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भारत में प्रधानमंत्री के निधन पर कितने दिनों का होता है राष्ट्रीय शोक? 2010 के बाद हुए बड़े बदलावों से लेकर जानें सब कुछ

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : December 27, 2024, 12:07 pm IST
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भारत में प्रधानमंत्री के निधन पर कितने दिनों का होता है राष्ट्रीय शोक? 2010 के बाद हुए बड़े बदलावों से लेकर जानें सब कुछ

Former PM Manmohan Singh Demise: 2010 के बाद राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि वे यह तय कर सकती हैं कि किसे राजकीय सम्मान देना है।

India News (इंडिया न्यूज), Former PM Manmohan Singh Demise: भारत में किसी भी पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, या अन्य गणमान्य व्यक्ति के निधन पर राजकीय शोक की घोषणा एक महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल का हिस्सा है। इस प्रक्रिया के दौरान कुछ निश्चित नियमों और परंपराओं का पालन किया जाता है। यह लेख इसी विषय पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।

राजकीय शोक की घोषणा कब की जाती है?

भारत में राजकीय शोक की घोषणा आमतौर पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और अन्य राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के निधन पर की जाती है। यह घोषणा केंद्रीय सरकार के दिशा-निर्देशों और प्रोटोकॉल के आधार पर की जाती है।

  • सात दिन का राष्ट्रीय शोक: सात दिन का शोक आमतौर पर वर्तमान या पूर्व राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के निधन पर घोषित किया जाता है। उदाहरणस्वरूप, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था।
  • विशेष परिस्थितियां: यदि किसी गणमान्य व्यक्ति की मृत्यु पद पर रहते हुए होती है, तो शोक की अवधि और उसके स्वरूप का निर्धारण स्थिति और महत्व को ध्यान में रखकर किया जाता है। जैसे, जवाहरलाल नेहरू (1964), लाल बहादुर शास्त्री (1966), और इंदिरा गांधी (1984) के निधन पर शोक अवधि घोषित की गई थी।

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राष्ट्रीय शोक के दौरान क्या होता है?

  1. राष्ट्रीय ध्वज: भारत के फ्लैग कोड के अनुसार, राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया जाता है। यह नियम न केवल भारत में बल्कि विदेश में स्थित भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों पर भी लागू होता है। उदाहरण के लिए, अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर यह सुनिश्चित किया गया था कि ध्वज 22 अगस्त तक आधा झुका रहेगा।
  2. सरकारी समारोह और उत्सव: शोक अवधि के दौरान कोई सरकारी समारोह, सांस्कृतिक उत्सव, या मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाते।
  3. राजकीय अंत्येष्टि: राजकीय शोक के दौरान गणमान्य व्यक्ति के अंतिम संस्कार का आयोजन राजकीय सम्मान के साथ किया जाता है। इसमें तिरंगे में लिपटे ताबूत और बंदूकों की सलामी शामिल होती है।
  4. सार्वजनिक छुट्टियां: केंद्रीय सरकार के 1997 के नोटिफिकेशन के अनुसार, राष्ट्रीय शोक के दौरान अनिवार्य सार्वजनिक छुट्टियां नहीं होती हैं। हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की पद पर रहते हुए मृत्यु, सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की जा सकती है।

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राजकीय सम्मान का अधिकार और राज्य सरकारों की भूमिका

2010 के बाद, राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि वे यह तय कर सकती हैं कि किसे राजकीय सम्मान देना है। इस बदलाव ने राज्यों को उनकी संस्कृति और परंपरा के अनुरूप निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी है।

इतिहास में राजकीय शोक के प्रमुख उदाहरण

  • महात्मा गांधी (1948): आजाद भारत में पहला राजकीय सम्मान महात्मा गांधी के लिए आयोजित किया गया था।
  • राजीव गांधी (1991): उनकी हत्या के बाद सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था।
  • अटल बिहारी वाजपेयी (2018): उनकी मृत्यु पर पूरे देश में और विदेश स्थित भारतीय दूतावासों में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रखा गया।

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कला और अन्य क्षेत्रों के व्यक्तियों को राजकीय सम्मान

राजकीय सम्मान केवल राजनेताओं तक सीमित नहीं है। कई प्रसिद्ध कलाकारों और सामाजिक हस्तियों को भी यह सम्मान दिया गया है। इनमें ज्योति बसु, जयललिता, और एम. करुणानिधि जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं।

राजकीय शोक भारत की संवैधानिक व्यवस्था और परंपराओं का प्रतीक है। यह न केवल गणमान्य व्यक्तियों के प्रति श्रद्धांजलि है, बल्कि उनकी स्मृति को संजोने और उनके योगदान का सम्मान करने का एक माध्यम भी है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि उनके निधन का शोक राष्ट्रीय स्तर पर साझा किया जाए।

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