डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
संबंधित खबरें
Exclusive: सनातन धर्म में हो रहे धर्मांतरण, युवा संस्कृति कैसे बन रही कारण, अटल अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर से जानें वजह
बना ली रोटीयां, तो चकला-बेलन के साथ भूलकर भी न करें ये 4 गलतियां, टूट पड़ेगा दुखों का पहाड़, संभाले नही संभलेंगी समस्याएं!
बस गुड़ का एक टुकड़ा बदल सकता है आपकी जिंदगी, चमकेगी ऐसी किस्मत कि कभी नही छोड़ेंगे ये उपाय!
अघोरीयों का रोंगटे खड़े कर देने वाला रहस्य, शवों के साथ करते हैं ऐसा काम, खाते हैं कच्चा मांस? जानें रहस्य
कैसा बीतेगा वृषभ राशि का साल 2025, टूट सकता है रिशता, झेल पड़ेगी बड़ी मुसिबतें! जानें कैसा रहेगा करियर?
इस मूलांक के जातक को आज छप्पर फाड़ कर हो सकता है मुनाफा, खुशीयों का बनेगा माहौल, जानें आज का अंक ज्योतीष!
India News (इंडिया न्यूज), Difference Between Nark aur Jahannum: मानव सभ्यता के अस्तित्व के साथ ही दो अवधारणाएं समानांतर रूप से चली आ रही हैं: पाप और पुण्य। इन दोनों विचारों को समझने और विस्तार से परिभाषित करने के लिए सनातन परंपरा में चार वेदों की रचना की गई। इसके बाद उपनिषद और 18 पुराणों ने इस विषय को और गहराई से समझाया। पाप और पुण्य की इस अवधारणा ने ही स्वर्ग और नर्क जैसे स्थानों की परिकल्पना को जन्म दिया।
सनातन परंपरा में पाप और पुण्य का तात्पर्य मनुष्य के कर्मों के प्रभाव से है। पुण्य वह है, जो व्यक्ति को शुभ फल देता है और अंततः स्वर्ग की ओर ले जाता है। दूसरी ओर, पाप वह है, जो व्यक्ति के जीवन और आत्मा पर नकारात्मक प्रभाव डालता है और नर्क का कारण बनता है।
गीता में श्रीकृष्ण आत्मा को अमर बताते हैं। वे कहते हैं कि आत्मा को अग्नि, जल, वायु या शस्त्र कोई हानि नहीं पहुंचा सकते। आत्मा सभी प्रकार के मोह और बंधनों से परे है। हालांकि, शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि धरती पर किए गए पापों का प्रभाव जीवात्मा पर पड़ता है और उसे नर्क भोगना पड़ता है।
नर्क का उल्लेख वेदों, उपनिषदों, और पुराणों में मिलता है। इसे पापियों को दंड देने का स्थान माना गया है। यहां दंड आत्मा को नहीं बल्कि जीवात्मा को मिलता है। यह धारणा इस आधार पर है कि जब आत्मा देह का त्याग करती है, तब उसकी पहचान कुछ समय के लिए उसी देह की बनी रहती है। इस अवस्था में जीवात्मा को यमदूत यमलोक ले जाते हैं।
यमलोक में चित्रगुप्त नामक सचिव सभी जीवात्माओं के पाप और पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। उनके पास एक विस्तृत पत्रिका होती है, जिसमें प्रत्येक जीवात्मा के कर्मों का ब्योरा दर्ज होता है। यह विवरण यमराज के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
पाप और पुण्य के आधार पर जीवात्मा के लिए दंड या फल निर्धारित किया जाता है। पुण्य के प्रभाव से आत्मा को स्वर्ग में स्थान मिलता है, जबकि पाप के परिणामस्वरूप जीवात्मा को नर्क में दंड भोगना पड़ता है।
पाप और पुण्य की अवधारणा मानव समाज को नैतिकता और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। यह विचार न केवल व्यक्ति के जीवन को शुद्ध और अनुशासित बनाने में सहायक है, बल्कि उसे आत्मा और कर्म के गहरे रहस्यों को समझने का अवसर भी प्रदान करता है। पाप और पुण्य के सिद्धांत यह सिखाते हैं कि हमारे कर्मों का प्रभाव केवल इस जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारी आत्मा के अगले पड़ाव को भी प्रभावित करता है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.