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India News (इंडिया न्यूज), Mahakumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ-2025 के आयोजन के कारण दुनिया भर में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। 144 साल के कुंभ चक्र के पूरा होने पर यहां महाकुंभ का आयोजन किया जा रहा है। इस महाकुंभ में आम लोगों की भारी भीड़ उमड़ी है, इसके अलावा यहां की भीड़ में संत, महात्मा, साधुओं की टोलियां, पुजारी और फिर बड़े आध्यात्मिक अखाड़े शामिल हैं। कुंभ स्नान में अखाड़ों का अमृत (पहले शाही) स्नान सबसे दिलचस्प गतिविधि है। यह न केवल सदियों से चली आ रही परंपरा है, बल्कि भारत की प्राचीन विरासत भी है।
आध्यात्मिक रूप से 13 अखाड़े हैं, लेकिन वर्ष 2014 से किन्नर अखाड़े को भी मान्यता देकर इसमें जोड़ दिया गया है। ये अखाड़े अपने गठन से लेकर आज तक रहस्य और रुचि का विषय रहे हैं। नागाओं की जीवनशैली, उनकी साधना का तरीका, सामाजिक ताने-बाने से उनकी दूरी, लेकिन संकट की स्थिति में ये साधु योद्धा का रवैया अपना लेते हैं, यह आश्चर्यजनक है। ऐसी घटनाओं के ऐतिहासिक दस्तावेजी प्रमाण भी हैं।
विदेशी यात्रियों ने भी इन अखाड़ों की जीवनशैली और रीति-रिवाजों को आश्चर्यजनक बताया है। जब अंग्रेज भारत में थे, तो वे यह देखकर बहुत हैरान हुए कि एक ही स्थान पर और एक निश्चित समय पर इतना बड़ा आयोजन कैसे होता है। बाद में उन्होंने इसके लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए, जो कुंभ के आयोजन और प्रबंधन का अध्ययन करके एक रिपोर्ट तैयार करते थे।
अखाड़ों को बाहर से देखना जितना असाधारण है, उनकी आंतरिक संरचना को समझना भी उतना ही आश्चर्यजनक है। अखाड़ों में सभी साधु एक जैसे दिखते हैं, लेकिन इस पूरी संरचना में उनके पदों के अनुसार वरिष्ठता क्रम होता है। नए शामिल हुए साधु से लेकर महामंडलेश्वर पद तक का सफर लंबा होता है। समय-समय पर पदोन्नति होती रहती है और एक साधु के एक पद से दूसरे पद पर पदों का बंटवारा भी इसी आधार पर होता है।
इन पदों में प्रवेशी, रकमी, मूढ़तिया, नागा, सदर नागा, कोतवाल और भंडारी जैसे पद शामिल हैं। अखाड़ों में उपाधियाँ भी होती हैं। महामंडलेश्वर सबसे बड़े आचार्य होते हैं। जिनका कार्यकाल छह साल का होता है। इसके अलावा मुख्य संरक्षक और उपाध्यक्ष के पद भी होते हैं। वहीं श्रीमंहत, महंत, सचिव, मुखिया, स्टॉक मैनेजर भी इसी वरिष्ठता में आते हैं। जैसा कि विदित है कि अखाड़े तीन भागों में विभाजित हैं, वैष्णव, शैव और उदासी, इनमें पदों की प्राथमिकता और नाम क्रम भी अलग-अलग हैं। हालांकि कई बार यह अंतर सिर्फ नाम का होता है। संरचना एक ही है। लेकिन किसी अखाड़े में प्रवेश करने के बाद साधु को किन प्राथमिकता क्रमों से गुजरना पड़ता है, इसकी जानकारी अवश्य लें
अखाड़े में नव प्रवेशित साधु को प्रवेशी कहा जाता है। वह मर्यादा, अनुशासन और आदर्शों को अपना सर्वस्व मानता है, इसी आधार पर नए प्रवेशार्थी को प्रवेश दिया जाता है। वैष्णव अखाड़ों में नए प्रवेशार्थी को किसी भी संप्रदाय से दीक्षित और विरक्त होना आवश्यक होता है। प्रवेशार्थी को समय-समय पर छह अलग-अलग नाम दिए जाते हैं।
प्रवेश के समय वह सबसे पहले ‘रक्मी’ लेता है। राकम का अर्थ है पद और गोपनीयता की शपथ। ‘रक्मी’ लेने की यह प्रथा एक तरह की गोपनीयता की शपथ है। यह शपथ प्रवेशार्थी को आजीवन अखाड़े से बांधे रखती है। इसके बाद प्रवेशार्थी को तीन-तीन साल की विशेष कक्षाओं से गुजरना पड़ता है।
शपथ लेने के बाद अखाड़ों की भाषा में प्रवेशार्थी को छोटा, बंदगीदार, हुरडांगा, मुदथिया, नागा, सदरनागा, अतीत और महा अतीत की उपाधियां मिलती हैं।
‘नागा’ की उपाधि बारह वर्ष की आयु में दी जाती है। यह उपाधि मिलते ही वह अखाड़े का जिम्मेदार पदाधिकारी बन जाता है। वैष्णव अखाड़ों की परंपरा के अनुसार ‘रक्मी’ साधु को वरिष्ठ बंदगीदार से लेकर महा अतीत तक की सेवा करनी होती है। ‘बंदगीदार’ भण्डार और भण्डार का प्रबंधन करता है, उसका काम छड़ी उठाना, शास्त्र और शस्त्र सीखना होता है। वह मंदिर, भोजन आदि का भी प्रबंधन करता है।
‘मुदथिया’ का काम भगवत सेवा, भोजन व्यवस्था, आय-व्यय का विवरण, कार्यकर्ताओं से काम करवाना, शस्त्र और शास्त्रों की शिक्षा लेना और शिविर का निरीक्षण करना होता है। मुदथिया की यह उपाधि मिलने पर साधु की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं।
‘सदर नागा’ की उपाधि से सम्मानित नागा साधुओं को बहुत प्रतिष्ठित माना जाता है। उन्हें अखाड़ों के पंचों से कंठी, कटोरा और उपहार मिलते हैं और साथ ही सहायता के लिए कोतवाल भी मिलता है।
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