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खींच ली जाती है नस…बनना पड़ता है नपुंसक, करना पड़ता है खुद का पिंडदान, कमांडो से भी खतरनाक होती है नागा साधुओं की ट्रेनिंग

BY: Yogita Tyagi • LAST UPDATED : January 15, 2025, 5:04 pm IST
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खींच ली जाती है नस…बनना पड़ता है नपुंसक, करना पड़ता है खुद का पिंडदान, कमांडो से भी खतरनाक होती है नागा साधुओं की ट्रेनिंग

Naga Sadhu Mahakumbh 2025

India News (इंडिया न्यूज), Naga Sadhu Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 में अखाड़ों में दिखने वाले नागा साधु किसी सामान्य साधु से कहीं अधिक होते हैं। नागा साधु ऐसे ही नहीं बना जाता बल्कि नागा साधु बनने के लिए एक कठोर प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जो शारीरिक, मानसिक और आत्मिक दृष्टिकोण से बहुत ही चुनौतीपूर्ण होती है। नागा साधु बनने के तीन मुख्य चरण होते हैं, जिनमें व्यक्ति को कठिन साधना, शारीरिक परीक्षण और भौतिक सुखों से दूर रहने की परीक्षा देनी होती है।

नागा साधु बनने के लिए करनी पड़ती है कठोर तपस्या

नागा साधु बनने की शुरुआत एक कठोर तप से होती है, जिसमें उम्मीदवार की पृष्ठभूमि, परिवार और अपराध रिकॉर्ड की जांच की जाती है। यदि वह इन टेस्ट में सफल होता है, तो उसे एक गुरु की सेवा में रखा जाता है और साधना की शुरुआत होती है। इस चरण में व्यक्ति को अपने शरीर की इच्छाओं पर नियंत्रण रखना, घर-परिवार को छोड़ना और गहरी साधना में लगना होता है। इस परीक्षण में असफल होने पर उसे वापस भेज दिया जाता है।

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पहला चरण

पहले चरण में उम्मीदवार को महापुरुष की उपाधि दी जाती है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर धनंजय चोपड़ा अपनी किताब ‘भारत में कुंभ’ में बताते हैं कि महापुरुष बनने के बाद उम्मीदवार को संन्यास की प्रतिज्ञा दिलाई जाती है और उसे पंच संस्कार की प्रक्रिया से गुजरना होता है। इस प्रक्रिया में शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश को गुरु मानकर उसे भगवा वस्त्र, रुद्राक्ष और अन्य धार्मिक आभूषण दिए जाते हैं। इसके बाद उसका सिर मुंडवाकर उसे महापुरुष का दर्जा दिया जाता है।

दूसरा चरण

दूसरे चरण में, जिसे अवधूत कहा जाता है, उसमें महापुरुष को पुराने कपड़े त्यागने और नदी में स्नान करने का आदेश दिया जाता है। इस समय उसे अपने पूर्वजों का 17 पिंडदान करना होता है, जिसमें 16 पिंडदान अपने पूर्वजों के और 17वां स्वयं के लिए होता है। इस प्रक्रिया के बाद वह सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर अवधूत के रूप में नया जीवन शुरू करता है।

तीसरा चरण

तीसरे और अंतिम चरण में, जिसे दिगंबर कहा जाता है में महापुरुष को 24 घंटे उपवास रखने के बाद उसकी जननांग की नस खींची जाती है, जिससे वह नपुंसक हो जाता है। इस प्रक्रिया के बाद उसे शाही स्नान के दौरान नागा साधु के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। इस कठोर साधना और शारीरिक परिवर्तन से ही वह नागा साधु बनता है।

महाकुंभ के दौरान विभिन्न स्थानों पर इन नागा साधुओं को उनके नामों से जाना जाता है, जैसे प्रयाग में नागा, उज्जैन में खूनी नागा, हरिद्वार में बर्फानी नागा और नासिक में खिचड़िया नागा। यह प्रक्रिया जितनी कठिन है, उतनी ही यह साधुओं के समर्पण और तपस्विता को दर्शाती है।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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