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India News (इंडिया न्यूज), Facts About Mahabharat: महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म के बीच हुआ एक ऐसा ऐतिहासिक संग्राम है, जिसमें हर एक योद्धा ने अपने पराक्रम और वीरता का परिचय दिया। इस युद्ध के अनेक रोचक और अद्भुत प्रसंग हैं, जिनमें से एक है हनुमान जी का कर्ण को गदा से मारने के लिए रथ से उतरना। यह प्रसंग दर्शाता है कि महाभारत केवल मानव योद्धाओं तक ही सीमित नहीं था, बल्कि देव, महादेवता और अद्वितीय शक्तियां भी इसमें भाग ले रही थीं।
महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले, जब अर्जुन अपने संदेह और कर्तव्य को लेकर विचलित थे, श्रीकृष्ण ने उन्हें मार्गदर्शन दिया। इसी दौरान अर्जुन ने भगवान हनुमान से अपने रथ की रक्षा का आग्रह किया। हनुमान जी ने यह वचन दिया कि वे अर्जुन के रथ के ध्वज पर निवास करेंगे और पूरे युद्ध के दौरान उनकी रक्षा करेंगे।
इस देवता की मृत्यु के बाद क्यों उनके शरीर की राख को 8 भागों में कर दिया गया था विभाजित?
कुरुक्षेत्र के मैदान में जब युद्ध चरम पर था, तब कर्ण और अर्जुन के बीच घमासान लड़ाई हो रही थी। कर्ण, जो कि एक पराक्रमी योद्धा थे, ने अर्जुन को हराने के लिए अपने घातक बाणों का प्रयोग किया। अर्जुन के रथ पर निरंतर बाणों की बौछार हो रही थी, लेकिन श्रीकृष्ण और हनुमान जी की उपस्थिति के कारण कर्ण का कोई भी बाण अर्जुन को गंभीर नुकसान नहीं पहुंचा पा रहा था।
कर्ण का क्रोध इस हद तक बढ़ गया कि उसने अपनी पूरी शक्ति से बाणों की वर्षा शुरू कर दी। इन बाणों में से कुछ बाण श्रीकृष्ण को भी लगने लगे। श्रीकृष्ण को घायल होते देख, हनुमान जी का क्रोध प्रज्वलित हो गया।
हनुमान जी ने तुरंत ही ध्वज से कूदकर गदा उठाई और कर्ण की ओर बढ़ने लगे। उनका रौद्र रूप देखकर पूरे युद्धक्षेत्र में एक अजीब भय फैल गया। कर्ण, जो अब तक अर्जुन पर आक्रमण कर रहे थे, हनुमान जी को अपनी ओर आता देख सहम गए। उन्होंने तुरंत ही अपना धनुष नीचे रखा, हाथ जोड़ लिए, और हनुमान जी से क्षमा मांगने लगे।
श्रीकृष्ण ने हनुमान जी को शांत करने के लिए उन्हें आवाज दी। जब हनुमान जी ने श्रीकृष्ण की ओर देखा, तो उनका क्रोध तुरंत शांत हो गया। उन्होंने अपनी गदा नीचे रख दी और वापस रथ पर लौट आए।
हनुमान जी का क्रोध देखकर यह निश्चित लग रहा था कि कर्ण की मृत्यु निश्चित है। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की सूझबूझ और कर्ण के पश्चाताप ने उनकी जान बचा ली। यह घटना यह दर्शाती है कि धर्म और करुणा का महत्व कितना बड़ा है।
हनुमान जी की इस भूमिका से यह सीख मिलती है कि जब धर्म की रक्षा का प्रश्न हो, तो शक्ति का उपयोग अवश्य करना चाहिए, लेकिन जब कोई व्यक्ति अपनी भूल स्वीकार कर ले और क्षमा मांगे, तो उसे एक मौका देना भी आवश्यक है। यह प्रसंग श्रीकृष्ण और हनुमान जी की करुणा और धैर्य को भी दर्शाता है।
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महाभारत का यह अध्याय हमें बताता है कि धर्म और न्याय का पालन करने वाले हमेशा विजयी होते हैं। हनुमान जी की उपस्थिति ने न केवल अर्जुन को विजय दिलाई, बल्कि युद्ध के दौरान कई बार धर्म की रक्षा भी की। महाभारत का युद्ध केवल शारीरिक शक्ति का नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति का भी युद्ध था। हनुमान जी का इस युद्ध में अर्जुन के रक्षक के रूप में होना यह साबित करता है कि जब धर्म की रक्षा का समय आता है, तो ईश्वर और उनके भक्त हमेशा सहायक बनते हैं।
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