसने कहा, पांडवों के खिलाफ लड़ना उसकी मजबूरी है। हां, तुम्हारे पांचों बेटे जरूर बचेंगे, ये मेरा वादा है।
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