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India News (इंडिया न्यूज),MahaKumbh:संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ का आज तीसरा दिन है. एक दिन पहले मकर संक्रांति पर 3.50 करोड़ लोग शाही स्नान कर चुके हैं। अभी भी सुबह से ही तट पर श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा हुआ है। इस दौरान लोग नागा साधुओं से आशीर्वाद लेने भी पहुंच रहे हैं। महानिर्वाणी अखाड़े के 68 महामंडलेश्वर और हजारों साधुओं ने अमृत स्नान में हिस्सा लिया। वहीं, निरंजनी अखाड़े के 35 महामंडलेश्वर और हजारों नागा साधुओं ने अमृत स्नान में हिस्सा लिया। इसके अलावा जूना अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा और पंचाग्नि अखाड़े के हजारों साधुओं ने भी अमृत स्नान किया।
शाही स्नान के दौरान हजारों नागिन साध्वियां (महिला नागा साधु) भी मौजूद रहीं। आज हम आपको बताएंगे कि कौन हैं ये नागिन साध्वियां। प्रयागराज महाकुंभ में हर बार की तरह इस बार भी नागा साधु लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। पुरुषों की तरह महिला नागा साधु भी महाकुंभ में अपनी आहुति दे रही हैं। महिला नागा साधु गृहस्थ जीवन से दूर रहती हैं। इनका दिन पूजा-पाठ से शुरू और खत्म होता है। महिला नागा साधुओं का जीवन कई कठिनाइयों से भरा होता है. महिला नागा साधु पुरुष नागा साधुओं से अलग होती हैं। वे दिगंबर नहीं रहती हैं।
वे सभी भगवा रंग के कपड़े पहनती हैं। लेकिन वे कपड़े सिले नहीं होते हैं। इसलिए उन्हें पीरियड्स के दौरान कोई परेशानी नहीं होती है। नागा साध्वियां कुंभ मेले में भाग लेती हैं। अगर उन्हें पीरियड्स हो रहे होते हैं तो वे गंगा में डुबकी नहीं लगाती हैं। वे सिर्फ अपने शरीर पर गंगा जल छिड़कती हैं। महिला नागा साधु जीवन भर गांठी पहनती हैं। महिला नागा साधु बनने के बाद सभी साधु और साध्वियां उन्हें माता कहकर पुकारते हैं। माई बाड़ा में महिला नागा साधु होती हैं, जिसे अब दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा कहा जाता है। पुरुष नागा साधु नग्न रह सकते हैं, लेकिन महिला नागा साधुओं को नग्न रहने की अनुमति नहीं है।पुरुष नागा साधुओं में दो तरह के नागा साधु होते हैं, वस्त्रधारी और दिगंबर (नग्न)।
सभी महिला नागा साधु वस्त्रधारी होती हैं। महिला नागा साधुओं को माथे पर तिलक लगाना अनिवार्य होता है। महिला नागा साधु केसरिया रंग का सिर्फ एक वस्त्र पहनती हैं, जो सिला हुआ नहीं होता। महिला नागा साधुओं के इस वस्त्र को गांठी कहते हैं। महिला नागा साधु अपना पूरा जीवन गांठी पहनकर ही गुजार देती हैं। वे दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन करती हैं। कुंभ में भी महिला नागा साधुओं को देखा जाता है। समापन के बाद वे पहाड़ों पर भी जाती हैं।
उनकी खास बात यह है कि वे पुरुष नागा साधुओं के महाकुंभ में स्नान करने के बाद नदी में स्नान करने जाती हैं। अखाड़े की महिला नागा साध्वियों को माई, अवधूतनी या नागिन कहा जाता है। नागा साधु बनने से पहले उन्हें जीवित रहते हुए पिंडदान भी करना पड़ता है और सिर भी मुंडवाना पड़ता है। नागिन साधु बनने के लिए उन्हें 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन भी करना पड़ता है।
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