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India News (इंडिया न्यूज), Iravan Devta: महाभारत की कहानी अर्जुन के इर्द-गिर्द घूमती है। महाराज पांडु और रानी कुंती के तीसरे पुत्र अर्जुन ने चार बार विवाह किया। द्रौपदी के अलावा उन्होंने चित्रांगदा, सुभद्रा और उलूपी से भी विवाह किया। अर्जुन और उलूपी की मुलाकात और विवाह की कहानी बहुत रोचक है। भागवत और विष्णु पुराण में उल्लेख है कि उलूपी अर्जुन की दूसरी पत्नी थीं। वह नाग राजा कौरव्य की पुत्री थीं।
इंद्रप्रस्थ की स्थापना के बाद अर्जुन मैत्री अभियान पर निकले। उन्होंने सबसे पहले नाम लोक जाने का फैसला किया। वहां उनकी पहली मुलाकात उलूपी से हुई। उलूपी का आधा शरीर सांप का और आधा इंसान का था। अर्जुन को देखते ही वह मंत्रमुग्ध हो गई। वह उसे पाताल लोक ले गई और विवाह का प्रस्ताव रखा। अर्जुन ने उलूपी का अनुरोध स्वीकार कर लिया। दोनों करीब 1 साल तक साथ रहे। भीष्म पर्व के 90वें अध्याय में संजय ने उलूपी का परिचय धृतराष्ट्र से कराया। बताया जाता है कि कैसे गरुड़ ने सांपों के राजा की बेटी उलूपी के होने वाले पति को मार डाला था। इसके बाद सांपों के राजा कौरव्य ने अपनी बेटी का हाथ अर्जुन को सौंप दिया था।
विष्णु पुराण में उल्लेख है कि अर्जुन और उलूपी के विवाह से एक पुत्र हुआ था। उसका नाम इरावन रखा गया। उसने अपना अधिकांश समय माता उलूपी के साथ नागलोक में बिताया। वहीं उसने युद्ध कला सीखी। इरावन अपने पिता अर्जुन की तरह ही बहुत कुशल धनुर्धर निकला। उसने सभी जादुई अस्त्र-शस्त्रों में महारत हासिल कर ली थी। उसने सभी शास्त्रों और पुराणों का भी अध्ययन किया था।
महाभारत के युद्ध से ठीक पहले पांडवों ने अपनी जीत के लिए एक विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया। उन्होंने मां काली की पूजा की। इस पूजा में एक मानव बलि दी जानी थी। पांडव और उनके मित्र कृष्ण दोनों ही असमंजस में थे कि बलि कौन देगा? इसके बाद अर्जुन के पुत्र इरावन खुद आगे आए और बलि देने के लिए तैयार हो गए। लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि बलि से पहले वह विवाह करना चाहते हैं।
इरावन की शर्त सुनकर पांडव और कृष्ण दोनों ही सोच में पड़ गए। आखिर कौन राजकुमारी एक दिन के लिए इरावन से विवाह करेगी और अगले दिन विधवा हो जाना चाहेगी। लेकिन कृष्ण ने इसका भी रास्ता निकाल लिया। उन्होंने मोहिनी रूप धारण करके इरावन से विवाह किया। इरावन के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि किन्नर उन्हें अपना भगवान मानते हैं।
जब उलूपी नागलोक लौटने लगी तो उसने अर्जुन को वरदान दिया कि पूरा जल-राज्य उसकी आज्ञा मानेगा। पानी के अंदर अर्जुन को कभी कोई हरा नहीं पाएगा। यह भी उल्लेख मिलता है कि जब महाभारत युद्ध में अर्जुन ने अपने गुरु भीष्म पितामह को मारा था तो ब्रह्मपुत्र ने उन्हें श्राप दिया था। बाद में उलूपी ने ही अर्जुन को इस श्राप से मुक्ति दिलाई थी।
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