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India News (इंडिया न्यूज), Aaudi Arabia Brics: सऊदी अरब द्वारा ब्रिक्स में शामिल होने की योजना को स्थगित करने के बाद इस संगठन में उसका प्रवेश रोक दिया गया है। रूसी समाचार एजेंसी इंटरफैक्स ने क्रेमलिन के विदेश नीति सलाहकार यूरी उशाकोव के हवाले से बताया है कि सऊदी अरब का ब्रिक्स में प्रवेश रोक दिया गया है। रूस फिलहाल ब्रिक्स की अध्यक्षता कर रहा है। सऊदी अरब को ब्रिक्स के विस्तार के तहत 2023 में इसमें शामिल होने का निमंत्रण मिला था, जिसे उसने लंबे समय तक लटकाए रखा। इससे पहले ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल थे। अब मिस्र, ईरान, यूएई और इथियोपिया भी ब्रिक्स के सदस्य हैं, लेकिन सऊदी इसमें शामिल नहीं हुआ है।
इस साल अक्टूबर में रूस में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बाद अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी थी। ट्रंप ने ब्रिक्स देशों की अपनी मुद्रा अपनाने की योजना पर काफी नाराजगी जताई थी। ऐसे में सऊदी के पीछे हटने को भी ट्रंप की धमकी से जोड़कर देखा जा रहा है। सऊदी अरब को अमेरिका का खास सहयोगी माना जाता है।
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फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, सऊदी अरब को ब्रिक्स में शामिल होने का निमंत्रण मिला था। सऊदी अरब ने ब्रिक्स की सदस्यता के लिए बातचीत भी की थी। तब सऊदी अरब ने कहा था कि वह अभी तक औपचारिक रूप से ब्रिक्स में शामिल नहीं हुआ है। इस साल अक्टूबर में रूस ने भी सऊदी अरब को ब्रिक्स का सदस्य बताया था। बाद में रूस को यह बयान भी वापस लेना पड़ा।
रूस ने फिलहाल सऊदी अरब की एंट्री रोक दी है। इससे ब्रिक्स में सऊदी अरब की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है। ब्रिक्स में शामिल होने से उसकी आर्थिक और राजनीतिक ताकत बढ़ सकती थी। वहीं, दूसरी ओर सऊदी अरब अमेरिका का भी अहम सहयोगी है। ब्रिक्स में शामिल होने से उसके अमेरिका से रिश्ते खराब हो सकते थे। माना जा रहा है कि इसी वजह से सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने ब्रिक्स में शामिल न होने का फैसला किया।
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विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिक्स देशों पर टैरिफ लगाने संबंधी डोनाल्ड ट्रंप के बयान ने भी सऊदी अरब के फैसले को प्रभावित किया है। यह देखना अभी बाकी है कि सऊदी अरब भविष्य में ब्रिक्स में शामिल होगा या नहीं। फिलहाल सऊदी अरब ने खुद को ब्रिक्स से अलग कर लिया है। यह किसी तरह रूस और ब्रिक्स के लिए एक झटके जैसा है।
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