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हरीश गुप्ता (वरिष्ठ पत्रकार)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार एक पत्रकार को बताया था कि स्कूल में उनका प्रिय विषय ड्रामा था। शायद इससे उनकी आश्चर्यचकित करने की आदत को समझा जा सकता है। तालाबंदी के दौरान मोदी ने लंबे बाल और असामान्य रूप से लंबी दाढ़ी बढ़ाई थी, शायद उन्होंने कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए नाई से काम नहीं लिया। लेकिन कई लोगों ने कहा कि मोदी फकीर का रूप धारण करके एक तपस्वी की छवि पेश करना चाहते हैं, जबकि अन्य लोगों का कहना था कि वे खुद को संत की छवि वाले राष्ट्र-प्रमुख के रूप में दिखाना चाहते हैं, जिसने राम मंदिर के लिए मार्ग प्रशस्त किया-एक सच्चा राम भक्त। दूसरों ने इसे महामारी के खत्म न होने तक अपनी दाढ़ी न काटने के संकल्प से जोड़ा।
कुछ लोगों ने महसूस किया कि पीएम एक व्यापक छवि परिवर्तन कर रहे हैं, जबकि अन्य ने कहा कि वे कुछ बड़ा करने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं- गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर की तरह खुद को महामानव में बदलने के लिए। कुछ लोगों ने तो मोदी के लुक की तुलना शिवाजी महाराज से भी कर दी। लेकिन प्रधानमंत्री ने उन सभी को गलत साबित कर दिया है क्योंकि उन्होंने अपने लंबे बाल और लंबी दाढ़ी को धीरे-धीरे ट्रिम करना शुरू कर दिया है। लाल किले की प्राचीर से उनके 15 अगस्त के भाषण के बाद, ट्रिमिंग तेज हो गई है। पीएमओ द्वारा कोविड महामारी की समीक्षा करते हुए जारी किए गए उनके नवीनतम वीडियो को करीब से देखने पर उनकी दाढ़ी और बाल ट्रिम किए हुए साफ दिखाई दे रहे हैं। कोविड का खतरा कम होने और प्रतिबंधों में ढील के साथ, ऐसा लगता है कि पीएम का नाई वापस आ गया है। सूत्रों का कहना है कि महामारी के दौरान पीएम ने अपने रसोइए, एक मालिश करने वाले और एक पीएमओ अधिकारी (प्रधान सचिव नहीं) से ही निकटता रखी। मोदी शायद स्वतंत्र भारत के एकमात्र प्रधानमंत्री हैं जिनके पास न तो कोई मंडली है और न ही उनके आसपास कोई नजदीकी लोगों का घेरा है। यहां तक कि जो लोग आसपास हैं, वे भी यह दावा नहीं कर सकते कि वे कोई काम करवा सकते हैं। चाहे वह मंत्री हो, नौकरशाह हो, दोस्त हो, उद्योगपति हो या परिवार का कोई सदस्य- कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि वह काम करवा देगा।
उनके पास पहुंच रखने वालों में भी छूट लेने की हिम्मत नहीं है। पहले कार्यकाल में जिन लोगों की उन तक पहुंच थी, वे अब उनके आसपास नहीं हैं। पहले यह कहना आम था कि मैंने प्रधानमंत्री से बात की है।।काम हो जाएगा। मोदी सरकार में यह शब्द सुनने में नहीं आता। ऐसा नहीं है कि देश ने रोज 18 घंटे काम करने वाले ईमानदार और सक्षम प्रधानमंत्रियों को नहीं देखा है। लालबहादुर शास्त्री या मोरारजी देसाई जैसे प्रधानमंत्री थे जो कोई तामझाम नहीं रखते थे। लेकिन उनका मोदी की तरह सत्ता में लंबा कार्यकाल नहीं रहा। सात साल से अधिक समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले मोदी को समझना अभी भी बहुत जटिल है।
उनका कोई परिवार नहीं है, मीडिया के साथ घुलना-मिलना पसंद नहीं है और सात साल में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित नहीं किया। मोदी का सरकार, पार्टी और यहां तक कि मातृ संगठन आरएसएस पर भी पूरा प्रभुत्व है। अगस्त 2019 में अरुण जेटली की मृत्यु के बाद, वे न तो किसी से सलाह लेने के लिए बाध्य हुए और न ही सलाह लेकर किसी को उपकृत किया।
कई लोग सोचते हैं कि यह सरकार दो लोगों-प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह द्वारा चलाई जा रही है। लेकिन वे गलत हैं। मोदी अपनी मर्जी के मालिक हैं। अगर गृह मंत्री के रूप में राजनाथ सिंह कई महत्वपूर्ण नियुक्तियों के बारे में अनजान थे, तो गृह मंत्रलय को भी सभी प्रमुख नियुक्तियों के बारे में नहीं पता है। यह पीएम के अंतर्गत कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) का विशेषाधिकार है।
मोदी सुधारात्मक कदम उठाने में तेज हैं और अपने फैसलों पर अड़े नहीं रहते हैं। उदाहरण के लिए उन्होंने जम्मू-कश्मीर में तीन साल में चार उपराज्यपाल बदले। उन्होंने अगस्त 2018 में अनुभवी नौकरशाह एन.एन. वोहरा की जगह सत्यपाल मलिक को उपराज्यपाल बनाया। मलिक की नियुक्ति एक बड़े आश्चर्य का कारण बनी क्योंकि वे पार्टी के लिए एक बाहरी व्यक्ति थे और उनका आरएसएस के दर्शन से कोई लेना-देना नहीं था। हालांकि, मलिक को 2019 में गोवा स्थानांतरित कर दिया गया और मोदी अपने सबसे भरोसेमंद नौकरशाह जी.सी. मुमरू को ले आए।
जब मोदी ने देखा कि वे उनकी योजनाओं के अनुसार काम नहीं कर रहे हैं, तो मुमरू को भी दो साल के भीतर दरवाजा दिखा दिया गया। उन्होंने एक अनुभवी राजनेता मनोज सिन्हा को भेजने का विकल्प चुना, जो उनकी शीघ्र बदलाव की इच्छा को दशार्ता है। शीर्ष स्तर पर ऐसा लचीलापन कम ही देखने को मिलता है। मोदी की संदेश देने की अपनी अनूठी शैली है। यूपी के सभी सांसदों की समीक्षा बैठक के दौरान मोदी ने राज्य भाजपा प्रमुख स्वतंत्र देव सिंह से मुस्कुराते हुए पूछा, आप वाराणसी के लोकसभा एमपी का भी हिसाब-किताब रखते हो? उसे भी कुछ बताओ! देव शरमा गए लेकिन सभी उपस्थित सांसदों को संदेश स्पष्ट था कि वे राज्य पार्टी प्रमुख के प्रति जवाबदेह हैं।
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