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जब युधिष्ठिर ने दी थी द्रौपदी को पति-पत्नी के संबंधों पर मर्यादा रखने की सलाह…वनवास के दौरान कैसे आई थी हर मोड़ पर काम?

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : January 14, 2025, 8:00 pm IST
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जब युधिष्ठिर ने दी थी द्रौपदी को पति-पत्नी के संबंधों पर मर्यादा रखने की सलाह…वनवास के दौरान कैसे आई थी हर मोड़ पर काम?

Yudhishthira Teach A Leason To Draupadi: जब युधिष्ठिर ने दी थी द्रौपदी को पति-पत्नी के संबंधों पर मर्यादा रखने की सलाह

India News (इंडिया न्यूज़), Yudhishthira Teach A Leason To Draupadi: महाभारत के वनवास काल में पांडवों और द्रौपदी के जीवन के कई ऐसे कठिन मोड़ थे, जिन्होंने उन्हें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और उसका मूल्यांकन करने का अवसर दिया। खासकर चीरहरण की घटना, जो द्रौपदी के लिए अत्यंत आहत करने वाली थी, ने उनके साथ एक लंबा और गहरा संवाद स्थापित किया। इस संवाद में युधिष्ठिर ने न केवल द्रौपदी को सांत्वना दी, बल्कि दांपत्य जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी उन्हें शिक्षा दी।

युधिष्ठिर की दांपत्य जीवन पर शिक्षाएं

युधिष्ठिर ने द्रौपदी से यह कहा था कि “पति-पत्नी का रिश्ता किसी भी परिवार की बुनियाद होता है”। उन्होंने दांपत्य जीवन को परिवार और समाज की स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। यह रिश्ता केवल भावनाओं का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि विश्वास, सम्मान और सहयोग की नींव पर टिका हुआ होता है।

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एक घटना को नहीं बनाना चाहिए पूरे रिश्ते का आधार 

युधिष्ठिर ने द्रौपदी से कहा कि “पति-पत्नी के रिश्ते में किसी एक घटना को पूरे संबंध की धुरी नहीं बनानी चाहिए”। वे यह कहना चाहते थे कि किसी एक खराब घटना या दुखद अनुभव के आधार पर पूरे रिश्ते का मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिए। प्रत्येक रिश्ते में उतार-चढ़ाव आते हैं, और उसे समझने और सुलझाने के लिए दोनों पक्षों को परिपक्वता से काम लेना चाहिए।

विश्वास और सम्मान का महत्व

युधिष्ठिर ने बताया कि “पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास और सम्मान केंद्र में होना चाहिए”। यह रिश्ते का सबसे मजबूत स्तंभ है। अगर पति-पत्नी के बीच विश्वास और सम्मान नहीं होगा, तो रिश्ता कमजोर पड़ जाएगा। इस विश्वास को कभी भी कम नहीं होने देना चाहिए क्योंकि यह ही रिश्ते की असल ताकत है।

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पत्नी को पति के फैसलों पर यकीन करना चाहिए

युधिष्ठिर ने द्रौपदी से कहा था कि “पत्नी को पति के फैसलों पर विश्वास करना चाहिए”। यह विश्वास दांपत्य जीवन में सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है। युधिष्ठिर का यह भी मानना था कि पति को पत्नी के सम्मान के लिए खड़ा होना चाहिए, और हमेशा उसकी रक्षा करना चाहिए। यह दोतरफा जिम्मेदारी दोनों के रिश्ते को मजबूत बनाती है।

अहंकार का त्याग

युधिष्ठिर ने इस बात की भी सलाह दी कि “पति-पत्नी के रिश्ते में अहंकार को हमेशा दूर रखना चाहिए”। अहंकार प्रेम के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट है, क्योंकि यह प्रेम, समझ, और सहयोग को नष्ट कर देता है। अहंकार के कारण रिश्ते में टकराव बढ़ता है और इसका नकारात्मक प्रभाव दोनों के जीवन पर पड़ता है।

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अविश्वास से बचना

युधिष्ठिर ने द्रौपदी से यह भी कहा कि “पत्नी-पत्नी के रिश्ते में कभी भी अविश्वास नहीं आना चाहिए”, क्योंकि अविश्वास से रिश्ते में क्लेश उत्पन्न होता है और यह दोनों के मानसिक और भावनात्मक शांति को छीन सकता है। अविश्वास से उत्पन्न होने वाली परेशानी को सुलझाना मुश्किल हो जाता है और रिश्ते की नींव कमजोर पड़ जाती है।

युधिष्ठिर का यह संदेश केवल महाभारत के समय तक सीमित नहीं है, बल्कि आज भी हमारे दांपत्य जीवन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनका यह दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि एक अच्छा और मजबूत दांपत्य रिश्ता विश्वास, सम्मान, सहयोग, और समझ पर आधारित होना चाहिए। किसी भी रिश्ते में न केवल भावनात्मक जुड़ाव की आवश्यकता होती है, बल्कि उसमें परिपक्वता, विश्वास और एक-दूसरे के प्रति सम्मान का होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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