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India News (इंडिया न्यूज), Syria:कई बार भारी बारिश के दौरान अस्पताल में जान बचाना मुश्किल हो जाता है, लेकिन सीरिया के डॉ. दहर को हमें सलाम करना चाहिए, क्योंकि वे जमीन के ऊपर बमों की बारिश के बीच जमीन के नीचे सुरंग बनाकर मरीजों का इलाज कर रहे हैं। सुरंग इसलिए बनाई गई, क्योंकि असद की सेना ने ड्यूमा अस्पताल समेत सभी चिकित्सा संस्थानों को निशाना बनाया था।
सीरिया में विनाशकारी युद्ध के दौरान ड्यूमा के निवासियों ने गोलाबारी और हवाई हमलों से बचने के लिए जमीन के नीचे बनी सुरंगों का सहारा लिया था। ये सुरंगें न केवल बमबारी से बचने का जरिया थीं, बल्कि युद्ध में घायल हुए नागरिकों और सैनिकों के लिए अस्पताल का काम भी कर रही थीं। इसके लिए ड्यूमा अस्पताल के डॉ. मोहम्मद दहर और उनकी टीम ने इन सुरंगों को घायलों का इलाज जारी रखने का मुख्य माध्यम बनाया।
ड्यूमा अस्पताल के नीचे बनी सुरंग ने न केवल डॉक्टरों और पैरामेडिक्स को गोलाबारी से बचाने का काम किया, बल्कि घायलों और मरीजों के इलाज के लिए एक सुरक्षित जगह भी मुहैया कराई। इस पर डॉ. दहर कहते हैं, ‘यह सुरंग अस्पताल और उसके कर्मचारियों के लिए लाइफलाइन की तरह थी। इसके इस्तेमाल से न केवल लोगों की सुरक्षा होती थी, बल्कि लगातार हमलों के बीच घायलों का इलाज जारी रखने का यह एकमात्र तरीका भी था।’
सुरंग इसलिए बनाई गई क्योंकि असद की सेना ने ड्यूमा अस्पताल समेत सभी चिकित्सा संस्थानों को निशाना बनाया। हेलीकॉप्टर, बैरल बम और मशीन गन हमलों के बावजूद यह सुरंग चिकित्सा सेवाओं के लिए एक मजबूत आधार बनी रही। डॉ. दहर ने बताया कि सुरंग को दिन में सैकड़ों बार निशाना बनाया जाता था।
गोलाबारी के कारण सड़कों पर एंबुलेंस की आवाजाही लगभग असंभव थी। ऐसे में सुरंगों का नेटवर्क घायलों के इलाज और चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति का मुख्य साधन बन गया। ड्यूमा और उसके आसपास के ग्रामीण इलाकों के लिए अस्पताल पहुंचने का यह सुरंग एकमात्र सुरक्षित रास्ता था।
अस्पताल के नीचे सुरंग बनाना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि बमबारी के दौरान असद की सेना को इमारतें साफ दिखाई देती थीं। ड्यूमा के सामने पहाड़ी होने के कारण सेना ने अस्पताल और एंबुलेंस को निशाना बनाया, जिससे चिकित्सा सेवाएं बाधित हुईं। इन सुरंगों ने न केवल चिकित्सा कर्मियों को सुरक्षा प्रदान की, बल्कि घायलों के इलाज और दवाइयों की आपूर्ति में भी मदद की। डॉ. दहर ने कहा कि ‘यह सुरंग न केवल घायलों को बचाने के लिए थी, बल्कि यह डौमा के लोगों के लिए आशा की किरण भी थी।’
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