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India News (इंडिया न्यूज), Gita Updesh: महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि पर अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। लेकिन इसके अलावा भी कई लोगों ने गीता को कई बार बोला और सुना है। वैसे तो सभी जानते हैं कि श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की भूमि पर अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि ही वह स्थान है जहां से गीता की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है कि गीता का जन्म कलयुग के आरंभ से 30 वर्ष पूर्व हुआ था। इसीलिए मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है।
जब भगवान कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, तो उन्होंने यह भी कहा कि वे इसका उपदेश पहले ही सूर्य देव को दे चुके हैं। तब अर्जुन ने आश्चर्य से कहा कि सूर्य देव तो प्राचीन देवता हैं, आप उन्हें सबसे पहले इसका उपदेश कैसे दे सकते हैं। तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम्हारे और मेरे पहले भी कई जन्म हो चुके हैं। तुम उन जन्मों के बारे में नहीं जानते, लेकिन मैं जानता हूँ। इस तरह गीता का ज्ञान सबसे पहले अर्जुन को नहीं बल्कि सूर्य देव को मिला था।
जब भगवान कृष्ण कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, तब संजय (धृतराष्ट्र के सारथी, जिन्हें महर्षि वेद व्यास ने दिव्य दृष्टि प्रदान की थी) अपनी दिव्य दृष्टि से वह सब देख रहे थे और उन्होंने धृतराष्ट्र को गीता का उपदेश दिया।
जब महर्षि वेद व्यास ने अपने मन में महाभारत की रचना की, तो बाद में उन्होंने सोचा कि मैं इसे अपने शिष्यों को कैसे पढ़ाऊं? महर्षि वेद व्यास के विचारों को जानकर स्वयं ब्रह्मा उनके पास आए। महर्षि वेद व्यास ने उन्हें महाभारत ग्रंथ की रचना के बारे में बताया और कहा कि इस धरती पर ऐसा कोई नहीं है जो इसे लिख सके। तब ब्रह्मदेव ने कहा कि आपको इस कार्य के लिए श्री गणेश का आह्वान करना चाहिए। महर्षि वेद व्यास के अनुरोध पर श्री गणेश ने स्वयं महाभारत ग्रंथ लिखा। महर्षि वेद व्यास बोलते रहे और श्री गणेश लिखते रहे। इस समय महर्षि वेद व्यास ने श्री गणेश को गीता का उपदेश दिया।
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जब भगवान श्री गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखा था। उसके बाद महर्षि वेद व्यास ने अपने शिष्यों वैशम्पायन, जैमिनी, पैल आदि को महाभारत के गूढ़ रहस्यों को समझाया। इसके अंतर्गत महर्षि वेद व्यास ने अपने शिष्यों को गीता का ज्ञान भी दिया।
पांडवों के वंशज राजा जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ के पूर्ण होने के बाद महर्षि वेद व्यास अपने शिष्यों के साथ राजा जनमेजय के दरबार में गए। वहां राजा जनमेजय ने महर्षि वेद व्यास से अपने पूर्वजों (पांडवों और कौरवों) के बारे में पूछा। तब महर्षि वेदव्यास के अनुरोध पर उनके शिष्य वैशम्पायन ने राजा जन्मेजय के दरबार में संपूर्ण महाभारत सुनाई। इस दौरान उन्होंने वहां उपस्थित लोगों को गीता का उपदेश भी दिया।
लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा सूत वंश के श्रेष्ठ पुराणिक थे। एक बार जब वे नैमिषारण्य पहुंचे तो वहां कुलगुरु शौनक 12 वर्ष का सत्संग कर रहे थे। जब नैमिषारण्य के ऋषियों और शौनकजी ने उन्हें देखा तो उनसे कथा सुनाने का अनुरोध किया। तब उग्रश्रवा ने कहा कि मैंने राजा जन्मेजय के दरबार में ऋषि वैशम्पायन के मुख से महाभारत की एक विचित्र कथा सुनी है, वही मैं आप लोगों को सुना रहा हूं। इस प्रकार ऋषि उग्रश्रवा ने शौनकजी के साथ-साथ नैमिषारण्य में उपस्थित तपस्वियों को भी महाभारत की कथा सुनाई। इस दौरान उन्होंने गीता का उपदेश भी दिया।
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