India News (इंडिया न्यूज़), Data Center: प्राचीन काल से ही मानव समाज में जानकारी का संग्रहण एक महत्वपूर्ण अंग रहा है। कभी सोचा है, प्राचीन काल में सूचनाओं को सहेजना कितना मुश्किल होता होगा? पुस्तकालय तो थे, लेकिन वहां भी सीमित मात्रा में ही जानकारी रखी जा सकती थी। महत्वपूर्ण लेख, शाही फरमान या वैज्ञानिक खोजों को ताड़पत्रों, चर्मपत्रों या पत्थरों पर लिखकर सुरक्षित रखा जाता था।
ये तरीके भले ही अपने समय में कारगर रहे होंगे, लेकिन जानकारी को सुरक्षित रखना और उसे दूसरों तक पहुंचाना मुश्किल भरा काम था। प्राचीन काल में लोग परम्पराओं, कहानियों, और इतिहास को मौखिक रूप से पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित करते थे। यह जानकारी विकृत भी हो सकती थी या समय के साथ भूली भी जा सकती थी। जानकारीयों को सुरक्षित रखने की यह विधियाँ अत्यंत अद्भुत थीं, लेकिन ये माध्यम भी अपने आप में कहीं न कहीं कमजोर थे और आसानी से नष्ट हो सकते थे। कल्पना कीजिए कि महत्वपूर्ण जानकारी खो जाने का कितना बड़ा डर होता होगा!
आधुनिक युग में हालात बहुत बदल गए हैं। आज डेटा सेंटर दुनिया भर में इंटरनेट और डिजिटल सेवाओं की रीढ़ की हड्डी की तरह काम करते हैं। आज के डिजिटल युग में डाटा सेंटर सूचनाओं के संरक्षक के रूप में सामने आए हैं। ये विशाल डेटा सेंटर हैं, जो कंप्यूटर हार्डवेयर, नेटवर्किंग इंफ्रास्ट्रक्चर और स्टोरेज सिस्टम से लैस होकर डिजिटल जानकारी का स्टॉरिज करते हैं। वेबसाइट्स चलाने से लेकर ऑनलाइन शॉपिंग और बैंकिंग तक, हमारे हर डिजिटल अनुभव के पीछे कहीं न कहीं डाटा सेंटर ही काम कर रहे होते हैं।
भारत भी तेजी से डिजिटल होता जा रहा है। स्मार्टफोन का व्यापक इस्तेमाल, इंटरनेट कनेक्टिविटी का विस्तार और सरकारी डिजिटलीकरण इस बदलाव को गति दे रही हैं। मार्च 2023 तक, भारत में 881.25 करोड़ से अधिक इंटरनेट ग्राहक थे।
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इतनी बड़ी संख्या में लोगों के इंटरनेट से जुड़ने के साथ ही डेटा स्टोरेज और प्रोसेसिंग की मांग भी बढ़ गई है। यही कारण है कि डाटा सेंटर्स की भूमिका भारत के डिजिटल भविष्य में महत्वपूर्ण हो गई है।
भारत में डेटा सेंटर्स की यात्रा 2008 में हैदराबाद में पहले सेंटर के साथ शुरू हुई। इसके बाद नोएडा में एनडीसी पुणे (2010), एनडीसी दिल्ली (2011) और एनडीसी भुवनेश्वर (2018) स्थापित किए गए।
फरवरी 2021 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए असम के गुवाहाटी में उत्तर पूर्वी क्षेत्र के पहले राष्ट्रीय डेटा सेंटर (एनईडीसी) की आधारशिला रखी।
आज अपने देश में लगभग 151 डेटा सेंटर्स हैं और जिसके चलते वैश्विक स्तर पर हम 14वें स्थान पर है। 2024 तक, भारत के शीर्ष सात शहरों में डाटा सेंटर्स की क्षमता तीन गुना बढ़कर एक गीगावाट से अधिक होने की उम्मीद है।
यह डिजिटल क्रांति कई चीज़ों से प्रेरित है, जिनमें सबसे अहम है इंटरनेट का तेज़ी से बढ़ता इस्तेमाल, हर रोज़ लाखों लोग ऑनलाइन आ रहे हैं। डेटा स्टोरेज और प्रोसेसिंग की मांग बढ़ रही है, जिस कारण डाटा सेंटर्स इस बढ़ती हुई डिजिटल आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ज़रूरी हैं।
इसका एक बड़ा कारण भारत के डिजिटल अर्थव्यवस्था का तेज़ी से विकास करना भी है। यह अर्थव्यवस्था 2017-2018 में 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2025 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। ई-कॉमर्स, फिनटेक और ऑनलाइन शिक्षा जैसी सेवाओं के बढ़ते चलन से भारत के आर्थिक परिदृश्य में डिजिटल प्लेटफॉर्म की भूमिका अहम होती जा रही है.
सरकार अपने डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों के तहत डेटा सेंटर के विकास को प्रोत्साहन दे रही है। यह आर्थिक विकास और नौकरियों के अवसर लाता है। सरकार डेटा सेंटर पार्क और क्लस्टर बनाने के लिए प्रोत्साहन और सब्सिडी भी दे रही है। डेटा सुरक्षा के लिए नियम भी लागू किए गए हैं।
अगस्त 2023 में, संसद ने डेटा संरक्षण विधेयक को पारित किया गया, जो भारत के डिजिटल व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। यह क़ानून ख़ासतौर पर डेटा सेंटर प्रबंधन में बड़ा महत्व रखता है, क्योंकि यह भारतीय बाज़ार को सेवा प्रदान करने के उद्देश्य से भारत की सीमाओं के अंदर या उनके बाहर, ऑनलाइन या ऑफ़लाइन, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा की प्रोसेसिंग को कवर करता है। निवासियों की डेटा गोपनीयता की अनुमति देकर, यह घरेलू डेटा सेंटर व्यवसाय को बढ़ावा देगा। इस कानून से भारतीयों के डेटा की निजता सुरक्षित होगी और साथ ही घरेलू डाटा सेंटर व्यवसाय को भी बढ़ावा मिलेगा।
हालांकि, भारत के डेटा-केंद्रित भविष्य की ओर अग्रसर होने के साथ, यह कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। डेटा सेंटरों के सुचारू संचालन के लिए स्थिर और निरंतर बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, बढ़ते डिजिटल कनेक्शन की मांगों को पूरा करने के लिए मौजूदा बुनियादी ढांचे को आधुनिक बनाने और नई सुविधाओं का निर्माण करने की आवश्यकता है।
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इस डाटा विस्फोट को संभालने के लिए मजबूत डाटा सेंटर इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है। जैसा कि भारत में स्मार्टफोन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है, इंटरनेट की पहुंच लगातार बढ़ रही है और एआई (AI) तथा इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसी नई टेक्नोलॉजी का विकास हो रहा है। इन सबके चलते डाटा की खपत बहुत तेजी से बढ़ रही है।
इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने डाटा सेंटरों की क्षमता बढ़ाएं. साथ ही, छोटे-छोटे “एज डाटा सेंटर्स” भी बनाने होंगे। ये एज डाटा सेंटर्स शहरों या कस्बों में स्थापित किये जाने चाहिए ताकि जानकारी लोगों तक और भी तेज़ी से पहुंच सके।
टेक्नोलॉजी के विकास के साथ-साथ “डाटा सेंटर्स उद्योग” में पर्यावरण को ध्यान में रखना भी ज़रूरी हो गया है। सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करके हम कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकते हैं और साथ ही डाटा सेंटरों को चलाने की लागत को भी घटा सकते हैं।
क्लाउड सेवाओं के बढ़ते इस्तेमाल से भारत में कंपनियों और सरकारी दफ्तरों के काम करने का तरीका बदल रहा है। क्लाउड कंप्यूटिंग की तरफ रुझान बढ़ने के साथ ही डाटा सेंटर्स की क्षमता बढ़ाने की ज़रूरत भी बढ़ रही है, ताकि क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर को सहारा दिया जा सके और डिजिटल सेवाओं को सुचारू रूप से चलाया जा सके।
अंत में, ये कहा जा सकता है कि भारत के डिजिटल बनने के सफर में इंटरनेट का दायरा बढ़ना, नई टेक्नोलॉजी का आना और डिजिटल सेवाओं का तेजी से बढ़ना – ये सभी महत्वपूर्ण घटनाएं हैं। इन सबके पीछे डाटा सेंटर्स ही हैं, जो भारत के डिजिटल ढांचे की रीढ़ हैं, ये कई चुनौतियों का सामना करते हुए भी ई-कॉमर्स से लेकर क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक, हर चीज़ को चलाते हैं और भारत के डिजिटल परिदृश्य को आकार देते हैं. हमें प्रौद्योगिकी अद्यतन, सहयोग को बढ़ावा देने, और पर्यावरणीय सततता को प्राथमिकता देने की जरूरत है। भविष्य को देखते हुए, हम देख सकते हैं कि भारत विश्व स्तर पर एक डिजिटल पावरहाउस बनने की ओर बढ़ रहा है।
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