संबंधित खबरें
फटीचर पाकिस्तान ने जनता पर फोड़ा नया बम, इज्जत बचाने के लिए बन गया 'भस्मासुर', आम आदमी को तबाह कर देगा ये नया फरमान
सामने आई दुनिया के सबसे शक्तिशाली पासपोर्ट्स की लिस्ट, भारत से आगे निकले ये देश, गर्त में गई पाकिस्तान की रेटिंग
चरम पर पहुंचा Trump का लालच, कनाडा छोड़िए अब इस खूबसूरत जगह की छीनी जाएगी पहचान? NATO में मचा हडकंप
मिडिल ईस्ट में हुआ बड़ा खेला, Netanyahu हुए अपने सबसे करीबी सहयोगी से नाराज, गुस्से में लाल-पीला हो कर उठाया बड़ा कदम
मिडिल ईस्ट में छिड़ेगी नई जंग, इजरायल और अमेरिका के खिलाफ इस देश खोला मोर्चा, नेतन्याहू और ट्रंप के निकले पसीने
गर्त में जाने के बाद होश में आया ये देश, मदद के लिए भारत के सामने फैलाए हाथ, मुंह ताकते रह गए Jinping
India News (इंडिया न्यूज), Artificial Solar Eclipse: सूर्यग्रहण एक प्राकृतिक घटना है। जब भी चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है तो हम इसे सूर्य ग्रहण कहते हैं। लेकिन क्या हो जब इंसान सूरज पर सूर्यग्रहण लगाने लगे! जी हाँ अब वैज्ञानिक कृत्रिम रूप से सूर्य ग्रहण कराने जा रहे हैं। आप सोच रहे होंगे कि कैसे? क्या यह संभव भी है? जी हां, सूर्य का अध्ययन करने के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) यह जोखिम उठाने जा रही है। एजेंसी ने अंतरिक्ष में दो ऐसे अंतरिक्ष यान भेजे हैं, जो सूर्य के सामने आकर उसकी रोशनी को पृथ्वी तक पहुंचने से रोकेंगे, इस तरह कृत्रिम सूर्य ग्रहण लगेगा।
भारत यानी इसरो ने भी कृत्रिम सूर्य ग्रहण कराने में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) की मदद की है। 5 दिसंबर को भारत के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV-C59 रॉकेट द्वारा प्रक्षेपित किए गए प्रोबा-3 मिशन के बारे में तो आप जानते ही होंगे। यह वही मिशन है जिसके तहत कृत्रिम सूर्यग्रहण लगाया जाएगा। इस मिशन के तहत ESA ने दो अंतरिक्षयान अंतरिक्ष में भेजे थे, जिनका मिशन सूर्य के कोरोना का अध्ययन करना है।
प्रोबा-3 मिशन के तहत दो अंतरिक्षयान – कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट (CSC) और ऑकल्टर स्पेसक्राफ्ट (OSC) को पृथ्वी से 60 हजार किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किया जाएगा। ऑकल्टर स्पेसक्राफ्ट में 140 सेमी व्यास की डिस्क है, जो कोरोनाग्राफ स्पेसक्राफ्ट पर नियंत्रित छाया डालेगी और सूर्य के चमकीले हिस्से को अवरुद्ध करेगी। ESA के वैज्ञानिकों ने बताया कि दोनों अंतरिक्षयान खुद को सूर्य से ठीक 150 मीटर की दूरी पर रखते हुए प्रिसिस फॉर्मेशन फ्लाइंग (PFF) तकनीक का इस्तेमाल करेंगे। इस दौरान एक मिलीमीटर स्तर तक सटीक गणना की जरूरत होगी, ताकि 6 घंटे के लिए कृत्रिम सूर्यग्रहण बनाया जा सके, जिस दौरान सूर्य के कोरोना का अध्ययन किया जाएगा।
सूर्य की सतह का तापमान करीब 5500 डिग्री सेल्सियस है, जबकि इसके कोरोना का तापमान 10 लाख से 30 लाख डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है। यही वजह है कि सूर्य का यही वह हिस्सा है जिसका सबसे कम अध्ययन किया गया है। वैज्ञानिक यह समझना चाहते हैं कि कोरोना सूर्य से इतना ज़्यादा गर्म क्यों है। इस मिशन के तहत सौर वायुमंडल और सौर हवाओं और सूर्य के वास्तविक तापमान का पता लगाया जा सकेगा।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.