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India News (इंडिया न्यूज), Manmohan Singh Resign News: भारत के 14वें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार (26 दिसंबर 2024) को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। मनमोहन सिंह ने ऐसे समय में वित्त मंत्री की जिम्मेदारी संभाली जब पूरी दुनिया मंदी के चपेट में आया। ऐसे समय में मनमोहन सिंह ने वो कर दिखाया जो पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया। 1991 में किए गए आर्थिक सुधारों की वजह से पूरी दुनिया में भारत ने आर्थिक सुधारों की नई इबारत लिखी। साल 2014 तक प्रधानमंत्री पद पर रहते गए भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में तीसरे नंबर पर थी। इन सबसे अलग मनमोहन सिंह ने कई बार इस्तीफा देने की भी ठानी थी।
प्रधानमंत्री के तौर पर अपने 10 साल के कार्यकाल और उससे पहले के शानदार राजनीतिक सफर में उन्होंने कई ऐसे मोड़ देखे, जब उन्होंने इस्तीफा देने के बारे में सोचा या पेशकश की। उनके जीवन में तीन ऐसे वाकये सबसे खास रहे, जब वे इस्तीफा देने पर अड़े रहे, लेकिन हर बार उनके फैसले ने देश को एक नई दिशा दी।
साल 1991 में नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री के तौर पर डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की। लेकिन 1992 में बजट पेश करने के दौरान विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने उनके बजट की कड़ी आलोचना की। वाजपेयी की बातों से आहत डॉ. सिंह ने प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को अपना इस्तीफा देने की पेशकश की। राव ने वाजपेयी से संपर्क किया, जिन्होंने डॉ. सिंह को समझाया कि राजनीतिक आलोचना लोकतंत्र का हिस्सा है। डॉ. सिंह ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया और उनके आर्थिक सुधार भारत की आर्थिक नींव साबित हुए।
साल 2008 में प्रधानमंत्री के तौर पर डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका के साथ ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौते की पहल की। लेकिन यूपीए सरकार के वामपंथी सहयोगियों ने इसका विरोध किया और सरकार गिराने की धमकी दी। वामपंथियों के विरोध के बाद मनमोहन सिंह ने कहा कि, यह सौदा भारत के हित में है और उन्होंने साफ कर दिया कि अगर सौदा नहीं हुआ तो वे इस्तीफा दे देंगे। उनकी दृढ़ता के कारण सौदा हुआ, जिससे भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति मजबूत हुई और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा मिला।
साल 2013 में डॉ. सिंह की सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया, जो दोषी सांसदों को अयोग्य ठहराए जाने से बचा सकता था। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे ‘बेबुनियाद’ बताते हुए सार्वजनिक रूप से खारिज कर दिया। इस टिप्पणी को डॉ. सिंह और उनकी सरकार के लिए बेहद अपमानजनक माना गया। इस अपमान से आहत डॉ. सिंह ने इस्तीफा देने का फैसला किया। लेकिन पार्टी नेतृत्व और उनके करीबी सहयोगियों ने उन्हें समझाया कि सरकार बचाने के लिए यह जरूरी है। उन्होंने पार्टी के हित में अपना फैसला बदला।
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