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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
Covid-19 वैक्सीन की अतिरिक्त बूस्टर डोज आम लोगों के लिए जरूरी नहीं है। ये कहना है अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के ग्रुप का। मेडिकल पत्रिका लांसेट की नई रिपोर्ट में माना गया है कि अधिक संक्रामक डेल्टा वेरिएंट के खतरे के बावजूद आम आबादी के लिए बूस्टर डोज महामारी के इस चरण में उपयुक्त नहीं है। वैज्ञानिकों ने लिखा है कि बूस्टर खुराक की जरूरत के बारे में कोई फैसला या बूस्टर का समय महामारी विज्ञान का डेटा या पर्याप्त रूप से कंट्रोल्ड क्लीनिकल या दोनों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण के आधार पर होना चाहिए।
बूस्टर खुराक को तर्कसंगत ठहराने के लिए और सबूत की जरूरत है। वैक्सीन कोविड-19 के गंभीर लक्षणों के खिलाफ बेहद प्रभावी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एना मारिया कहती हैं कि वर्तमान में उपलब्ध रिसर्च गंभीर बीमारी के खिलाफ सुरक्षा की काफी कमी के विश्वसनीय सबूत उपलब्ध नहीं कराते हैं, जो टीकाकरण का प्रमुख लक्ष्य है। उन्होंने बताया कि वैक्सीन के डोज दुनिया भर में प्राथमिकता के आधार पर उन लोगों को दिया जाना चाहिए जिनको इसका अभी भी इंतजार है। अगर वैक्सीन को उन जगहों पर भेजा जाता है जहां सबसे अच्छा करती हैं, तो ये वेरिएंट के आगे के विकास को रोककर जल्दी महामारी का अंत करेंगी। वैज्ञानिकों का नजरिया अमेरिकी सरकार की योजनाओं के विपरीत है।
अमेरिका में अगले हफ्ते से पूरी तरह टीकाकरण करा चुके लोगों में वैक्सीन के दूसरे चरण की पेशकश शुरू होने जा रही है, हालांकि स्वास्थ्य नियामकों की तरफ से मंजूरी पर अनिश्चितता है। शोधकर्ताओं ने स्वीकार किया कि कुछ लोगों जैसे कमजोर इम्यूनिटी वालों को वैक्सीन के अतिरिक्त डोज से फायदा मिल सकता है। फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को सलाह देने वाले विशेषज्ञों का पैनल 17 सितंबर को वैक्सीन मंसूबे पर बैठक करने जा रहा है। बैठक में विचार किया जाएगा कि व्यापक बूस्टर की पेशकश के अगले चरण के तौर पर फाइजर-बायोएनटेक के अतिरिक्त डोज को लगाया जाए या नहीं। लांसैट के लेख में विश्व स्वास्थ्य संगठन की वरिष्ठ वैज्ञानिक सौम्या स्वामिनाथन, एना मारिया और माइक रेयान शामिल हैं। गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की तीसरी डोज पर रोक के बावजूद कुछ देशों ने डेल्टा वेरिएंट से डरकर अतिरिक्त डोज देना शुरू कर दिया है। वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसी का मानना है कि गरीब देशों में वैक्सीन की आपूर्ति चुनौती है जहां लाखों को लोगों को अपना पहला डोज ही लगवाना है। लेखकों ने कहा कि वर्तमान में वैक्सीन की आपूर्ति से ज्यादा जिंदगियों को बचाया जा सकता है अगर असुरक्षित आबादी में पहले इस्तेमाल किया गया।
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