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“हम भारतीय खेलों के साथ बड़े हुए हैं, और खो-खो उनमें से एक है,” कहते हैं डॉ. हीरेन पाठक, जो आज केन्या का प्रतिनिधित्व करते हुए खो-खो वर्ल्ड कप में भाग ले रहे हैं। उनका कहना है कि खो-खो उनके लिए सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि उनकी संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा है। डॉ. हीरेन के लिए यह यात्रा एक तरह से उनके भारतीय मूल और केन्या में स्थापित अपने परिवार के बीच के संबंधों का प्रतीक है।
केन्या में खो-खो का आगमन और उसके विकास की यात्रा
जब डॉ. हीरेन के परिवार ने केन्या में कदम रखा, तो वहां पर भारतीय खेलों के लिए एक उत्साही समुदाय पहले से ही मौजूद था। “केन्या में आने के बाद, मैंने पाया कि यहां भारतीय खेलों को लेकर एक गहरी रुचि है। हिंदू स्वयंसेवक संघ (HSS) केन्या में विभिन्न भारतीय खेलों को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा था, और मुझे इसका हिस्सा बनने का मौका मिला,” डॉ. हीरेन ने कहा।
2020 में खो-खो का औपचारिक रूप से केन्या में परिचय हुआ, और डॉ. हीरेन का मानना है कि इसके बाद से खेल का स्तर और लोकप्रियता दोनों में वृद्धि हुई है। “केन्या में खो-खो के लिए एक संरचित फ्रेमवर्क तैयार किया गया, और इसकी सही पहचान बनने में काफी समय लगा। अब, छोटे क्लब और काउंटियां खिलाड़ियों का चयन कर रही हैं और एक मजबूत ढांचा खड़ा कर रही हैं,” वे बताते हैं।
केन्या में खो-खो के लिए बनते हुए नए अवसर
केन्या में खो-खो के समर्थन और विकास को लेकर डॉ. हीरेन उत्साहित हैं। उनका कहना है कि यह खेल अब केवल एक पारंपरिक खेल के रूप में नहीं रहा, बल्कि यह युवाओं के लिए एक करियर विकल्प भी बन गया है। “हमने खो-खो के खेल को काउंटियों में लेकर जाना शुरू किया, और अब युवा खिलाड़ियों की पहचान हो रही है। यह खेल न केवल भारत में बल्कि अफ्रीका के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय हो रहा है,” डॉ. हीरेन कहते हैं।
खो-खो वर्ल्ड कप: एक ऐतिहासिक अवसर
डॉ. हीरेन के लिए खो-खो वर्ल्ड कप में भाग लेना एक ऐतिहासिक अवसर है। “यह वर्ल्ड कप खो-खो के लिए एक नया अध्याय है, और इसके जरिए हम इस खेल को एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में मदद कर रहे हैं। इस पहले वर्ल्ड कप का हिस्सा बनना हमारे लिए गर्व की बात है,” डॉ. हीरेन ने कहा। वे मानते हैं कि इस आयोजन से खो-खो को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान मिलेगी और यह खेल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक लोकप्रिय होगा।
वर्ल्ड कप का प्रभाव और भविष्य की दिशा
खो-खो वर्ल्ड कप ने दुनिया भर के खिलाड़ियों और प्रशंसकों को एक साथ लाकर इस खेल की महत्ता को और अधिक बढ़ा दिया है। “यह वर्ल्ड कप एक ब्लॉकबस्टर इवेंट साबित हुआ है, और यह निश्चित रूप से खो-खो के खेल के लिए मील का पत्थर साबित होगा। दुनिया भर से एथलीट्स इस खेल में भाग ले रहे हैं, और यह खेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक पहचान दिलाने में मदद करेगा,” डॉ. हीरेन कहते हैं। इस वर्ल्ड कप से जुड़े खिलाड़ियों की बढ़ती संख्या और इस खेल को लेकर नई रुचि दर्शाती है कि खो-खो का भविष्य और भी उज्जवल है।
केन्या में खो-खो का भविष्य और अगले कदम
डॉ. हीरेन का मानना है कि अगले कुछ सालों में केन्या में खो-खो को और अधिक समर्थन मिलेगा। “अब खो-खो के लिए और भी क्लब और काउंटियां अपना समर्थन दे रही हैं, जिससे इस खेल का स्तर ऊंचा होगा। हमें उम्मीद है कि जल्द ही केन्या में बड़े पैमाने पर खो-खो टूर्नामेंट होंगे,” डॉ. हीरेन ने कहा। उनका कहना है कि खो-खो के खेल के प्रति जो उत्साह अब देखा जा रहा है, वह आने वाले वर्षों में और बढ़ेगा।
भारत और केन्या के बीच खो-खो के माध्यम से एक मजबूत संबंध
केन्या में खो-खो के बढ़ते प्रभाव के साथ, यह खेल भारत और केन्या के बीच सांस्कृतिक और खेल संबंधों को और मजबूती दे रहा है। डॉ. हीरेन का मानना है कि यह खेल न केवल दो देशों को जोड़ने का काम करेगा, बल्कि एशिया और अफ्रीका के बीच भी खेल के दृष्टिकोण से एक मजबूत साझेदारी बनेगी।
खो-खो वर्ल्ड कप: खेल से कहीं अधिक
डॉ. हीरेन के लिए, खो-खो वर्ल्ड कप सिर्फ एक खेल प्रतियोगिता नहीं है। यह उनके जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है, और इससे उन्हें एक नई पहचान और सम्मान मिला है। “यह वर्ल्ड कप हमारे लिए सिर्फ एक प्रतियोगिता नहीं है, बल्कि यह हमारे लिए भारतीय खेलों और हमारे समुदाय की शक्ति और एकता का प्रतीक है,” डॉ. हीरेन ने कहा।
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