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सनातन की शक्ति का हुआ विस्तार, 1500 से अधिक नागा संन्यासियों की दीक्षा का साक्षी बना संगम तट

BY: Ashish kumar Rai • LAST UPDATED : January 18, 2025, 11:02 pm IST
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सनातन की शक्ति का हुआ विस्तार, 1500 से अधिक नागा संन्यासियों की दीक्षा का साक्षी बना संगम तट

India News(इंडिया न्यूज)Mahakumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ मेले की शोभा हैं,यहां सेक्टर 20 में मौजूद सनातन धर्म के ध्वजवाहक 13 अखाड़े। इन अखाड़ों के नागा संन्यासियों की सेना में नई भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो गई है। संन्यासी अखाड़ों में सबसे ज्यादा नागा संन्यासियों वाला अखाड़ा श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा है, जिसमें नागाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, इसके विस्तार की प्रक्रिया गंगा किनारे शनिवार को शुरू हो गई है।

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दीक्षा की हुई शुरुआत

श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री श्री महंत चैतन्य पुरी ने बताया कि शनिवार को नागा दीक्षा शुरू हो गई है। पहले चरण में 1500 से अधिक अवधूतों को नागा संन्यासी के रूप में दीक्षा दी जा रही है। नागा संन्यासियों की संख्या के मामले में जूना अखाड़ा सबसे आगे है, जिसमें इस समय 5.3 लाख से अधिक नागा संन्यासी हैं।

नागा संन्यासियों की दीक्षा कनेक्शन

नागा संन्यासी कुंभ में ही बनाए जाते हैं। वहीं उनकी दीक्षा होती है। सबसे पहले साधक को ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है। उसे तीन साल तक गुरुओं की सेवा करनी होती है और अखाड़ों के धर्म और नियमों को समझना होता है। इस दौरान ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। अगर अखाड़ा और उस व्यक्ति के गुरु तय करते हैं कि वह दीक्षा के योग्य है, तो उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।

यह प्रक्रिया महाकुंभ में होती है, जहां उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष और फिर अवधूत बनाया जाता है। महाकुंभ में गंगा तट पर उनका सिर मुंडवाया जाता है और उन्हें महाकुंभ की नदी में 108 बार डुबकी लगवाई जाती है। अंतिम प्रक्रिया में उनका स्वयं का पिंडदान और दंडी संस्कार आदि शामिल होता है। अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर उन्हें अखाड़े की धार्मिक ध्वजा के नीचे नागा दीक्षा देते हैं।

दीक्षा लेने वालों को ऐसे मिलती है पहचान

प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को राज राजेश्वरी नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी और नासिक में दीक्षा लेने वालों को खिचड़िया नागा कहा जाता है। इन्हें अलग-अलग नामों से सिर्फ इसलिए जाना जाता है ताकि यह पहचाना जा सके कि किसने कहां दीक्षा ली है।

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mahakumbh 2025

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