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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
ADS Of Sensodyne And Naaptol Banned In India: आप टीवी, न्यूज पेपर आदि में सेंसिटिव दांतों (दांतों में ठंडा और गर्म पानी लगना, कुछ भी खाओ तो दांतों में झंझनाहट होना) के लिए अच्छा और मार्केट में ज्यादा बिकने वाला टूथपेस्ट सेंसोडाइन का विज्ञापन देखते हैं। विज्ञापन के माध्यम से बताया जाता है कि टूथपेस्ट सेंसिटिव दांतों में करने के कुछ सेकेंड में अपना काम शुरू कर देता है। इसके साथ ही विज्ञापन करने वाली आनलाइन शॉपिंग कंपनी नापतोल को भी गुमराह करने वाला बताया जा रहा है।
इस मामले में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) इन दोनों कंपनी के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए (Naaptol Ads Ban) (Sensodyne Ads Ban) दोनों के विज्ञापनों पर रोक लगा दी है। हाल ही में एक बयान में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कहा है कि सीसीपीए ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन कंज्यूमर हेल्थकेयर के खिलाफ 27 जनवरी 2022 और नापतोल के खिलाफ दो फरवरी 2022 को आदेश जारी किया। तो आइए जानते हैं सेंसोडाइन और नापतोल के विज्ञापन पर क्यों लगी पाबंदी। (ADS Of Sensodyne And Naaptol Banned In India)
सेंसोडाइन की भारत में एंट्री करीब एक दशक पहले 2010 में हुई थी। उसने दांतों की सेंसिटिविटी या झनझनाहट की समस्या से जूझ रहे भारतीयों को टारगेट किया। भारत में दांतों की समस्या बहुत आम है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, देश की करीब 60 फीसदी आबादी दांतों के खराब होने की समस्या से पीड़ित है तो वहीं 85 फीसदी आबादी मसूढ़ों की समस्या से जूझ रही है। हर तीन में से एक भारतीय दांतों की सेंसिटिविटी से पीड़ित है। ऐसे में सेंसोडाइन ने भारतीयों की सेंसिटिविटी ठीक करने में मददगार बनने का दावा किया।
महज एक दशक के अंदर ही वह सेंसोडाइन देश के डेंटल टूथपेस्ट मार्केट के सबसे बड़े ब्रांड में से एक बन गया। भारत के 10 हजार करोड़ रुपए के ओरल केयर मार्केट में सेंसोडाइन सालाना 30-40 पर्सेंट की दर से ग्रोथ कर रहा है। अमेरिकी ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट मुताबिक, औसतन एक व्यक्ति प्रति दिन 300 से ज्यादा विज्ञापन देखता है।
नापतोल को डाबर के मच्छर भगाने वाले ब्रांड ओडोमास को हानिकारक बताने का दोषी पाया गया। हाल ही में इस पर दिल्ली की एक जिला अदालत ने इस विज्ञापन को रोकने का आदेश जारी किया था।
ADS Of Sensodyne And Naaptol Banned In India
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