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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
How will the Earth be without the Sun : क्या सूर्य के बिना धरती का अस्तित्व बनाए रखना संभव है? इस सवाल का जवाब सदियों से ढूंढा जा रहा है। दूसरी तरह से इस बात को इस तरह भी पूछा जा सकता है कि हमारे सौरमंडल का अंत कैसे होगा और ऐसी स्थिति में क्या हमारी धरती बची रहेगी?
यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने भौतिकी के हमारे ज्ञान को परखा है। सूर्य एक दिन अंतत: एक व्हाइट ड्वार्फ यानी जले हुए तारे के अवशेष में तब्दील हो जाएगा। उसका धीमा होता प्रकाश हमारे सौर मंडल के ग्रहों पर अंधकार फैला देगा। वैसे यह परिवर्तन इतना सरल नहीं होगा, बल्कि यह एक उग्र प्रक्रिया होगी, जिसमें सूर्य के तमाम ग्रह नष्ट हो जाएंगे।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कोई ग्रह सूर्य की मृत्यु के बाद बचेगा? उत्तर खोजने का एक तरीका अन्य समान ग्रहों के साथ जो हुआ उसे देखना है। यूनिवर्सिटी आफ वारविक के शोधकर्ता दिमित्री वेरास और अर्नेस्ट रदरफोर्ट बताते हैं कि व्हाइट ड्वार्फ से निकलने वाली कमजोर विकिरण एक्सोप्लानेट (हमारे सूर्य के अलावा अन्य सितारों के आसपास के ग्रह) को खोजना मुश्किल बनाती है, जो इस तारकीय परिवर्तन से बच गए हैं। वे सचमुच अंधकार में होते हैं जिन्हें देख पाना आसान नहीं होता है।
असल में, वर्तमान में जिन 4,500 से अधिक एक्सोप्लानेट की जानकारी है, उनमें से कुछ ही व्हाइट ड्वार्फ में तब्दील हुए तारों के आसपास पाए गए हैं। इन ग्रहों के स्थान से पता चलता है कि वे तारे की मृत्यु के बाद वहां पहुंचे थे।
जानकारियों का यह अभाव हमारे ग्रह की किस्मत की अधूरी तस्वीर सामने रखते हैं। खुशकिस्मती से, अब हम इन अंतरों को भर पा रहे हैं। नेचर में प्रकाशित हमारे नए शोधपत्र में, हमने पहले ज्ञात एक्सोप्लानेट की खोज की जानकारी दी है जो अपने तारे की मृत्यु के बाद भी आसपास के अन्य ग्रहों द्वारा अपनी कक्षा में बदलाव किए बिना बचा रहता है।
यह एक नया बाहरी ग्रह है जिसकी खोज हमने हवाई के केक आब्जर्वेटरी के साथ की है। यह द्रव्यमान और कक्षीय अलगाव में बृहस्पति जैसा है। यह मरते हुए तारों के आसापास बचने वाले ग्रहों के बारे में महत्त्वपूर्ण संकेत देता है।
एक तारे के व्हाइट ड्वार्फ में परिवर्तित होने में उग्र चरण शामिल होता है, जिसमें यह एक फूला हुआ ह्लरेड जाइंटह्व बन जाता है, जिसे ह्लजाइंट ब्रांचह्व तारा के रूप में भी जाना जाता है। यह तारा पहले से सैकड़ों गुना बड़ा हो जाता है।
हमारा मानना ?? है कि केवल यह बाहरी ग्रह बच गया है। यदि यह शुरू में अपने मूल तारे के करीब होता, तो यह तारे के विस्तार में समा गया होता।
कुछ इसी तरह जब सूर्य अंतत: एक ह्यरेड जाइंटह्ण बन जाएगा, तो इसकी त्रिज्या (रेडियस) वास्तव में पृथ्वी की वर्तमान कक्षा में बाहर की ओर पहुंच जाएगी। इसका मतलब है कि सूर्य (शायद) बुध और शुक्र और संभवत: पृथ्वी भी इसमें समा जाएगी।
बृहस्पति और उसके चंद्रमाओं के जीवित बचे रहने की उम्मीद है, हालांकि हम पहले निश्चित रूप से यह नहीं जानते। लेकिन इस नए एक्सोप्लेनेट की खोज के साथ, हम अब और अधिक निश्चित हो सकते हैं कि बृहस्पति वास्तव में इससे निकल जाएगा। इसके अलावा, इस एक्सोप्लानेट की स्थिति में गलती की गुंजाइश का मतलब यह हो सकता है कि यह व्हाइट ड्वार्फ से करीब आधी दूरी पर है जितना बृहस्पति वर्तमान में सूर्य के करीब है। यदि ऐसा है, तो यह मानने के लिए अतिरिक्त प्रमाण हैं कि बृहस्पति और मंगल परिवर्तन की उग्र प्रक्रिया में अपना अस्तित्व बचा ले जा पाएंगे।
व्हाइट ड्वार्फ की परिक्रमा करने वाले ग्रहों को खोजना मुश्किल हो गया है, लेकिन इसकी सतह के करीब से टूटने वाले क्षुद्रग्रहों का पता लगाना बहुत आसान हो गया है। एक्सोएस्टरॉइड और एक्सोप्लानेट के बीच की कड़ी हमारे अपने सौर मंडल पर भी लागू होती है। क्षुद्रग्रह मुख्य बेल्ट और कुइपर बेल्ट (बाहरी सौर मंडल में एक डिस्क) में अलग-अलग वस्तुओं के सूर्य की मौत से बचने की संभावना है, लेकिन कुछ को गुरुत्वाकर्षण द्वारा व्हाइट ड्वार्फ की सतह की ओर जीवित ग्रहों में से एक द्वारा भेज दिया जाएगा।(How will the Earth be without the Sun)
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