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India News (इंडिया न्यूज), Baal Naga Sadhu: महाकुंभ, धर्म और आस्था का एक ऐसा महासंगम है, जहां साधु-संतों और भक्तों का जमावड़ा देखने लायक होता है। यहां हर कोई अपने अनूठे तरीके से लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। इस वर्ष महाकुंभ में एक विशेष आकर्षण बने हैं ‘बाल नागा साधु’ गोपाल गिरि।
गोपाल गिरि महज 8 साल की उम्र में नागा साधु बन चुके हैं। वे आह्वान अखाड़े से जुड़े हुए हैं और अपने बालपन में ही साधु जीवन का कठिन मार्ग अपना चुके हैं। उनकी मासूमियत और साधुता का यह अद्भुत संगम लोगों को आश्चर्यचकित कर रहा है।
गोपाल गिरि का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा है। वे बताते हैं कि नागा साधु बनने के लिए उन्होंने अनेक चुनौतियों का सामना किया है। उनके माता-पिता ने उन्हें केवल 3 साल की उम्र में त्याग दिया और गुरु के पास सौंप दिया। तब से वे अपने गुरु के सान्निध्य में रहकर साधना और सेवा कर रहे हैं।
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जहां इस उम्र के बच्चे खिलौनों और वीडियो गेम्स के पीछे भागते हैं, वहीं गोपाल गिरि तपस्या और साधना में रत रहते हैं। वे कहते हैं, “संन्यासी बनना आसान नहीं है। कंपकंपाती ठंड में बिना कपड़ों के रहना और बिना चप्पल के पैदल चलना साधारण नहीं है।” उनके विचार और व्यवहार किसी सिद्ध महात्मा की परिपक्वता को दर्शाते हैं।
गोपाल गिरि का यह पहला महाकुंभ है। उन्होंने हाल ही में अपने गुरु से दीक्षा ली है और अब गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। कुंभ मेले में गोपाल गिरि अपने गुरु भाइयों के साथ पहुंचे हैं और आस्था की डुबकी लगाएंगे। इस छोटे से संन्यासी को देखकर हर कोई ठहर जाता है और उनका आशीर्वाद लेना नहीं भूलता।
महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालु गोपाल गिरि की सादगी और शालीनता से प्रभावित होते हैं। वे न केवल उनका आशीर्वाद लेते हैं बल्कि उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने का अवसर भी नहीं छोड़ते। उनकी उपस्थिति यह संदेश देती है कि उम्र चाहे जो भी हो, आस्था और तपस्या के मार्ग पर चलने के लिए समर्पण और साहस की आवश्यकता होती है।
गोपाल गिरि का जीवन यह सिखाता है कि भौतिक सुख-सुविधाओं से परे भी जीवन का एक अद्वितीय मार्ग है, जो आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर ले जाता है। महाकुंभ में उनकी उपस्थिति ने श्रद्धालुओं के बीच आस्था की एक नई ऊर्जा और प्रेरणा का संचार किया है। बाल नागा साधु गोपाल गिरि न केवल महाकुंभ के मुख्य आकर्षण बने हैं, बल्कि उनकी कहानी हर किसी के लिए एक प्रेरणा बन गई है।
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