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India News (इंडिया न्यूज), New Update On Harsha Richhariya: भारत में महाकुंभ का महत्व सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष होता है। यह धार्मिक समागम न केवल आध्यात्मिकता का प्रतीक है, बल्कि इसमें हिस्सा लेने वाले संतों और साधुओं के जीवन और विचारधारा की भी चर्चा होती है। इस बार के महाकुंभ में सबसे अधिक चर्चा में रहीं साध्वी हर्षा। उनकी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए, जिसके चलते वे विवादों के केंद्र में आ गईं।
महाकुंभ में साध्वी हर्षा की तस्वीरें वायरल होते ही लोग उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानने के लिए उनके इंस्टाग्राम अकाउंट तक पहुंच गए। कुछ लोगों ने उनके तप और धार्मिक झुकाव की प्रशंसा की, तो कुछ ने उनकी भक्ति और साध्वी बनने के पीछे पब्लिसिटी स्टंट होने का आरोप लगाया। जब मामले ने तूल पकड़ा, तो साध्वी हर्षा ने स्वयं इन आरोपों का खंडन किया।
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उनके इंस्टाग्राम अकाउंट से पता चलता है कि वे लंबे समय से सनातन धर्म और आध्यात्म में रुचि रखती थीं। महाकुंभ में उनका उद्देश्य केवल ईश्वर की भक्ति करना और आत्मिक शांति प्राप्त करना था। हालांकि, सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों और विवादों के कारण उन्होंने महाकुंभ से वापस लौटने का निर्णय लिया।
महाकुंभ में साध्वी हर्षा की जटाएं चर्चा का मुख्य कारण बनीं। उनकी आकर्षक जटाओं ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। लेकिन जब उनके पुराने सोशल मीडिया पोस्ट देखे गए, तो पता चला कि ये जटाएं असली नहीं हैं। यह बात साध्वी हर्षा ने भी स्वीकार की।
महाकुंभ आने से पहले उन्होंने एक पार्लर में नकली जटाएं लगवाई थीं। पार्लर में जटाएं लगवाते हुए उनका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इस खुलासे के बाद, कुछ लोगों ने उनकी निंदा की, जबकि कई उनके समर्थन में खड़े हुए।
साध्वी हर्षा की कहानी ने लोगों को दो गुटों में बांट दिया। एक ओर आलोचक थे, जो इसे सन्यास और भक्ति का मजाक बता रहे थे। दूसरी ओर, समर्थकों का कहना था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सांसारिक मोह छोड़ना आवश्यक नहीं है। कई लोगों ने यह भी कहा कि किसी की व्यक्तिगत जीवनशैली और धार्मिक विश्वास पर सवाल उठाना अनुचित है।
एक समर्थक ने लिखा, “अगर कोई ईश्वर की भक्ति अपनी शर्तों पर करना चाहता है, तो इसमें गलत क्या है?” वहीं, कुछ ने यह सवाल उठाया कि आज के समय में लोग दूसरों की निजी जिंदगी में इतना झांकने क्यों लगे हैं।
जिस महाकुंभ में नहाने से मिट जाते है सभी पाप, उस ही कुंभ में स्नान करना कब बन सकता है जानलेवा?
हाल ही में सोशल मीडिया पर भी हर्षा की माँ का एक वीडियो काफी तेजी से वायरल होता नजर आ रहा है जिसमे वह एक इंटरव्यू जे दौरान अपनी बेटी पर आ रहे कमेंट्स को लेकर अपने भाव व्यक्त करती हुई नज़र आ रही है। वीडियो में जब रिपोर्टर उनसे पूछते है कि कैसा लग रहा है उन्हें बेटी के सूंदर या यूँ कही सबसे सूंदर साध्वी बुलाये जाने पर तो इसपर उनकी माँ कहती है सूंदर सुनकर अच्छा लग रहा है लेकिन साध्वी नहीं। इसपर जब रिपोर्टर ने क्रॉस क्वेश्चन किया तो वो बोलतीं है कि नहीं मेरी बेटी साध्वी नहीं है वह मेरी एकलौती बेटी है उसे साध्वी बनते देखने का साहस मुझसे नहीं हो पाएगा। वह सुंदर है सब का प्यार उसे मिल रहा है अच्छी बात है वह भगवान गुरुओं के बीच में है इससे में बेहद खुश हु लेकिन मेरी बेटी साध्वी नहीं है।
महाकुंभ एक ऐसा मंच है, जहां लोग धर्म, अध्यात्म और आत्मा की शुद्धि के लिए आते हैं। साध्वी हर्षा का भी यही उद्देश्य था। लेकिन उनकी जटाओं और सोशल मीडिया की चर्चाओं ने उनके अनुभव को प्रभावित किया। यह घटना यह दर्शाती है कि समाज आज भी बाहरी दिखावे और वास्तविकता के बीच संघर्ष करता है।
साध्वी हर्षा की कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम दूसरों के धार्मिक विश्वास और जीवनशैली का सम्मान कर रहे हैं। महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और ईश्वर की भक्ति है, न कि किसी की आलोचना या निंदा। इस प्रकरण से हमें सीख लेनी चाहिए कि धर्म और भक्ति व्यक्तिगत अनुभव हैं, जिन्हें बाहरी दिखावे से नहीं, बल्कि आंतरिक भावनाओं से मापा जाना चाहिए।
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